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 १७. ८. २०१५

इस सप्ताह-

अनुभूति में-1
स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर हमारे जनतंत्र को समर्पित विविध विधाओं में कुछ और रचनाकारों की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- लगभग ३०० कैलोरी के व्यंजनों की शृंखला- स्वस्थ कलेवा में, हमारी रसोई-संपादक शुचि द्वारा प्रस्तुत है- स्वादिष्ट मूँग नमकीन

बागबानी में- आसान सुझाव जो बागबानी को उपयोगी और रोचक बनाने में उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं-
२८- धूल से बचाव

1दो पल में- अश्विन गाँधी की कलम से अभिव्यक्ति के जन्मदिन पर अभिव्यक्ति पंद्रह साल की

सुंदर घर- घर को सजाने के कुछ उपयोगी सुझाव जो घर के रूप रंग को आकर्षक बनाने में काम आएँगे- २८- प्रकाश व्यवस्था का कमाल

- रचना व मनोरंजन में

क्या आप जानते हैं- आज के दिन- (१७ अगस्त को) अमृतलाल नागर, विज्ञानव्रत, शरत सक्सेना, सचिन, अनामिका और सुप्रिया... विस्तार से

नवगीत संग्रह- में प्रस्तुत है- मधुकर अष्ठाना द्वारा भारतेन्दु मिश्र के नवगीत संग्रह- अनुभव की सीढ़ी का परिचय।

वर्ग पहेली- २५०
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और
रश्मि-आशीष के सहयोग से


हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य एवं संस्कृति में- नागपंचमी के अवसर पर

वरिष्ठ रचनाकारों की प्रसिद्ध कहानियों के स्तंभ गौरवगाथा में प्रस्तुत है प्रेमचंद की कहानी अन्धेर

नागपंचमी आई। साठे के जिन्दादिल नौजवानों ने रंग-बिरंगे जाँघिये बनवाये। अखाड़े में ढोल की मर्दाना सदायें गूँजने लगीं। आसपास के पहलवान इकट्ठे हुए और अखाड़े पर तम्बोलियों ने अपनी दुकानें सजायीं क्योंकि आज कुश्ती और दोस्ताना मुकाबले का दिन है। औरतों ने गोबर से अपने आँगन लीपे और गाती-बजाती कटोरों में दूध-चावल लिए नाग पूजने चलीं। साठे और पाठे दो लगे हुए मौजे थे। दोनों गंगा के किनारे। खेती में ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती थी इसीलिए आपस में फौजदारियाँ खूब होती थीं। आदिकाल से उनके बीच होड़ चली आती थी। साठेवालों को यह घमण्ड था कि उन्होंने पाठेवालों को कभी सिर न उठाने दिया। उसी तरह पाठेवाले अपने प्रतिद्वंद्वियों को नीचा दिखलाना ही जिन्दगी का सबसे बड़ा काम समझते थे। उनका इतिहास विजय की कहानियों से भरा हुआ था। पाठे के चरवाहे यह गीत गाते हुए चलते थे- साठेवाले कायर सगरे पाठेवाले हैं सरदार..... और साठे के धोबी गाते-
साठेवाले साठ हाथ के जिनके हाथ सदा तरवार।
आगे-
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चीनी लोक कथा
सफेद नागिन
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डॉ. पवन विजय का संस्मरण
बँसिया बाज रही वृंदावन

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प्रेम चड्ढा से जानें
साँप- कुछ रोचक तथ्य
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पुनर्पाठ में डॉ सरस्वती माथुर का आलेख
नागों के सम्मान का पर्व- नागपंचमी

पिछले सप्ताह- स्वतंत्रता दिवस विशेषांक

शशि पुरवार का व्यंग्य
नेता जी का भाषण
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शशि पाधा का संस्मरण
शौर्य, संकल्प एवं साहस की प्रतिमूर्ति

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गोपीचंद श्रीनागर का आलेख
डाकटिकटों में राष्ट्र चिह्न
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पुनर्पाठ में अजय ब्रह्मात्मज का आलेख
हिंदी फिल्मों में राष्ट्रीय भावना

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समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
जयनंदन की कहानी- लोकतंत्र की पैकिंग

मुदित चंद्र अब गरीबी से पूरी तरह निकल आया था। कंपनी में उसने छोटी नौकरी से ही शुरुआत की। अब जब सैंतीस वर्ष पूरे हो गये तो उसके जीवन में काफी कुछ बेहतर हो गया। बेटी की नौकरी लग गयी। उसने मनपसंद लड़के से शादी कर ली। दोनों बेटों ने प्रतिष्ठित कॉलेजों से इंजीनियरिंग कर ली और बहुत ऊँची पगार वाली नौकरी भी ज्वाइन कर ली। उसकी अपनी तनख्वाह ४० हजार के आसपास पहुँच गयी। काफी पहले शहर के एक कोने में अपना घर बना लिया। अब कोई निजी जिम्मेवारी बची नहीं रह गयी। उसकी अपनी जरूरतें भी बहुत सीमित थीं। लेकिन एक सार्वजनिक जिम्मेवारी वह बराबर महसूस करता था। बहुत गरीबी और गुरबत से निकला था, फाँके और बेबसी के दिन उसने झेले थे, इसलिए इन हालात से गुजर रहे लोगों पर उसकी नजर बराबर बनी रहती थी। गाँव में दो-ढाई बीघे की मामूली खेती पर मजबूरी में टिके अपने चचेरे भाइयों की दुर्दशा उसे बराबर याद आती रहती। वह अपने सरप्लस पैसे में से कुछ उन्हें भेज दिया करता। आगे-

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी
 

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