पूर्वी
चीन के हानचाओ शहर में स्थित पश्चिमी झील अपने असाधारण
प्राकृतिक सौंदर्य से विश्वविख्यात है। देश विदेश के अनेक
कवियों ने इस पर कविताएँ लिखी हैं और अनेक लोककथाओं में
इसका वर्णन है। ऐसी ही लोक कथाओं में से एक है सफेद नागिन
की कहानी। कहानी इस प्रकार है-
एक सफेद नागिन ने हजार साल तक कड़ी तपस्या कर अंत में मानव
का रूप धारण किया, वह एक सुन्दर व शीलवती युवती में परिणत
हुई, नाम हुआ पाईल्यांगची। एक नीली नागिन ने पाँच सौ साल
तपस्या की और एक छोटी लड़की के रूप में बदल गयी, नाम पड़ा
श्योछिंग। पाईल्यांगची और श्योछिंग दोनों सखी के रूप में
पश्चिमी झील की सैर पर आईं, जब दोनों टुटे पुल के पास
पहुँचीं तो श्योछिंग ने अलोकिक शक्ति से वर्षा बुलाई,
वर्षा में श्युस्यान नाम का एक सुन्दर युवा छाता उठाए झील
के किनारे पर आया। वर्षा के समय पाईल्यांगची और श्योछिंग
के पास छाता नहीं था, वे काफी बुरी तरह पानी से भीग रही
थीं, उन की मदद के लिए श्युस्यान ने अपना छाता उन दोनों को
थमा दिया, स्वयं पानी में भीगता खड़ा रहा। ऐसे सदचरित्र
वाला युवा पाईल्यांगची को बहुत पसंद आया और श्युस्यान को
भी सुंदर युवती पाईल्यांगची के प्रति प्रेम का अनुभव हुआ।
श्योछिंग की मदद से दोनों की शादी हुई और उन्होंने झील के
किनारे दवा की एक दुकान खोली। श्युस्यान बीमारियों की
चिकित्सा जानता था, दोनों पती पत्नी निस्वार्थ रूप से
मरीजों का इलाज करते थे और स्थानीय लोगों में वे बहुत
लोकप्रिय हो गए।
शहर के पास स्थित चिनशान मठ के धर्माचार्य फाहाई को
पाईल्यांगची के पिछले जन्मों का रहस्य मालूम था। उसने
गुप्त रूप से श्य़ुस्यान को उसकी पत्नी का रहस्य बताया कि
पिछले जन्मों में सफेद नाग थी। उसने श्युस्यान को यह भी
बताया कि वह पाईल्यांगची का असली रूप कैसे देख सकता है।
श्युस्यान को फाहाई की बातों से आशंका हुई।
इसी बीच त्वानवू पर्व आ गया। चीन का यह पर्व प्राचीन काल
से ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस उत्सव पर लोग चावल
से बनायी गई मदिरा पीते हैं, वे मानते हैं कि इससे सब
विपत्तियों से रक्षा होती है। इस उत्सव के दिन श्युस्यान
ने फाहाई द्वारा बताए तरीके से अपनी पत्नी पाईल्यांगची को
मदिरा पिलाई। पाईल्यांगची गर्भवर्ती थी, मदिरा उस के लिए
हानिकर थी, लेकिन पति के बारंबार कहने पर उसने मदिरा पी
ली। मदिरा पीने के बाद वह सफेद नाग के रूप में वापस बदल
गई, जिससे भय खा कर श्योस्यान की मौत हो गई।
अपने पति को जीवित करने के
लिए गर्भवती पाईल्यांगची हजारों मील दूर तीर्थ खुनलुन
पर्वत में रामबाण औषधि गलोदर्म की चोरी करने गयी। गलोदर्म
की चोरी के समय उस ने जान हथेली पर रख कर वहाँ के रक्षकों
से घमासान युद्ध लड़ा, पाईल्यांगची के सच्चे प्रेम से
प्रभावित हो कर रक्षकों ने उसे रामबाण औषधि भेंट की।
पाईल्य़ांगची ने अपने पति को फिर से जीवित कर दिया,
श्युस्यान भी अपनी पत्नी के सच्चे प्यार के वशीभूत हो गया,
दोनों में प्रेम पहले से भी ज्यादा गाढ़ा हो गया।
धर्माचार्य फाहाई मन दुष्टता फिर भी न भरा। उसने श्युस्यान
को धोखा दे कर चिनशान मठ में बंद कर दिया और उसे भिक्षु
बनने पर मजबूर किया। इस पर पाईल्यांगची और श्योछिंग को
अत्यन्त क्रोध आया, दोनों ने जल जगत के सिपाहियों को ले कर
चिनशान मठ पर हमला बोला और श्युस्यान को बचाना चाहा।
उन्होंने बाढ़ बुला कर मठ पर धावा करने की कोशिश की लेकिन
धर्माचार्य फाहाई ने भी दिव्य शक्ति दिखा कर हमले का
मुकाबला किया। क्योंकि पाईल्यांगची गर्भवती थी और बच्चे का
जन्म देने वाली थी, इसलिए वह फाहाई से हार गयी और श्योछिंग
की सहायता से पीछे हट कर चली गई। वो दोनों फिर पश्चिमी झील
के टुटे पुल के पास आईं, इसी वक्त मठ में नजरबंद श्युश्यान
मठ के बाहर चली युद्ध की गड़बड़ी से मौका पाकर भाग निकला,
वह भी टूटे पुल के पास आ पहुँचा। संकट से बच कर दोनों
पति-पत्नी ने चैन की साँस ली। इसी बीच पाईल्यांगची ने एक
पुत्र को जन्म दिया। लेकिन बेरहम फाहाई ने पीछा करके
पाईल्यांगची को पकड़ा और उसे पश्चिमी झील के किनारे पर
खड़े लेफङ पगोडे के तले दबा दिया और यह शाप दिया कि जब तक
पश्चिमी झील का पानी नहीं सूख पड़ता और लेफङ पगोड़ा नहीं
गिरता, तब तक पाईल्यांगची बाहर निकल कर जग में नहीं लौट
सकती।
वर्षों की कड़ी तपस्या के बाद श्योछिंग को भी सिद्धि
प्राप्त हुई, उसकी शक्ति असाधारण बढ़ी, उसने पश्चिमी झील
लौट कर धर्माचार्य फाहाई को परास्त कर दिया, पश्चिमी झील
का पानी सोख लिया और लेफङ पगोडा गिरा दिया एवं सफेद नाग
वाली पाईल्यांगची को बचाया। यह लोककथा पश्चिमी झील के कारण
सदियों से चीनियों में अमर रही और पश्चिमी झील का सौंदर्य
इस सुन्दर कहानी के कारण और प्रसिद्ध हो गया।
१७ अगस्त २०१५ |