डाक
टिकटों पर राष्ट्र चिह्न
—गोपीचंद
श्रीनागर
हमारा
राष्ट्र चिह्न भारतीय टिकटों पर बहुतायत से दिखने को मिलता है।
यह स्वाभाविक भी है। किसी भी देश के राष्ट्र ध्वज और राष्ट्र चिह्न का उसके जनजीवन में बहुत महत्त्व होता है।
भारत का राष्ट्र चिह्न भारत के समृद्ध अतीत की कहानी कहता है।
ईसा से लगभग २७२ वर्ष पूर्व भारतीय इतिहास के स्वर्णिम नक्षत्र
सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म से संबंधित पवित्र स्थानों पर सुंदर
स्तंभों वाली पत्थर की लाटें स्थापित करवाई थीं।
देश भर में
बिखरी
इन लाटों पर अशोक महान के आदेश ब्राह्मी लिपि में खुदे
मिलते हैं। ऐसी १७ लाटों का अबतक पता चला है। सारनाथ में स्थित
इसी प्रकार की एक लाट के ऊपरी सिरे पर निर्मित मूर्तिभाग को
हमारे राष्ट्र चिह्न के रूप में स्वीकार किया गया है।
१५ दिसंबर १९४७ को, जयहिंद अक्षरों के साथ प्रकाशित ऊपर बायीं
ओर वाले डाकटिकट में, विश्व प्रसिद्ध मूर्तिकला के अद्वितीय
नमूने, हमारे राष्ट्र चिह्न को
भारतीय डाकटिकट पर पहली बार
स्थान मिला। इस स्मारक
डाकटिकट की डिजाइन कलाकार टीआई आचर ने बनाई थी। डेढ़ आने
मूल्य
वाले इस डाकटिकट पर ऊपर जय हिन्द तथा उसके नीचे हमारे
स्वतंत्रता दिवस की तिथि को अंकित किया गया था। इसके बाद सन
१९५० में जारी किये गए अलग अलग मूल्य वाले अनेक रंगों के
शासकीय टिकटों पर भी इसको स्थान दिया गया। १९९० को जारी किये
गए २०० पैसे के एक शासकीय डाकटिकट पर मुंडकोपनिषद का एक
वाक्यांश सत्यमेव जयते और जोड़ा गया था।
सन
१९४९ में जब विश्व डाकसंघ की हीरक जयंती (सन १८७४ से १९४९)
मनाई जा रही थी, तब भारत के डाक व तार विभाग ने १० अक्तूबर
१९४९ को एक सी डिजाइन वाले अलग अलग रंगों के चार डाकटिकट
निकाले थे।
हरे,
गुलाबी, नीले और भूरे रंग के क्रमशः नौ पैसे, दो आने, साढ़े
तीन आने और बारह आने मूल्य के इन डाकटिकटों पर भूमंडल और
लिफ़ाफे के चित्रों के साथ हमारे राष्ट्र चिह्न को भी अंकित
किया गया था।
१६ नवंबर १९७४ को प्रादेशिक सेना की रजत जयंती के अवसर पर जारी
किए गए डाकटिकट में, जिस पर
प्रादेशिक सेना का बैज दिखलाया गया है, हमारा
राष्ट्र चिह्न दिखाई देता है। २५ पैसे मूल्य वाले इस स्मारक डाकटिकट
को हरे, सफेद और पीले तीन रंगों में बनाया गया था। इसमें अंकित
प्रादेशिक सेना के स्थापना वर्ष १९४९ तथा उनके ध्येय वाक्य
सावधानी व शूरता को आसानी से पढ़ा जा सकता है। सन १९५८ से भारतीय डाकटिकटों
के कागज़ों में ये राष्ट्र चिह्न जल चिह्न (वाटर मार्क) के रूप में भी दिये
जाने लगे।
वर्ष १९७३ में १४ नवंबर से २३
नवंबर तक दिल्ली में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय डाकटिकट
प्रदर्शनी,
इंडिपेक्स-७३ के अवसर पर १ रुपये मूल्य का एक विशेष डाकटिकट
जारी किया गया था। इस डाकटिकट पर छब्बीस वर्ष पूर्व १५ दिसंबर
१९४७ को प्रकाशित डेढ़ आने मूल्य वाले जयहिंद डाकटिकट
को एक हाथी के साथ पुनः
प्रकाशित किया गया है।
भारत के राष्ट्र चिह्न को विदेशी डाकटिकटों पर भी स्थान मिला
है। भारत की स्वतंत्रता के रजत जयंती वर्ष १९७२ में सोवियत
संघ ने ६ कोपेक का एक लाल, नीला, हरा भव्य डाकटिकट निकाला था इस
सोवियत डाकटिकट पर भारत का ऐतिहासिक लाल किला, राष्ट्रीय तिरंगा
व राष्ट्र चिह्न छपा मिलता है।
इसी प्रकार भारतीय स्वतंत्रता
की तीसवीं साल गिरह पर सोवियत संघ ने एक बार फिर डाकटिकट निकाल कर डाकटिकट प्रेमियों को आश्चर्य चकित
कर दिया था। लाल किले की पृष्ठभूमि वाले इस डाकटिकट पर भारतीय
राष्ट्र चिह्न अशोकस्तंभ सुनहरे रंग में प्रमुखता से भव्य
रूप में छापा गया है (बिलकुल दाहिने)। भारतीय स्वतंत्रता
की पचासवीं वर्षगाँठ के अवसर पर जारी एक अन्य रूसी डाकटिकट में
भी भारत के राष्ट्रीय ध्वज, चक्र और राष्ट्र चिह्न को देखा जा
सकता है (मध्य में)। इन डाक टिकटों के द्वारा हमारे राष्ट्र
चिह्न की सुंदरता विश्व भर में छा गई है।
९ अगस्त २०१०१०
अगस्त २०१५ |