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नागों के सम्मान का पर्व- नागपंचमी
डॉ सरस्वती माथुर
भारतीय संस्कृति में न केवल मानव अपितु समस्त सांसारिक
जीवों व प्रकृति के कल्याण व सम्मान की बात कही गई है।
यही कारण है कि लगभग सभी पर्वों के साथ वृक्ष, नदी,
सूर्य, चंद्र, पशु और पक्षियों को जोड़ा गया है। जैसे-
श्राद्ध पक्ष में कौआ, गोपाष्टमी पर्व के साथ गाय, बैल
के साथ बैलचौथ, उल्लू के साथ दिवाली, रक्षाबंधन के
साथ गौरैया, दशहरा के साथा नीलकंठ और नागपंचमी के साथ
साँप या नाग।
ऐतिहासिक उल्लेख-
प्राचीन भारतीय संस्कृति में शिव ने साँप को अपने गले
में रखकर और विष्णु ने शेष-शयन करके नाग के महत्व को
दर्शाया है। देव-दानवों द्वारा किए गए समुद्र मंथन में
साधन रूप बनकर वासुकी नाग ने जनहित में बहुत बड़ा
कार्य किया था। जैन धर्म में भी पार्श्वनाथ को शेष नाग
पर बैठा हुआ दर्शाया गया है। श्रीकृष्ण ने यमुना को
कालिया नाग से मुक्त और शुद्ध किया था। गीता में भगवान
कृष्ण कहते हैं कि नागों में अनंत (शेष नाग) हूँ।
पुराणों अनुसार ऐसा विश्वास है कि हमारी धरती शेषनाग
के फनों के ऊपर टिकी हुई है। अथर्ववेद में कुछ नागों
के नामों का उल्लेख मिलता है। ये नाग हैं श्वित्र,
स्वज, पृदाक, कल्माष, ग्रीव और तिरिचराजी नागों में
चित कोबरा (पृश्चि), काला फणियर (करैत), घास के रंग का
(उपतृण्य), पीला (ब्रम), असिता रंगरहित (अलीक), दासी,
दुहित, असति, तगात, अमोक और तवस्तु आदि।
इतिहास की सबसे प्राचीन सभ्यताएँ जिसमें मोहनजोदडों,
हडप्पा और सिंधु सभ्यता के अवशेषों को देखने से भी कुछ
इसी प्रकार की वस्तुएँ सामने आई है, जिनके आधार पर यह
कहा जा सकता है, कि नागों के पूजन की परम्परा हमारे
यहाँ नई नहीं है। इन प्राचीन सभ्यताओं के अलावा
मिस्त्र की सभ्यता भी प्राचीन सभ्यताओं में से एक है।
यहाँ आज भी नाग पूजा को मान्यता प्राप्त है। शेख हरेदी
नामक पर्व आज भी यहाँ सर्प पूजा से जुडा हुआ पर्व है।
हमारे देश के प्रत्येक ग्राम नगर में ग्राम देवता और
लोकदेवता के रूप में नागदेवता के पूजास्थल हैं। भारतीय
संस्कृति में सायं-प्रातः भगवान के स्मरण के साथ अनंत
तथा वासुकि आदि नागों का स्मरण भी किया जाता है जिनसे
भव, विष और भय से रक्षा होती है तथा सर्वत्र विजय होती
है।
'अनन्तं वासुकिं शेषं पद्यनाभं च कम्बलम्।
शंखपालं धार्तराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा।' देवी भागवत
में प्रमुख नागों का नित्य स्मरण किया गया है।
विभिन्न
परंपराएँ-
नागपंचमी पर्व श्रावण मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी को
मनाया जाता है। पूरे देश
में इस पर्व के साथ अलग अलग परंपराएँ जुड़ी हैं, जिनके
अनुसार इन्हें मनाया जाता है ! अनेक स्थानों पर सर्प
धारण करने वाले शिव की उपासना की जाती है।
उत्तरी भारत में श्रावण मास की पंचमी के दिन मनसा देवी
की पूजा करने का विधान है। भारत के अनेक
हिस्सों में मनसा माता के मंदिर बने हुए हैं, जहाँ
इनकी आराधना होती है और नागपंचमी के मेले भी लगते हैं,
इन्हें शक्ति के रूप में भी पूजा जाता है इस अवसर पर
पहलवानों के लिए दंगल और कुश्ती प्रतियोगिताएँ रखी
जाती हैं। मनसा देवी "मनसा मंगल" नामसे भी प्रसिद्ध
है। ऐसी मान्यता है कि इनकी पूजा से सर्पों का क्रोध
शांत हो जाता है और जनहानि नहीं होती है !
अनेक स्थानों पर शुक्ल पक्ष की पंचमी को नागपूजा का
अनुष्ठान होता है! भारत के दक्षिण संभागों व देश के
अनेक हिस्सों में श्रावण शुक्ल पक्ष की नागपंचमी पर
शुद्ध तेल से स्नान किया जाता है, अविवाहित कन्याएँ
उपवास करती हैं और मनोवांछित जीवन साथी पाने की कामना
भी करती हैं !
दक्षिण महाराष्ट्र में इसे विशेष रुप से मनाया जाता
है। असम और उडीसा के कुछ भागों में भी इस दिन नागों की
देवी मां मनसा माँ की आराधना की जाती है. केरल के
मंदिरों में शेषनाग की विशेष पूजा अर्चना की परंपरा भी
है ! नागपंचमी पर सरस्वती देवी की पूजा-आराधना की भी
मान्यता है अत: बौद्धिक कार्य किये जाते हैं !
मान्यतानुसार गृहणियाँ उपवास रख, विधि विधान से नाग
देवता की पूजा करती हैं और ऐसा विश्वास रखती हैं कि
इससे परिवार की सुख -समृ्द्धि में वृ्द्धि होती है और
परिवार को सर्पदंश का भय नहीं रहता है!
उत्तरप्रदेश के कुछ भागों में इसे मनाने का ढंग कुछ
अनूठा है जहाँ यह पर्व गुड़ियाँ पीटकर मनाया जाता है।
नागपंचमी को महिलाएँ घर के पुराने कपडों से गुड़िया
बनाकर चौराहे पर डालती हैं और बच्चे उन्हें कोड़ो और
डंडों से पीटकर खुश होते हैं। इस परम्परा के बारे में एक कथा प्रचलित है। तक्षक नाग के काटने से
राजा परीक्षित की मौत हो गई थी। समय बीतने पर तक्षक की
चौथी पीढ़ी की कन्या राजा परीक्षित के परिवार में
ब्याही गई। उस कन्या ने ससुराल में एक महिला को यह
रहस्य बताकर उससे इस बारे में किसी को भी नहीं बताने
के लिए कहा लेकिन उस महिला ने दूसरी महिला को यह बात
बता दी और धीरे-धीरे यह बात पूरे नगर में फैल गई।
तक्षक के तत्कालीन राजा ने इस रहस्य को उजागर करने पर
नगर की सभी लड़कियों को चौराहे पर इकट्ठा करके कोड़ों
से पिटवा कर मरवा दिया। वह इस बात से क्रुद्ध हो गया
था कि औरतों के पेट में कोई बात नहीं पचती है। तभी से
नागपंचमी पर गुड़िया को पीटने की परम्परा है!
शिव एवं नाग पूजन
अनेक स्थानों पर इस दिन देवस्थान में शिव के साथ नाग
प्रतिमा की भी पूजा की जाती है। अलसुबह उठकर घर की
सफाई करके नित्यकर्म से निवृत्त हो परिवार नाग पूजा की
तैयारी शुरू कर देता है ! स्नान कर धुले हुए साफ एवं
स्वच्छ कपड़े धारण कर नाग पूजन के लिए खीर,
सेंवई-चावल, मालपुआ आदि ताजा भोजन भोग के लिए बनाया
जाता है। कुछ भागों में नागपंचमी से एक दिन पहले ही
बासोड़े की तरह भोजन बना कर रख लिया जाता है और
नागपंचमी के दिन एक दिन पहले बना हुआ खाना खाया जाता
है। दीवार पर गेरू पोतकर पूजन का स्थान बनाया जाता है।
फिर कच्चे दूध में कोयला घिसकर उससे गेरू पुती दीवार
पर घर जैसा बनाते हैं और उसमें अनेक नागदेवों की आकृति
बनाते हैं। कुछ जगहों पर सोने, चाँदी, काठ व मिट्टी की
कलम तथा हल्दी व चंदन की स्याही से अथवा गोबर से घर के
मुख्य दरवाजे के दोनों बगलों में पाँच फन वाले नागदेव
अंकित कर उनकी पूजा की जाती है। चन्दन और सुगंध सांपों
को बहुत पसंद है ! दीवार पर बनाए गए नागदेवता की दही,
दूर्वा, कुशा, गंध, अक्षत, पुष्प, जल, कच्चा दूध, रोली
और चावल आदि से पूजन कर खीर- मालपुआ, सेंवई व
मिष्ठान्नों से उनको भोग लगाते हैं तथा आरती करके कथा
सुनते हैं ! नागों की बाँबी में दूध चढ़ाना, सपेरों की
टोकरी खुलवाकर नाग के दर्शन करना इस पर्व के प्रमुख
अंग हैं।
देश के कुछ भागों में श्रावण मास की कृष्ण पक्ष की
पंचमी पर भी नाग की पूजा की जाती है। पानी रखने के
स्थान (परिंडा ) की दीवार को रुचि के अनुसार अनुसार धो
लीप या पोत कर एक नाग हल्दी से और एक नाग कोयला घिस कर
बनाया जाता है फिर भीगे हुए चने और मूँग से नागों की
पूजा की जाती है और हल्दी चावल, दूध व बिनोला चढ़ाया
जाता है मूंग और चने नाग से बायना निकाल कर कुछ धन
सहित पूज्य जनों को दिया जाता है ! इस दिन कमल का सफ़ेद
फूल भी चढ़ाया जाता है !
नागपंचमी की लोक कथाएँ-
जनमानस में नागपंचमी पर्व की विविध जनश्रुतियां और
कथाएँ प्रचलित है। पहली कथा कि अनुसार किसी राज्य में
एक किसान परिवार रहता था। किसान के दो पुत्र व एक
पुत्री थी। एक दिन हल जोतते समय हल से नाग के तीन
बच्चे कुचल कर मर गए। नागिन पहले तो विलाप करती रही
फिर उसने अपनी संतान के हत्यारे से बदला लेने का
संकल्प किया। रात्रि को अंधकार में नागिन ने किसान,
उसकी पत्नी व दोनों लड़कों को डस लिया। अगले दिन प्रातः
किसान की पुत्री को डसने के उद्देश्य से नागिन फिर चली
तो किसान कन्या ने उसके सामने दूध का भरा कटोरा रख
दिया। हाथ जोड़ क्षमा माँगने लगी। नागिन ने प्रसन्न
होकर उसके माता-पिता व दोनों भाइयों को पुनः जीवित कर
दिया। उस दिन श्रावण शुक्ल पंचमी थी। तब से आज तक
नागों के कोप से बचने के लिए इस दिन नागों की पूजा की
जाती है।
एक अन्य कथा के अनुसार एक राजा के सात पुत्र थे, उन
सबके विवाह हो चुके थे। उनमें से छह पुत्रों के संतान
भी हो चुकी थी। सबसे छोटे पुत्र के अब तक के कोई संतान
नहीं हुई, उसकी बहू को जिठानियाँ बाँझ कहकर बहुत ताने
देती थीं। इससे छोटी बहू बहुत दुखी थी। एक साल
नागपंचमी के एक दिन पहले रात को उसे स्वप्न में पाँच
नाग दिखाई दिए, उनमें एक ने कहा- 'अरी पुत्री। कल
नागपंचमी है, तू अगर हमारा पूजन करे तो तुझे पुत्र
रत्न की प्राप्ति हो सकती है। यह सुनकर वह उठ बैठी और
पति को जगाकर स्वप्न का हाल सुनाया। पति ने कहा- यह
कौन सी बड़ी बात है? पाँच नाग अगर दिखाई दिए हैं तो
पाँचों की आकृति बनाकर उसका पूजन कर देना। नाग लोग
ठंडा भोजन ग्रहण करते हैं, इसलिए उन्हें कच्चे दूध से
प्रसन्न करना। दूसरे दिन उसने ठीक वैसा ही किया। नागों
के पूजन से उसे नौ मास के बाद सुन्दर पुत्र की
प्राप्ति हुई।
नाग एक प्रेरक के रूप में-
हमारे जीवन के बहुत से रहस्यों को साँपों के जीवन से
जोड़कर प्रेरणा लेने की बात भारतीय साहित्य में मिलती
है। कुछ दिव्य साँपों के मस्तिष्क पर एक विशेष प्रकार
के शल्क होते हैं जो अँधेरे में चमकते हैं। इससे
जोड़कर कुछ प्रेरणादायक बातें हमारे साहित्य में कही
गई हैं-
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हमें भी जीवन में अमूल्य वस्तुओं को (बातों को)
मणि के समान मस्तिष्क पर चढ़ाना (ध्यान रखना)
चाहिए। ताकि बुरे समय में वे हमारा मार्ग प्रकाशित
कर सकें।
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समाज के मुकुटमणि जैसे महापुरुषों के प्रेरणादायक
वचनों को अपने सिर पर धारण करना चाहिये और उसके
अनुसार अपने जीवन का निर्माण करने का अहर्निश
प्रयत्न करना चाहिए।
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सर्व विद्याओं में मणिरूप जो अध्यात्म विद्या है,
उसके लिए हमारे जीवन में अनोखा आकर्षण होना चाहिए।
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साँप बिल में रहता है और अधिकांशतः एकान्त का सेवन
करता है। इसलिए मुमुक्षु को जनसमूह को टालना
चाहिए।
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नाग शक्ति और चपलता
का प्रतीक भी हैं, जो यह सीख देता है कि जीवन में
अपने कर्म, आचरण और चरित्र से हर पल सबल और चपल
बनने पर ही व्यक्ति पूजा एवं सम्मान के काबिल बनता
है।
नाग हमारी पारिस्थितिकी की एक महत्त्वपूर्ण कड़ी
भी है ! अतः हम सभी को नागपंचमी के इस महत्वपूर्ण
पर्व पर नागों के संरक्षण का संकल्प लेना चाहिए ! |