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 प्रकृति और पर्यावरण

 

साँप कुछ रोचक तथ्य
- प्राण चड्ढा


साँपों के विषय में कई भ्रांतियाँ हैं जिसके निराकरण के लिए खुलासा डाट कम और टाटा संसथान के द्वारा किये गए शोध और नेट पर दी गई जानकारी को नागपंचमी के अवसर पर जाने लेना रोचक रहेगा।

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दुनिया का सबसे अधिक विषैला साँप ऑस्ट्रेलिया में टाइगर स्नेक होता है जो एक दिन में करीब ४०० व्यक्तियों को काटकर मार सकता है।

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साँपों के पूर्वजों के पैर हुआ करते थे जो धीरे-धीरे समाप्त हो गए। अजगर की पूँछ के पास एक जोड़ी अविकसित पैर भी भी पाए जाते हैं।

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अजगर के पेट में इतने शक्तिशाली पाचक रासायनिक तत्व होते हैं कि वे निगले गए सूअर हिरण आदि की हडि़डयाँ सींग को भी पचा लेते हैं।

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दुनिया में कोई भी दो मुँह का साँप नहीं पाया जाता कुछ साँपों की पूँछ जैसे 'रेड सेण्ड बोआ' ऐसी होती है जो मुँह के समान दिखाई पड़ती है।

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कुछ साँप अपने शरीर को थोड़ा फुलाकर एक पेड़ की डाल से दूसरे पेड़ की डाल तक या ज्यादा से ज्यादा ६ मीटर तक छलाँग लगा लेते हैं। उन्हें ही लोग उड़ने वाले साँप समझ लेते हैं, परंतु वास्तव में दुनिया में कहीं भी उड़ने वाले या पंख वाले साँप नहीं होते।

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वाइपर जाति के एक किस्म के साँप के सिर पर एक छोटी सी हड्डी ऊपर उठी हुई रहती है, जो सींग जैसी लगती है। अत: उससे सींग वाले साँप का भ्रम होता है।

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वाइपर जाति का रेगिस्तान में रहने वाला साँप बहुत खतरनाक होता है। उसकी पूँछ में कई छल्ले बने हुए होते हैं, जब वह चौंकता है या उत्तेजित होता है तो उन छल्लों में कंपन से जोरदार झनझनाहट की आवाज आने लगती है, शायद इसलिए इसका नाम 'रैटल स्नेक' झुनझुना साँप पड़ा।

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विश्व का सबसे छोटा साँप 'थ्रेड स्नेक' होता है । जो कैरेबियन सागर के सेट लुसिया माटिनिक तथा वारवडोस आदि द्वीपों में पाया जाता है वह केवल १०-१२ सेंटीमीटर लंबा होता है।

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विश्व का सबसे लंबा साँप रैटिकुलेटेड पेथोन (जालीदार अजगर ) है, जो प्राय: १० मीटर से भी अधिक लंबा तथा १२० किलोग्राम वजन तक का पाया जाता है। यह दक्षिण-पूर्वी एशिया तथा फिलीपींस में मिलता है।

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पश्चिमी हिंद महासागर के राउंड द्वीप में पाए जाने वाला कील सील्ड वोआ विश्व का दुर्लभ साँप है। विश्व में इसकी कुल जनसंख्या सौ से भी कम है।

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ज्यादातर मादा साँप अंडे देती हैं, मगर कुछ बच्चों को भी जन्म देती हैं, जैसी 'वाइपर' तथा 'रैड सेंड बोआ।'
सबसे खूबसूरत साँप 'गोल्डन टी स्नेक' होता है।

साँपों के बारे में निम्न प्रचलित कुछ भ्रांतियाँ एकदम गलत हैं। उदाहरण के लिये- साँप जमीन के अंदर गड़े खजाने की रक्षा करते हैं। साँप मनुष्य को सम्मोहित कर देते हैं। साँप संगीत सुनकर झूम उठते हैं। अजगर दूर से किसी को अपनी साँस से खींच लेता है। साँप बदला लेते हैं। या फिर कुछ साँपों के पास कीमती दुर्लभ मणि होती है। आदि आदि।

साँप और विष कुछ महत्वपूर्ण तथ्य-

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विश्व में साँपोंकी करीब २५०० प्रजातियाँ पायी जाती हैं, उनमें केवल १५० जाति के साँप ही जहरीले होते हैं।

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भारत में २१६ जातियों में से मात्र ५३ जातियाँ विषैली पाई जाती हैं। इनमें से ४ जातियाँ ही विषैली होती हैं। ये ४ जातियाँ हैं नाग (कोबरा), करैत (क्रेट), घोणस (रसल वाइपर) तथा अफई (सौ स्केल वाइपर)।

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साँपके बोलने के अंग नहीं होते, वे केवल नाक से सिसकारी भरते हैं। साँपकी आँखों पर पलकें नहीं होती, आँखें पारदर्शी झिल्ली से ढँकी हुई रहती हैं। इसकी जीभ स्वाद के अलावा गंध का भी ज्ञान कराती है।

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साँप अपने भोजन को चबाकर व टुकड़े करके नहीं खाता, बल्कि पूरा निगलता है। इसके जबड़े इतने लचीले होते हैं कि वह अपने से कई गुना बड़े जानवर को भी आसानी से निगल जाता है।

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सर्प-विष अनेक विषैले एंजाइमों का मिश्रण होता है। सामान्यत: लोगों की धारणा है कि विष का रंग काला नीला होता है, जो एकदम गलत है सर्प का विष सुनहरे पीले रंग का तरल द्रव है, जिसमें न गंध होती है न स्वाद।

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विश्व स्वस्थ्य-संगठन की रिपोर्ट के अनुसार साँप के काटने से विश्व में प्रतिवर्ष ३० से ४० हजार मनुष्य काल के गाल में समा जाते हैं, जिनमें से ७००० से १२००० भारतीय होते हैं।

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मनुष्य की मौत के लिए नाग का विष १२ मिलीग्राम, घोणष का १५ मिलीग्राम, अफई का ७ मिलीग्राम तथा करैत का ६ मिलीग्राम पर्याप्त है।

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सर्प-विष से दो औषधियाँ नाइलोक्सीन तथा कावोक्सीन बनाई जाती हैं।

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नाइलोक्सीन सिलिसिक व फार्मिक अम्ल के साथ गठिया के दर्द में उपयोगी है। कावोक्सीन तो दर्द कम करने में मारफीन से भी ज्यादा असरकारक है।

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सर्प-विष से तंत्रिका तंत्र से संबंधित रोगों ब्लड प्रेशर हृदयगति, होम्योपैथिक आदि कई जीवन रक्षक दवाएँ बनाई जाती हैं। इसलिए साँप का जहर हीरे से कम कीमती नहीं होता।

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कुछ अत्यधिक महँगे जहर हैं। अफ्रीका के बूमस्लंगए साँप का जहर दो लाख रुपये प्रति ग्राम तथा बमलेंबी साँप का जहर पाँच लाख रुपये प्रति ग्राम है।


साँप के विष के उपचार-

अगर ज़हर के लक्षण हों, तो प्रति साँप ज़हर और अन्य प्रतिकारक दिए जाते हैं।
अगर साँस लेने में मुश्किल होने लगे तो जीवन बचाने वाले उपाय करने पड़ते हैं।
साँप के विष की प्रतिरोधी दवा ए.एस.वी कहलाती है।

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ए.एस.वी. में भारत में पाए जाने वाले सभी ज़हरीले साँपों के ज़हर के विरुद्ध सीरम होता है। साँप के ज़हर को, इन्जैक्शन देकर और उनके खून में से प्रोटीन निकाल कर इसे बनाया जाता है। ए.एस.वी. एक सफेद रंग के चूर्ण के रूप में छोटी सी शीशी में मिलता है। इस्तेमाल करने से पहले इसे जीवाणु रहित किए हुए पानी में मिला लिया जाता है। इसकी तीन या उससे ज़्यादा खुराक चाहिए होती हैं। ए.एस.वी. अंत:शिरा या अंत:पेशीय ढंग से दिया जाता है। ए.एस.वी. से साँप का ज़हर कट जाता है। परन्तु अगर मस्तिष्क के केन्द्रों तक कोई ज़हर पहुँच जाए तो वो इससे नहीं कट पाता है। इसलिए ए.एस.वी. जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी देना चाहिए।

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ए.एस.वी. से घातक प्रतिक्रिया भी हो सकती है- ए.एस.वी. से मौत तक हो सकती है क्योंकि यह किसी और जानवर (घोड़े) से लिया हुआ प्रोटीन होता है। यह प्रतिक्रिया कुछ कुछ पैन्सेलीन से होने वाली प्रतिक्रिया जैसी होती है। इसलिए इसका इलाज भी कुछ कुछ वैसा ही होता है। इसी प्रतिक्रिया के कारण से स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के लिए इसे देना थोड़ा खतरे वाला होता है। पर अगर ज़हरीले साँप ने ही काटा हो और कहीं से भी कोई भी मदद नहीं मिल रही हो तो ए.एस.वी. देने का खतरा उठाना ही पड़ता है। देरी होने पर मौत होने की तुलना में प्रतिक्रिया होने की संभावना कम होती है। ऐसे स्वास्थ्य कार्यकर्ता को ज़रूर पता होना चाहिए कि ऐनाफिलेक्टिक प्रतिक्रिया का इलाज कैसे करना होता है।

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कभी कभी साँप काटने की जगह लंबे अर्से तक घाव बन जाते हैं। सभी तरह के साँप के काटने में गंभीर ऊतक क्षति (ऊतकों की मौत) होने की संभावना होती है। यह विष कोशिकाओं को बड़ा नुकसान पहुँचा देते हैं। एक या दो दिनों में गंभीर सूजन, दर्द, खून बहने, संयोजक ऊतिशोथ और त्वचा के काला पड़ना आदि प्रभाव दिख सकते हैं। ऐसे घाव में अल्सर भी हो जाता है और इसके ठीक होने में कई हफ्ते लग सकते हैं। नियमित रूप से घाव की देखभाल करने और प्रति जीवाणु दवाएँ देने से फायदा होता है। करैत के काटने से ऐसे स्थानीय प्रभाव बहुत कम होते हैं।

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गाँवों में साँप का काटना एक गंभीर दुर्घटना होती है। परन्तु गाँव में इलाज की सुविधा नहीं के बराबर होती है। अच्छी प्राथमिक चिकित्सा अगर सही समय पर मिल जाए तो ६० से ७० प्रतिशत लोगों की जान बच सकती है।

१७ अगस्त २०१५

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