इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-1
बाँस पर केंद्रित गजल, दोहे और हाइकु विधाओं में अनेक रचनाकारों मनमोहक
रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- मौसम है शीतल पेय का और हमारी रसोई-संपादक
शुचि लेकर आई हैं संतरे अनन्नास और आम से से बना विशेष व्यंजन-
ग्रीष्म उत्सव।
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बागबानी में-
आसान सुझाव जो बागबानी को उपयोगी और रोचक बनाने
में उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं-
१७- कीट नाशक
दवा |
जीवन शैली में-
कुछ आसान सुझाव जो व्यस्त जीवन में, जल्दी वजन घटाने के लिये सहायक हो सकते हैं-
२०- धैर्य,
निरंतरता, विश्वास
|
सुंदर घर-
घर को सजाने के कुछ उपयोगी सुझाव जो आपको घर के रूप रंग को आकर्षक बनाने में काम आएँगे-
१६-
अपना कोना एक |
- रचना व मनोरंजन में |
क्या
आप
जानते
हैं-
आज
के दिन-
(२५ मई को) रासबिहारी बोस, अभिनेता मुरली, निर्माता निर्देशक करन
जौहर, गायक कुणाल खेमू...
विस्तार से
|
नवगीत संग्रह- में इस सप्ताह
प्रस्तुत है- डॉ. संतोष कुमार तिवारी की कलम से वीरेन्द्र आस्तिक के नवगीत संग्रह-
दिन क्या बुरे थे का परिचय। |
वर्ग पहेली- २३८
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और
रश्मि-आशीष
के सहयोग से |
हास परिहास
में पाठकों
द्वारा
भेजे गए चुटकुले |
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साहित्य एवं
संस्कृति
में- |
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है
श्रीनिवास वत्स की कहानी
पदोन्नति
सुनंदन
बाबू अपनी पदोन्नति से जितना प्रसन्न थे, उससे कहीं अधिक खुशी
उनकी पत्नी एवं बच्चों के चेहरों से झलक रही थी। कितने दिन यों
घुट-घुटकर काट दिए। सामने वाले चौबे जी के मकान में जो लेखा
अधिकारी रहता है, उसकी पत्नी बात-बात में अफसरी का रौब झाड़ती
रहती। दोपहर को धूप सेंकने के लिए पास-पड़ोस की सभी औरतें चौबे
जी के घर के बाहर लॉन में बैठ जातीं। चाय की चुस्कियों के बीच
मकान मालिक और किराएदार का भेद मिट जाता था।
चौबे जी सरकारी ठेकेदार हैं। अच्छा पैसा कमा लिया है।
पूरे मुहल्ले में उनकी अव्वल कोठी से यही प्रदर्शित होता है।
रस्तोगी जी बैंक में लेखाकार हैं और चौबे जी के बगल
वाले मकान में किराएदार हैं।
श्रीमती गिरिजा जैन अपने पति के पद से ज्यादा उनके मधुर स्वभाव
से संतुष्ट हैं। जैन साहब हायर सेकेंडरी स्कूल में विज्ञान के
अध्यापक हैं। स्कूल से अधिक समय बच्चों को घर पर
देते हैं। ट्यूशन से होने वाली प्रचुर आय के
साथ-साथ घरेलू कार्यों में मीन-मेख निकालने की...
आगे-
*
दीपक दुबे का व्यंग्य
मंगल ग्रह पर भोलाराम का
जीव
*
राजेन्द्रशंकर भट्ट का आलेख
गंगा भारत की
सस्कृति है
*
डॉ अशोक उदयवाल की कलम
से
करेले में कमाल के गुण
*
पुनर्पाठ में अभिज्ञात की
आत्मकथा
तेरे
बगैर का सातवाँ भाग |
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आलोक सक्सेना का व्यंग्य
हमारी सोसायटी में राजन के जलवे
*
बुद्धिनाथ मिश्र का ललित निबंध
फूल आए हैं कनेरों में
*
राजेन्द्र शंकर भट्ट का
आलेख
विभिन्न धर्मों में जल प्रलय की कहानी
*
पुनर्पाठ में अभिज्ञात की
आत्मकथा
तेरे
बगैर का छठा भाग
*
गौरवगाथा में प्रस्तुत है
फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी
ठेस
खेती-बारी
के समय, गाँव के किसान सिरचन की गिनती नहीं करते। लोग उसको
बेकार ही नहीं, 'बेगार' समझते हैं। इसलिए, खेत-खलिहान की
मजदूरी के लिए कोई नहीं बुलाने जाता है सिरचन को। क्या होगा,
उसको बुला कर? दूसरे मजदूर खेत पहुँच कर एक-तिहाई काम कर
चुकेंगे, तब कहीं सिरचन राय हाथ में खुरपी डुलाता दिखाई पड़ेगा
- पगडंडी पर तौल तौल कर पाँव रखता हुआ, धीरे-धीरे। मुफ्त में
मजदूरी देनी हो तो और बात है।
...आज सिरचन को मुफ्तखोर, कामचोर या चटोर कह ले कोई। एक समय
था, जबकि उसकी मड़ैया के पास बड़े-बड़े बाबू लोगो की सवारियाँ
बँधी रहती थीं। उसे लोग पूछते ही नहीं थे, उसकी खुशामद भी करते
थे। '...अरे, सिरचन भाई! अब तो तुम्हारे ही हाथ में यह कारीगरी
रह गई है सारे इलाके मे। एक दिन भी समय निकाल कर चलो।
कल बड़े भैया की चिट्ठी आई है शहर से - सिरचन से एक जोड़ा चिक
बनवा कर भेज दो।'... आगे-
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