इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-1पवन
प्रताप सिंह पवन, मालिनी गौतम, नीरज कुमार नीर,
टीकमचंद ढोडरिया और सीतेश चंद्र श्रीवास्तव की
रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- मौसम है शीतल पेय का और हमारी रसोई-संपादक
शुचि लेकर आई हैं पेय की विशेष शृंखला में- तरबूज से बना -
शीतल तरबूजिया। |
बागबानी में-
आसान सुझाव जो बागबानी को उपयोगी और रोचक बनाने
में उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं-
११-
केले के छिलकों के लिये गुलाबों की क्यारी
|
जीवन शैली में-
कुछ आसान सुझाव जो व्यस्त जीवन में, जल्दी वजन घटाने के लिये सहायक हो सकते हैं-
१४- रसोईघर को पुनर्व्यवस्थित करें |
सुंदर घर-
घर को सजाने के कुछ उपयोगी सुझाव जो आपको घर के रूप रंग को आकर्षक बनाने में काम आएँगे-
१०- जगह
का पूरा उपयोग |
- रचना व मनोरंजन में |
क्या-आप-जानते-हैं--आज-के-दिन-(१३-अप्रैल-को)-निर्देशक
सतीश कौशिक, राजनयिक नजमा हेप्तुल्ला, कवि कुमार अंबुज का जन्म हुआ था...
विस्तार से |
नवगीत संग्रह- में इस सप्ताह
प्रस्तुत है- आचार्य संजीव सलिल की कलम से मधुकर अष्ठाना के नवगीत संग्रह-
वक्त आदमखोर का परिचय। |
वर्ग पहेली- २३२
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और
रश्मि-आशीष
के सहयोग से |
हास परिहास
में पाठकों
द्वारा
भेजे गए चुटकुले |
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साहित्य एवं
संस्कृति
में- होली के अवसर पर |
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है भारत से
प्रतिभा की कहानी- आप
हमेशा रहेंगे
प्यारे
पप्पा,
सब कह रहे हैं आप नहीं रहे।
पर मुझे ऐसा नहीं लगता क्योंकि आपकी खुशबू हर पल सारे घर में
फैली रहती है। हर कमरे में, तीनों बालकनी में, हर जगह। आपकी
खुशबू दुनिया के हर फूल की खुशबू से अलग है बिलकुल आपकी तरह।
सारा घर हर पल उससे महकता रहता है। मुझे तो हमेशा यह लगता है
कि आप अभी पीछे से आ जाएँगे और मुझे ज़ोर से धप्पा करेंगे। फिर
खिलखिलाकर मुझे उठा लेंगे, पूरे के पूरे घूम जाएँगे और फिर
ज़ोर से एक पप्पी लेंगे...फिर लेंगे...फिर लेंगे और लेते ही
जाएँगे। आपको ये ध्यान ही नहीं रहेगा कि अब मैं बड़ी हो गई हूँ
गुड़िया नहीं रही। घर में सबकी सुबहें बहुत उदास हैं बिल्कुल
नंगे पेड़ जैसी। पर मैं सुबह आँखें खोलती हूँ तो आप रोज़ की
तरह सफ़ेद गुलाब को पानी देते हुए दिखते हैं, स्टडी रूम में
जाती हूँ तो आप किताबों पर झुके हुए मिलते हैं, बालकनी में
जाती हूँ तो आप कुछ सोचते हुए, चिन्तन-मनन करते हुए धीरे-धीरे
चलते हुए दिखते हैं। आपका लगातार शून्य में...
आगे-
*
डॉ. मनोहरलाल का व्यंग्य
नर से भारी नारी
*
डॉ. परशुराम शुक्ल का आलेख
साँप हमारा मित्र है
*
सुनील मिश्र की कलम से
गाते रहें हम खुशियों के गीत- गुलशन बावरा
*
पुनर्पाठ में अभिज्ञात की
आत्मकथा
तेरे
बगैर का तीसरा भाग |
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राजेन्द्र वर्मा की
लघुकथा-
बेटा
*
लीना मेंहदले का आलेख-
करोड़ों के मधुमेह का आयात
*
जियालाल आर्य की कलम से
शिगनापुर के
शनिदेव
*
पुनर्पाठ में अभिज्ञात की
आत्मकथा
तेरे
बगैर का तीसरा भाग
*
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है भारत से
जयनंदन की कहानी-
अपदस्थ
पति
वह
अपने को भोंदू, नालायक, शरीफ या नामर्द समझे कि उसके ही घर में
रहकर उसकी बीवी दूसरे से प्रेम करती रही और उसे आज मालूम हुआ
जब उसने खुलकर इकरार करते हुए साफ-साफ बता दिया,"मैं तुम्हें
छोड़कर जा रही हूँ सुमित के पास।" आमिष यों चौंका था जैसे एक
झटके में उसके सबसे बड़े विश्वास पात्र द्वारा उसके भीतर का जमा
सारा भरोसा छीन लिया गया हो। भूमिका से सगा कोई न था उसके लिए।
जो सबसे बढ़कर सगा, उसी के द्वारा इतना बड़ा छल मानो खुद पैर के
नीचे की जमीन कह रही हो कि मैं अब तुम्हारा आधार नहीं। मुँह के
बल धक्का खाकर मानो लहूलुहान हो गया वह। उसने अपने मर्मांतक
कष्ट और अधैर्य को सँभालने की कोशिश करते हुए पूछा,"सुमित के
पास जा रही हो...तुम मेरी कौन हो और किस उम्र में हो यह तो याद
है तुम्हें?" "सब कुछ याद है
मुझे। शादी के पहले से हम दोनों एक-दूसरे को प्रेम कर रहे हैं।
अपने-अपने माँ-बाप की मर्जी पर शादी करते समय...
आगे-
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