इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-1मधकर
गौड़, पंकज कुमार मिश्र वात्स्यायन, सुशांत सुप्रिय, राम शिरोमणि पाठक और सौरभ
आर्य की
रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- मौसम है शीतल पेय का और हमारी रसोई-संपादक
शुचि लेकर आई हैं पेय की विशेष शृंखला में- फलों के रस का -
आम मधुरिमा। |
बागबानी में-
आसान सुझाव जो बागबानी को रोचक बनाने
में उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं-
९- मिट्टी की जाँच |
जीवन शैली में-
कुछ आसान सुझाव जो व्यस्त जीवन में, जल्दी वजन घटाने के लिये सहायक हो सकते हैं-
१२- सुबह का नाश्ता ३०० कैलोरी |
सुंदर घर-
घर को सजाने के कुछ उपयोगी सुझाव जो आपको घर के रूप रंग को आकर्षक बनाने में काम आएँगे-
८- धूप से
निखरे रूप |
- रचना व मनोरंजन में |
क्या-आप-जानते-हैं-
आज के दिन (३० मार्च को) बाँग्ला लेखक शारदिंदु बंधोपाध्याय, अभिनेत्री देविका
रानी, निर्देशक अभिषेक-चौबे-का-जन्म-हुआ-था।...
विस्तार से |
नवगीत संग्रह- में इस सप्ताह
प्रस्तुत है- संजीव सलिल की कलम से जगदीश पकज के नवगीत संग्रह-
सुनो मुझे भी का परिचय। |
वर्ग पहेली- २३०
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और
रश्मि-आशीष
के सहयोग से |
हास परिहास
में पाठकों
द्वारा
भेजे गए चुटकुले |
|
साहित्य एवं
संस्कृति
में- होली के अवसर पर |
गौरवगाधा में प्रस्तुत
है भारत से
निर्मल वर्मा की कहानी-
परिंदे
अँधेरे
गलियारे में चलते हुए लतिका ठिठक गयी। दीवार का सहारा लेकर
उसने लैम्प की बत्ती बढ़ा दी। सीढ़ियों पर उसकी छाया एक बैडौल
कटी-फटी आकृति खींचने लगी। सात नम्बर कमरे में लड़कियों की
बातचीत और हँसी-ठहाकों का स्वर अभी तक आ रहा था। लतिका ने
दरवाजा खटखटाया। शोर अचानक बंद हो गया। “कौन है?" लतिका चुप
खड़ी रही। कमरे में कुछ देर तक घुसर-पुसर होती रही, फिर दरवाजे
की चिटखनी के खुलने का स्वर आया। लतिका कमरे की देहरी से कुछ
आगे बढ़ी, लैम्प की झपकती लौ में लड़कियों के चेहरे सिनेमा के
परदे पर ठहरे हुए क्लोजअप की भाँति उभरने लगे। “कमरे में
अँधेरा क्यों कर रखा है?" लतिका के स्वर में हल्की-सी झिड़की
का आभास था। “लैम्प में तेल ही खत्म हो गया, मैडम!" यह सुधा का
कमरा था, इसलिए उसे ही उत्तर देना पड़ा। होस्टल में शायद वह
सबसे अधिक लोकप्रिय थी, क्योंकि सदा छुट्टी के समय या रात को
डिनर के बाद आस-पास के कमरों में रहनेवाली लड़कियों का जमघट
उसी के कमरे में लग जाता था।
आगे-
*
दीपक दुबे के साथ मनोरंजन
नो उल्लू बनाईंग
*
प्रमोद कोव्वप्रत का विवेचनात्मक
अध्ययन
परिंदे:नियति का अँधेरा और उजाले की तलाश
*
डॉ. अनिल से पर्यटन में
जानें
समृद्ध परंपराओं
का प्रदेश हरियाणा
*
पुनर्पाठ में राजेन्द्र तिवारी का
संस्मरण-
शिमला में
घुला निर्मल |
|
ज्योतिर्मयी पंत की
लघुकथा- प्रायश्चित
*
डॉ. अशोक उदयवाल की कलम से
जिमिंकंद स्वस्थ लोगों की पसंद
*
रामलाल शर्मा का आलेख
वाल्मीकि
रामायण में शकुन चर्चा
*
पुनर्पाठ में जानें
दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों में बसी रामकथा
*
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है भारत से
संजीव दत्त शर्मा की कहानी-
नानी कितनी खुश होतीं
आखिरकार
नानी चल बसीं। कंधा देने वाले चार लोग थे और साथ में छह-सात
लोग और। कुल मिलाकर एक दर्जन से कम। वो इसलिए कि नानी कोई बड़ी
हस्ती तो थीं नहीं। नानी जैसे लोग बगैर हल्ले-गुल्ले के निकल
जाते हैं। अखबार में न तो उठावने का विज्ञापन छपाने की जरूरत
होती है, न ही उनकी फोटो के साथ क्रिया का विज्ञापन छपाने की।
लेकिन नानी की मौत पर कुछ लिखना इसलिए जरूरी लग रहा है कि एक
साधारण घरेलू औरत होने के बावजूद नानी कई मामलों में बड़ी
असाधारण थीं। नानी ने भरपूर जिंदगी पाई। नब्बे बरस की उम्र कोई
कम तो नहीं होती और एक लंबी जिंदगी में जो कुछ अच्छा-बुरा कोई
देख सकता है वो नानी ने भी देखा। नानी पैदा हुई थी लाहौर के
नजदीक एक गाँव में, खानदानी पटवारियों के परिवार में। परिवार
पटवारियों का था इसलिए घर में पैसा भी था, जमीन भी थी और घोड़े
भी थे। नानी को घोड़े की सवारी बखूबी आती थी। जब नानी की शादी
हुई तब नाना खूबसूरत जवान थे।...
आगे-
|
|