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स्वाद और स्वास्थ्य

जिमिकंद स्वस्थ लोगों की पसंद  

 
 क्या आप जानते हैं?

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पापुआ, न्यू गिनी के पास टोब्रियांड में किसान अपने सुंदर बगीचों में जिमिकंद की अच्छी पैदावार के लिये जादू का प्रयोग करते थे।
 

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जापान में एक समय में जिमिकंद को यामियानो मूल के नाम से जाना जाता था। इस विशिष्ट व्यंजन को खाने का अधिकार केवल गिने चुने अति विशिष्ट व्यक्तियों को ही था।
 

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जिमिकंद की फसल को प्रोत्साहित करने के लिये घाना में जिमिंकद उत्सव को एक वार्षिक आयोजन के रूप मे मनाया जाता है।

रूप रंग-

जिमिकंद एक गुणकारी व उपयोगी वनस्पति है। इसके पत्ते २-३ फुट लम्बे, गहरे हरे रंग के व हल्के हरे धब्बे वाले होते हैं। इसकी पत्तियाँ अनेक छोटी छोटी लंबोतरी गोल पत्तियों से गुच्छों में घिरी होती हैं। इसका कन्द चपटा, अण्डाकार और गहरे भूरे व बादामी रंग का होता है। वसंत के प्रारंभ में इसके पौधे में हल्के बैंगनी या गहरे गुलाबी रंग के सुंधित फूल खिलते हैं। नये पौधे में फल आने में ३-४ साल लगते हैं। यह सदा हरित पौधा अम्लीय मिट्टी में जमीन या गमलों में उगाया जा सकता है। इसे खरीदते समय ध्यान रखना चाहिये कि यह हाथ का त्वचा से रगड़ न जाय क्यों कि ऐसा होने से हाथ में तेज खुजली शुरू हो सकती है।
 

इतिहास-

पाश्चात्य स्रोतों के अनुसार ईसा से लगभग ८००० वर्ष पूर्व, मध्य एवं दक्षिण अमरीका में जिमिकंद का जन्म माना जाता है। प्राचीन काल में विदेशों में केवल इसकी पत्तियाँ का प्रयोग औषधि के रूप में किया जाता था। बाद में इसका कंद भी खाया जाने लगा। लेकिन संस्कृत में इसका उल्लेख होने के कारण इसका इतिहास और अधिक पुराना माना जा सकता है। आजकल जिमिकंद की पत्तियाँ सामान्य रूप से अनेक अफ्रीकी और एशियाई व्यंजनों में प्रयोग में लाई जाती हैं। जिमिकंद धूप तथा छाँह में उपयुक्त मिट्टी और नमी मिलने पर उष्णकटिबंधीय तथा उपउष्ण कटिबंधीय जलवायु में सहजता से उगाया जा सकता है। चीनी दवाओं में जंगली जिमिकंद के प्रयोग के उल्लेख बहुत प्राचीन काल से ही मिलते हैं। अमेरिकी जनजातियाँ भी मधुमेह, दमा, उल्टी और गठिया के लिये इनका प्रयोग करती रही हैं। फिलीपीन में इसकी पत्तियों को स्वास्थ के लिये उपयोगी समझा जाता है।
 

विभिन्न भाषाओं में-

जिमिकंद को संस्कृत में सूरण, हिन्दी में सूरन, जिमिकंद, जिमीकंद व मराठी में गोडा सूरण तथा बांग्ला में ओल और कन्नड़ में सुवर्ण गडड़े तेलुगू में कन्डा डूम्पा कहा जाता है। आकार में बड़ा होने के कारण तथा हाथी के पंजे से आकृति की समानता के कारण अंग्रेजी में इसे एलिफेंट याम या एलिफेंटफुट याम कहते हैं। फारसी में ज़मीकंद व लैटिन में इसे एमोर्फोफेलस कैम्पेन्युलेटस के नाम से जाना जाता है। इसका एक नाम रतालू भी है।

रोचक तथ्य-

तेरापंथ नामक एक धार्मिक संप्रदाय में जिमिकंद को साधक के लिये हानिकारक समझा जाता है तथा वे लोग जिमिकंद के त्याग का व्रत लेते हैं। अनेक संप्रदायों में प्याज लहसुन के साथ साथ जिमिकंद से दूर रहने की सलाह दी जाती है। अनेक जैन धर्म का पालन करने वाले साधक, जो जमीन के भीतर उगने वाली सब्जियाँ नहीं खाते हैं जिमिकंद का भी त्याग करते हैं। पापुआ, न्यू गिनी के पास टोब्रियांड में किसान अपने सुंदर बगीचों में जिमिकंद की अच्छी पैदावार के लिये जादू का प्रयोग करते थे। जापान में एक समय में जिमिकंद को यामियानो मूल के नाम से जाना जाता था। इस विशिष्ट व्यंजन को खाने का अधिकार केवल गिने चुने अति विशिष्ट व्यक्तियों को ही था। जिमिकंद की फसल को प्रोत्साहित करने के लिये घाना में जिमिंकद उत्सव को एक वार्षिक आयोजन के रूप मे मनाया जाता है। भारत में दीपावली के अवसर पर भोजन में जिमिकंद बहुत महत्व है। कोरिया में जिमिकंद की पत्तियाँ नामुल नाम के एक पारंपरिक व्यंजन की प्रमुख सामग्री हैं। इन्हें सोया सॉस, लहसुन, अदरक, तिल के तेल, प्याज और टमाटर के साथ काफी स्वादिष्ट करी तैयार होती है।

आयुर्वेद में-

आयुर्वेदिक मतानुसार जिमिकंद अग्निदीपक, रूखा, कसैला, खुजली करने वाला, रुचिकारक विष्टम्मी, चरपरा, कफ व बवासीर रोगनाशक है। प्लीहा के विकार और गुल्म को नष्ट करता है। दाद, रक्तपित्त तथा कुष्ठ रोग के रोगी के लिए हितकर नहीं है। यह विपाक में कटु और उष्णवीर्य है।

रासायनिक तत्व-

इसके रासायनिक संघटन में इसके कन्द में आर्द्रता ७८.७ प्रतिशत, प्रोटीन १.२ प्रतिशत, वसा ०.१ प्रतिशत, कार्बोहाइड्रेट १८.४ प्रतिशत, खनिज द्रव्य ०.८ प्रतिशत, कैल्शियम ०.०५ प्रतिशत, फॉसफोरस ०.०२ प्रतिशत तथा लौह ०.४ मि.ग्रा. व इनके अतिरिक्त विटामिन ‘ए’ व ‘बी’ भी होते हैं। इसमें ओमेगा-३ काफी मात्रा में पाया जाता है,  यह विटामिन बी-६ का अच्‍छा स्रोत है तथा रक्तचाप को नियंत्रित कर के हृदय को स्वस्थ रखता है। यह खून के थक्के जमने से रोकता है, इसमें एंटीऑक्‍सीडेंट, विटामिन सी और बीटा कैरोटीन पाया जाता है जो कैंसर पैदा करने वाले फ्री रैडिकलों से लड़ने में सहायक होता है। इसमें अच्‍छी मात्रा में पोटैशियम होता है जिससे पाचन में सहायता मिलती है।  इसमें ताँबा पाया जाता है जो लाल रक्‍त कोशिकाओं को बढ़ा कर शरीर में रक्त के बहाव को दुरुस्त करता है। इसमें स्थित ऑस्ट्रोजन महिलाओ में हार्मोन-संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।

घरेलू उपचार-

खूनी बवासीर में जिमिकंद को धोकर साफ करने के पश्चात् इसकी मिट्टी अलग करके पानी से धोकर साफ करके धूप में सुखा लें और सूख जाने पर कूट-पीसकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण दिन में दो बार एक-एक चम्मच भरकर पानी के साथ फाँकने से बवासीर में लाभ होता है। इसकी सब्जी बनाकर या इसके टुकड़ों को नमक व तेल लगाकर खाने से भी बवासीर रोग में फायदा होता है। यह यकृत की क्रियाओं को सुचारू करने के अतिरिक्त वायु का अनुलोमन व बवासीर के मस्सों का संकुचन करने में लाभकारी है। कीड़ा काटने पर जिमिकंद को पकाकर इसकी पुल्टिस बनाकर कीड़े द्वारा काटे गए स्थान पर बाँधने से जहरीले कीड़ों का जहर उतर जाता है। यह कृमिनाशक व पोषक कन्द है। इसे अलर अल्‍सर, फोड़े-फुंसी या अन्‍य चर्म रोग पर लगाया जाए तो लाभ मिलता है। साथ ही यह कफ और साँस की समस्‍या को भी दूर करता है। इसे गठिया में भी लाभप्रद पाया गया है। इसके नियमित सेवन से कब्‍ज और ऊँचे कोलेस्‍ट्रॉल की समस्‍या दूर हो जाती है। इसके साथ ही जिमीकंद खाने से स्मरण शक्ति अच्छी हो जाती है, दिमाग तेज बनता है और अल्‍जाइमर रोग से सुरक्षा मिलती है। सावधानी- गर्म तासीर के लोगों को ग्रीष्मकाल में इसका सेवन नहीं करना चाहिए।

२३ मार्च २०१५

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