अभिव्यक्ति-समूह : फेसबुक पर

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१७. ११. २०१४

इस सप्ताह-

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अनुभूति में
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रामनारायण रमण, प्राण शर्मा, ब्रज श्रीवास्तव, संजीव सलिल, शांति चौधरी की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- सर्दियों की शुरुआत हो रही है और हमारी रसोई-संपादक शुचि लाई हैं स्वास्थ्यवर्धक सूपों की शृंखला में गर्मागरम- टमाटर का सूप

गपशप के अंतर्गत- बच्चों के खिलौनों का सुखद संसार! पर क्या यह उनके लिये लाभदायक हैं जानें गृहलक्ष्मी से- जब बिस्तर खिलौनों से भर जाए

जीवन शैली में- १० साधारण बातें जो हमारे जीवन को स्वस्थ, सुखद और संतुष्ट बना सकती हैं - ८. मस्कुराने का प्रयत्न करें

सप्ताह का विचार- बच्चों को पालना, उन्हें अच्छे व्यवहार की शिक्षा देना भी सेवाकार्य है, क्योंकि यह उनका जीवन सुखी बनाता है। - स्वामी रामसुखदास

- रचना व मनोरंजन में

क्या-आप-जानते-हैं- आज के दिन (१७ नवंबर को) पेरियार ई.वी. रामास्वामी नायकर, देबकी बोस, जैमिनी गणेशन, अभिनेत्री कीर्ति रेड्डी और... विस्तार से

लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत- अभिव्यक्ति के पुराने अंकों से- १६ जनवरी २००६ को प्रकाशित ज्ञानप्रकाश विवेक की कहानी- बच्चा

वर्ग पहेली-२११
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और रश्मि-आशीष
के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-
कीर्तीश की कूची से

अपने विचार यहाँ लिखें

साहित्य एवं संस्कृति में- बाल दिवस विशेषांक में

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
 शीला इंद्र की कहानी- उड़नखटोला

बड़े ताऊजी कलकत्‍ते से लौटे। सुबह ही सुबह उनको मंजन के लिए लोटे से पानी देते–देते नौ वर्ष के विजय ने एक बड़ी अजीब बात बड़े ही रहस्‍यपूर्ण स्‍वर में उन्‍हें सुनाई- “आपको पता है, ताऊजी? आजकल घर में से पैसे बहुत गायब हो रहे हैं!”
मुँह में भरा मंजन थूकते हुए बड़े ताऊजी ने हैरान होकर पूछा, “पैसे गायब हो रहे हैं! कैसे? कौन कर रहा है?”
“यही तो पता नहीं कि कौन कर रहा है,” विजय ने परेशान होते कहा, “पर जब से आप गए हैं बहुत से पैसे गायब हो चुके हैं। दादी ने पानदान में सुबह को पाँच रुपये का नया-नया नोट रखा था, सो शाम को गायब हो गया। बड़ी ताईजी के बटुए में से भी दो रुपये एक बार, साढ़े तीन एक बार किसी ने निकाल लिये... और भी बहुत से पैसे रोज ही गायब हो जाते हैं।“
कुल्‍ला-मंजन करना मुसीबत हो गया बड़े ताऊजी को। जल्‍दी-जल्‍दी किसी प्रकार मुँह-हाथ धो कर अंदर गए। भीतर विजय की माँ और चाची ताऊजी के लिये नाश्‍ता लगाकर बाहर भेज रही थीं।
आगे-
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रेणु सहाय की बालकथा
सूरज और बादल
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जयप्रकाश भारती का आलेख
नीति और चतुराई से भरी कहानियाँ
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नताशा अरोड़ा से समझें
बाल रंगमंच की सार्थकता

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पुनर्पाठ में देवेन्द्र कुमार देवेश
का आलेख-
बाल पत्रिकाओं की भूमिका और दायित्व

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पिछले सप्ताह-

राहुल देव की लघुकथा
जलेबी
*

मालती शर्मा से संस्कृति में
गौ, गोवर्धन, जीवन धन- गोबर संस्कृति की सार्थकता
*

डॉ. अशोक उदयवाल से जानें
अनन्नास के अनोखे लाभ

*

पुनर्पाठ में कनीज भट्टी का आलेख
रूप का रखवाला घूँघट
*

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
 डॉ नरेन्द्र शुक्ला की कहानी- सजा

तुम्हारा नाम क्या है? कटघरे में खड़े खूंखार से दिखने वाले मुज़रिम से सफाई वकील ने पूछा।
विक्की उस्ताद। मुज़रिम ने होंठ चबाते हुये कहा।
तो तुमने कलक्टर साहिबा पर गोली चलाई?
हाँ, चलाई गोली। विक्की उस्ताद ने सीना तानकर कहा।
मगर क्यों? सफाई वकील ने पूछा।
विक्की जज साहिबा को देख रहा था। कोई जवाब नहीं दिया।
मैं पूछता हूँ कि तुमने कलक्टर साहिबा पर गोली क्यों चलाई? इस बार वकील साहब ने थोड़ी सख़्ती दिखाई।
पैसा मिला था। विक्की ने बिना किसी लाग-लपेट के सहज ही कह दिया।
किसने दिया पैसा? वकील साहब ने अगला सवाल किया।
उसने कोई उत्तर नहीं दिया। वह लगातार जज साहिबा को देखे जा रहा था।

आगे-

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी -|- मीनाक्षी धन्वंतरि
 

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