गुस्से में सूरज आगबबूला
हो रहा था। मुँह से फूँ-फूँ कर के गरम हवाएँ छोड़ रहा
था। डर के मारे सभी अपने अपने घर में बंद रहते दिन भर।
चिंटू भी अपनी माँ के साथ लिपट कर सो गया।
कहाँ है बादल? कहाँ है बादल? चीख- चीख कर सूरज बादल को
बुला रहा था। कामचोर बादल भी गर्मी के मारे कहीं छिप
कर सो रहा था। सूरज की आवाज सुन कर हड़बड़ा कर उठा और
सूरज के पास हाथ बाँध कर खड़ा हो गया।
"हूँ..., कामचोर कहीं के,
कहाँ छुप कर सो रहे थे? और यह क्या मरियल जैसी हालत
बना रखी है? कहाँ गया तुम्हारा बड़ा सा काला थैला।
देखते नहीं किसान और सारी प्रजा तुम्हारी बाट जोह रहे
हैं? चलो जाओ अपना काम करो।"
जी सूरज दादा, और झट-पट
अपनी पिचकी सी थैली ले कर दौड़ पड़ा। दौड़ता हुआ पहले वह
नदियों के पास गया।
नदी रानी, नदी रानी, तुम्हारे पास कितना है पानी,
मेरी थैली है खाली, थोड़ा इसमें भी भर दो पानी।
नदी ने उसे सहर्ष थोड़ा
पानी दे दिया। बादल का थैला अभी भी खाली था। अब वह
सागर के पास गया।
सागर भईया, सागर भईया, तुम्हारे पास कितना पानी,
मेरी थैली है खाली, थोड़ा इसमें भी भर दो पानी।
सागर ने भी उसे ढेर सारा
पानी दे दिया। अब उसका थैला आधा भर गया। आधा थैला अभी
भी बाकी था। अब वह ताल, तलैया, झरने, कुएँ सब से पानी
माँग लाया। अब बादल का थैला काफी भर गया था, उसका रंग
भी काला हो गया था। थैले में थोड़ी जगह और बची है, थोड़ा
पानी और मिल जाता तो वह भी भर जाता।
छत पर चिंटू की मम्मी ने कपड़े धो कर फैलाये थे, उनका
पानी भी खींच लिया। चिंटू ने पानी पी कर गिलास में आधा
छोड़ दिया था उसे भी खींच कर थैले में भर लिया। और कहाँ
से लूँ, और पानी कहाँ से लूँ? सड़क के गड्ढे में जमा
पानी नजर आया, उसे भी खींच कर थैले में भर लिया। उस
गड्ढे में रहने वाली मेढकी उछल कर झाडियों में जा
छिपी।
अब थैला बिलकुल भर चुका था और इतना भारी हो गया था कि
उसे ले कर उड़ना मुश्किल हो गया। जैसे-तैसे गड़गड़- गड़गड़
चिल्लाता हुआ वह किसी तरह उड़ने लगा। इतने में सामने
पहाड़ आ गया। इतना भारी थैला पहाड़ से जा टकराया, बस
थैला फट गया और उसमे भरा पानी झम- झमा-झम कर के नीचे
गिरने लगा।
बादल फिर अपनी फटी हुई
थैली को सी-कर उसमें पानी लाने चल पड़ा।
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रेणु सहाय |