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१३ . १०. २०१४

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
हरीश भादानी, चंद्रशेखर पांडेय शेखर, सरोजिनी प्रीतम, श्यामल सुमन और राजीव कुमार श्रीवास्तव की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- हमारी रसोई-संपादक शुचि ने इस अंक के लिये चुने हैं- दीपावली की तैयारी में विशेष व्यंजनों के अंतर्गत- राज कचौरी

गपशप के अंतर्गत- उत्सवों के हुड़दंग और खाने-पीने के बीच थकान से बचे रहना एक चुनौती है। इसलिये पहले से तैयारी रखें और पढ़ें- उफ यह थकान

जीवन शैली में- १० साधारण बातें जो हमारे जीवन को स्वस्थ, सुखद और संतुष्ट बना सकती हैं - ३. अच्छे मित्र और परिवार से बढ़कर कुछ भी नहीं।

सप्ताह का विचार-
बूढा होना कोई आसान काम नहीं। इसे बड़ी मेहनत से सीखना पड़ता है। --निर्मल वर्मा

- रचना व मनोरंजन में

क्या-आप-जानते-हैं- कि आज के दिन (१३ अक्तूबर को) भारत के क्रिकेट टेस्ट कप्तान सी.के. नायडू, अभिनेता अशोक कुमार, भगिनी निवेदिता... विस्तार से

धारावाहिक-में- लेखक, चिंतक, समाज-सेवक और प्रेरक वक्‍ता, नवीन गुलिया की अद्भुत जिजीविषा व साहस से भरपूर आत्मकथा- अंतिम विजय का दसवाँ भाग

वर्ग पहेली-२०६
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और रश्मि-आशीष
के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-
कीर्तीश की कूची से

अपने विचार यहाँ लिखें

साहित्य एवं संस्कृति में-

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
 पावन की कहानी- पुराना अलबम

‘इस लड़के से मेरे रिश्ते की बात चली थी।’, ये वाक्य हम दोनों ने ही आगे पीछे कहा था। पुराना अलबम बड़ा खतरनाक होता है। वह उन रगों पर हाथ रख देता है जो कभी दुख रही होती थीं। हालाँकि बाद में वे उस दुख को जीवित तो नहीं करतीं पर एक टीस जरूर दे जाती हैं और अतीत की घटना को वर्तमान में ले आती हैं। अलबम के इस फोटो से ही बात शुरू करती हूँ। भाई का रिसेप्शन था जिसमें प्रतीक अपनी बहन के साथ आया था। उसकी बहन सौम्या मेरी प्यारी सहेली। फोटो में मेरी बड़ी बहन कल्पना और प्रतीक साथ खड़े हैं। उसके चेहरे पर एक सकुचाई हुई मुस्कराहट है और कल्पना के चेहरे पर छेड़ने का भाव। तब सौम्या के अलावा सिर्फ वही जानती थी कि मेरे और उसके बीच कोई ताना बाना बुना जा रहा है। ये अठ्ठारह साल पहले की बात है। आज भाई की शादी का अलबम देखते समय उसका फोटो सामने आ गया तो मीरा ने चौंकते हुए पूछा था, ‘ये कौन है?’ अनायास ही मेरे मुँह से निकल गया, ‘ये प्रतीक है, इस लड़के से मेरे रिश्ते की बात चली थी।’
... आगे-
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सरस्वती माथुर की लघुकथा
पिताजी की पूँजी
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मृदुला सिन्हा की कलम से
कार्तिक हे सखी पुण्य महीना
*

इतिहास में नवीन पंत का आलेख
लुप्त गौरव का अवशेष विजय नगर

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पुनर्पाठ में दीपिका जोशी से
पर्व परिचय के अंतर्गत- करवाचौथ

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पिछले सप्ताह-       

प्रमोद यादव की लघुकथा
अदृश्य आँखें
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डॉ. अशोक उदयवाल से
स्वाद और स्वास्थ्य में- एक अनार सौ उपकार
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सुरेश कुमार पण्डा का ललित निबंध
उदास चाँदनी

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पुनर्पाठ में सुप्रिया से जानें
शरदऋतु वस्तुतः पर्वों की ऋतु

*

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
 वर्षा ठाकुर की कहानी- ढलते सूरज को सलाम

मैं अस्त होते सूरज को सलाम करता हूँ। सुबह का सूरज तो मुझे दिखता ही नहीं था। मेरे ब्लॉक के पीछे से कब निकल आता और सर पर चढ़ जाता पता ही नहीं चलता। जब नया नया कलकत्ता आया था तो बड़ा अजीब लगता था, कितना भी जल्दी उठ जाओ, सूरज सर पर ही मिलता था। फिर मैंने मॉर्निंग वाक का इरादा त्याग दिया। पर मेरी मुलाकात अस्त होते सूरज से रोज ही हो जाती। बात इतनी आगे बढ़ चुकी थी कि मुझसे मुलाकात किये बिना सूरज अस्त ही नहीं होता। और मुलाकात भी कैसी, शाम को छह बजे स्कूटर से घर लौटते हुए जब अंतिम चौराहे पर पहुँचता तो बाँयें मुड़ते ही सड़क के दूसरे छोर पर पेड़ों और इमारतों की कतार से ठीक ऊपर मेरा दोस्त डला रहता था, दिन भर की थकान से चूर पसरने को तैयार, बिलकुल मेरी तरह। बस यहीं से शुरू होकर गली के अंतिम मोड़ पर खत्म हो जाती हमारी मुलाकात। और इन दोनों मोड़ों के बीच लगभग दो सौ मीटर की दूरी जो मैं स्कूटर से अमूमन पंद्रह सेकंड में पूरी कर लेता... आगे-

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी -|- मीनाक्षी धन्वंतरि
 

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