इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-
अजय तिवारी, किशन साध,
अनुपमा त्रिवेदी, डॉ. सुधा गुप्ता और
पीयूष दीप राजन की रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- हमारी रसोई-संपादक शुचि द्वारा प्रस्तुत है-
भुट्टों के मौसम में मक्के के स्वादिष्ट व्यंजनों के क्रम में-
मकई
टमाटर पास्ता सलाद। |
गपशप के अंतर्गत- कामकाजी महिलाएँ,
भाग-दौड़ का जीवन और समय की कमी। ऐसे में कैसे दमदार रहें दिन भर के लिये?
जानें विस्तार से... |
जीवन शैली में-
शाकाहार एक लोकप्रिय जीवन शैली है। फिर भी
आश्चर्य करने वालों की कमी नहीं।
१४
प्रश्न जो शकाहारी सदा झेलते हैं- ४
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सप्ताह का विचार में-
चिंता से चित्त को संताप और आत्मा को दुर्बलता प्राप्त होती है, इसलिए चिंता को तो छोड़ ही देना चाहिए।
-ऋग्वेददी |
- रचना व मनोरंजन में |
क्या आप जानते हैं कि
आज के दिन
(१४ जुलाई को) १८५८ में गोपाल गणेश अगरकर, १९०२ में चंद्रभानु गुप्त, १९३७
में अभिनेत्री सुधा शिवपुरी...
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लोकप्रिय
उपन्यास
(धारावाहिक) -
के
अंतर्गत प्रस्तुत है २००५
में
प्रकाशित
सुषम बेदी के उपन्यास—
'लौटना' का तीसरा भाग। |
वर्ग पहेली-१९३
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और रश्मि-आशीष
के सहयोग से |
सप्ताह
का कार्टून-
कीर्तीश
की कूची से |
अपनी प्रतिक्रिया
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साहित्य एवं
संस्कृति में-
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समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है
यू.के. से
कादंबरी मेहरा की-कहानी--
दूसरी बार
यह कौन सुबह सुबह इस कार पार्क के किनारे दिखाई दी?
शायद यह भी मेरी तरह चहल कदमी करने निकली है। ऊँह...ज़रा मोटी
है! ज्यादा लम्बी भी नहीं है। शायद पंजाब से हो। पर इसकी क्या
गारंटी! आजकल तो सब सलवार कमीज़ पहनती हैं। ऊँह... होगा! ज़रा
स्मार्ट होती तो बात भी थी, मचक मचक कर चल रही है। थोड़ी देर
बाद रुक कर खड़ी हो जाती है, साँस फूलने लगी होगी।
पता नहीं हमारे देश की औरतों को लम्बे बाल क्यों अच्छे लगते
हैं। हीरानी के बाल कटे हुए थे। साँवली सलोनी सूरत पर दो मोटी
मोटी, भारी पलकों वाली आँखें और ऊँचे सँवारे छोटे कटे बाल। जब
हलके बैंगनी रंग की, वायल की, घुटनों तक लम्बी फ्राक पहन लेती
थी तब कितनी कसी हुई और सुडौल लगती थी! उसे बाहों में भरे एक
अरसा हो गया। कहाँ चली गयी? जुबान की तेज जरूर थी मगर क्या रस
था। आर्मी सर्किल में तो कितनी ही ऐसी थीं जो मेरे साथ नाचना
पसंद करती थीं मगर जिस दिन किसी को प्लीज़ किया नहीं कि हीरानी
आपे से बाहर हो जाती थी।
... आगे-
*
कुँवर भारती की लघुकथा
नेताजी
*
नवीन नौटियाल का आलेख-
हम गूजर जंगल के
वासी
*
अशोक उदयवाल से जानें
कचरी के गुण कमाल के
*
पुनर्पाठ में-
अर्बुदा ओहरी से सुनें- कहानी काफी की
1 |
अभिव्यक्ति समूह
की निःशुल्क सदस्यता लें। |
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पिछले
सप्ताह-
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मुक्ता की लघुकथा
अंतिम अनुबंध
*
पर्यटन में अनंत राम गौड़ के साथ देखें
बंगाल के प्रमुख
पर्यटन स्थल
*
रंगमंच के अंतर्गत
निमाड़ का लोकनृत्य-
काठी
*
पुनर्पाठ में- डा गुरू दयाल प्रदीप का आलेख
डी.एन.ए. की खोज- फ्रेंसिस क्रिक
को श्रद्धांजलि
*
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है
भारत से
सुरभि बेहेरा की-कहानी--
पान की डिबिया
सुबह से नीता का यह तीसरा फ़ोन
था। कल उसकी शादी की सालगिरह थी। बार-बार वह फ़ोन पर एक ही बात
कह रही थी कि- ‘अगर तू मेरी पार्टी में नहीं आयेगी तो मैं केक
ही नहीं काटूँगी। भला इस प्यार भरे अपनत्व को नीरू कैसे ठुकरा
सकती थी? नीता उसकी सबसे अच्छी और प्यारी सहेली थी। उन दोनों
की ज़िन्दगी एक-दूसरे के लिए खुली किताब की तरह थी। जीवन की हर
छोटी-बड़ी ख़ुशियों में वे दोनों किसी न किसी बहाने एक दूसरे को
शामिल करना नहीं भूलतीं। अचानक उसकी सालगिरह की ख़बर पाते ही
नीरू के पैर ज़मीन पर नहीं पड़ रहे थे। उसे जिस दिन का इन्तज़ार
था, वह दिन एकदम करीब आ गया था। अतुल के उठने से पहले वह पूरे
घर में चहलक़दमी करने लगी। वह समझ ही नहीं पा रही थी कि पार्टी
में जाने से पहले उसे किन-किन चीज़ों की तैयारी कर लेनी चाहिए।
समय पर पहुँचने के लिए उसे अभी से ही तैयारी करनी पड़ेगी। आख़िर
उसकी सबसे प्यारी सहेली की पार्टी में सबकी बारीक नज़र उस पर भी
तो पड़ेगी। ... आगे- |
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