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बंगाल के प्रमुख पर्यटन स्थल
-अनंतराम गौड़
पूर्वी भारत का बंगाल प्रांत अपने प्राकृतिक सौन्दर्य, अपने
इतिहास और अपनी परंपरा, अपने साहित्य और अपनी कला, अपने
विचारों और अपनी संस्कृति, अपने व्यापार और अपनी राजनीति, तथा
वाणिज्यिक प्रतिभा के लिए देशभर में विख्यात है। प्राचीन
संस्कृत साहित्य में गौड़ या बंग के नाम से बंगाल को पहचाना
जाता था। महाभारत के युद्ध में बंगराज ने पांडवों के विरूद्ध
कौरवों का साथ दिया था। ईसा पूर्व तृतीय शताब्दी में बंगाल
मौर्य साम्राज्य का अंग था और चौथी से छठी ईसवीं (ए.डी.)
शताब्दी में यह गुप्त वंश के अधीन रहा। किंतु नवीं शताब्दी में
पहुँचने तक बंगाल ने अपने स्वाधीन राजाओं के वंश की परंपरा
स्थापित कर ली और पलास राजाओं ने बिहार, उड़ीसा तथा असम तक अपना
साम्राज्य फैला लिया।
वर्षा की अधिकता के कारण बंगाल के चप्पे-चप्पे पर हरियाली है।
इसकी शस्य-श्यामला भूमि में हिमित पर्वत शृंखलाएँ अत्यंत
आकर्षक और मनोहारी हैं, जिनमें दार्जिलिंग उनका सिरमौर है।
अपने बर्फीले शिखरों के कारण दार्जिलिंग की सुंदरता के
दर्शनार्थ संसार भर से पर्यटक वर्ष पर्यंत आते रहते हैं।
ग्रीष्मावकाश में तो भारत के प्रत्येक कोने से पर्यटक
दार्जिलिंग पहुँचते हैं।
कलकत्ता से ६८६ किलोमीटर उत्तर में समुद्र की सतह से ७००० फुट
की ऊँचाई पर स्थित इस पर्वतीय नगरी में आवास की विपुल सुविधाएँ
उपलब्ध हैं। फिर भी यदि होटल अथवा लॉज में अग्रिम आरक्षण करा
लिया जाए तो यात्रा अधिक सुखद बन सकती है।
दार्जिलिंग में देखने के लिए अनेक स्थान हैं: बतासिया लूप, घूम
बौद्ध मठ, वेधशाला पहाड़ी, धीरधाम मंदिर, पद्मजा नायडू हिमालयी
जंतु पार्क, प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय, लायड्ज वानस्पतिक
उद्यान, हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, लेवाग रेस कोर्स आदि।
इनके अतिरिक्त ‘टाइगर हिल’ से सूर्योदय देखिए, कंचनजंगा के
बर्फीले धवल शिखरों का अवलोकन करते समय तो पर्यटक उसकी सुंदरता
से अपनी सुध-बुध खो बैठते हैं, यदि आपको ट्रेकिंग का शौक है तो
संदकफू ऐसे लोगों के लिए स्वर्ग सदृश है, पूर्णतया शांति में
कुछ समय व्यतीत करने के लिए यदि किसी स्थान की तलाश है तो
कालिंपोंग की सुरम्य घाटी में पहुँच जाइए या नयनाभिराम
कुर्सियांग में कुछ दिन विश्राम कीजिए।
जब पर्यटक दार्जिलिंग तक पहुँच जाते हैं तो वहाँ से भूटान की
नयी राजधानी थिंपू तथा सिक्किम की राजधानी गैंगटक देखे बिना
नहीं लौटते। वांगचू नदी के किनारे बसा थिंपू बर्फ से ढकीं
पहाड़ियों और हरे-भरे क्षेत्र से अत्याधिक सुंदर बन गया है।
इसका नयनाभिराम दृश्य इतना आकर्षक है कि पर्यटकों का यहाँ से
जल्दी लौटने का मन नहीं करता।
इसी प्रकार गंगटोक की छटा भी निराली है। समुद्र की सतह से लगभग
१६०० मीटर की ऊँचाई पर स्थित गैंगटक में एकांत और शहरी चहल-पहल
दोनों की सुविधाएँ उपलब्ध हैं। यहाँ सबकी जेबों के अनुरूप होटल
और लॉज उपलब्ध हैं।
पश्चिम बंगाल के अन्य दर्शनीय स्थल मुर्शिदाबाद, विष्णुपुर और
सुंदरवन हैं। बंगाल की नवाबी विरासत के दर्शन इसकी सड़कों
पत्थरों और बलुचारी साड़ियों में होते हैं। नवाब सिराजुद्दौला
और लार्ड क्लाइव की सेनाओं के बीच १७५७ में प्लासी का
युद्धस्थल मुर्शिदाबाद में ही स्थित है। इसने भारतीय इतिहास की
धारा ही बदल दी थी।
सुदंरवन सुप्रसिद्ध शाही बंगाल शेर का घर है। ऊँचे मचानों पर
चढ़कर शेरों को धूप सेंकते और शिकार की तलाश में विचरते देखना
दुर्लभ नहीं है। रेसस बंदर, चीतल, जंगली सुअर और बिल्लियाँ भी
यहाँ देखी जा सकती हैं। सुंदरवन के द्वीपों में रंग-बिरंगे फूल
और आकर्षण वनस्पतियाँ भरी पड़ी हैं। बड़ी संख्या में मधुमक्खियाँ
भी पायी जाती हैं इसलिए यह क्षेत्र शहद से भरपूर है। कांकरा के
लाल पुष्प तथा खलसी की पीत कलियाँ इस बन की सुंदरता को नंदन
कानन में परिवर्तित कर देती हैं।
दार्जिलिंग, गैंगटक तथा थिंपू के लिए वायु मार्ग से जाना हो तो
बागडोगरा हवाईअड्डा निकट पड़ता है। यह दाजिर्लिंग से १०
किलोमीटर पर है। यहाँ से टैक्सी या बसें ली जा सकती हैं। रेल
मार्ग से जाने पर न्यू जलपाईगुड़ी स्टेशन पर पहुँचिए। यह
दाजिर्लिंग से मात्र ८० किलोमीटर पर है। मुर्शिदाबाद पहुँचने
के लिए वायु मार्ग से मालदा पहुँचना होगा और वहाँ से टैक्सी या
बस लीजिए। दूरी १२४ किलोमीटर है। रेल द्वारा सियालदह से
बहरामपुर होते हुए मुर्शिदाबाद पहुँचा जा सकता है। सुंदरवन की
यात्रा जलमार्ग से भी संभव है। रेल मार्ग सियालदह से उपलब्ध है
जहाँ से ५४ किलोमीटर दूर कैनिंग तक जा सकते हैं।
कलकत्ता से १५२ किलोमीटर की दूरी पर विष्णुपुर स्थित है।
विष्णुपुर कभी वास्तुकला, संगीत तथा मूर्तिकला से संपन्न था।
इसके अवशेष अब भी यहाँ मिलते हैं। बाँकुड़ा जिले के एक भाग
विष्णुपुर से अनेक पवित्र हिंदू मंदिरों तथा रामकृष्ण परमहंस
और माँ शारदा देवी के जन्मस्थानों को पहुँचने के मार्ग हैं।
दीघा एक अन्य दर्शनीय स्थल है। यह कलकत्ता से लगभग २४३
किलोमीटर दक्षिण में सागर तट पर स्थित है जहाँ आधुनिक पर्यटक
लॉज और विभिन्न प्रकार के होटल हैं। दीघा का समुद्र तट मीलों
तक सपाट है और समतल है जो
अन्यत्र नहीं मिलता। यहाँ से
छोटे-मोटे अन्य रोचक स्थानों की भी यात्रा संभव है। धार्मिक
तीर्थों की यात्रा के लिए उत्सुक लोग बंगाल में शक्ति पीठों के
दर्शन का लाभ भी प्राप्त कर सकते हैं। दिल्ली-हावड़ा लाइन पर
वर्द्धमान स्टेशन उतरकर फुल्लारा देवी के दर्शन किये जा सकते
हैं। यहाँ सती का अधरोष्ठ गिरा था।
वर्द्धमान से नंदीपुर भी
दूर नहीं है जहाँ सती का कंठहार गिरने से देवी नंदिनी रूप में
प्रतिष्ठित हैं। हावड़ा-क्यूल लाइन पर नलादेवी के दर्शन संभव
हैं। यहाँ सती की नला (आँत) गिरी थी तथा यहाँ नलादेवी महाकाल
योगेश भैरव के साथ अवस्थित हैं। वर्द्धमान स्टेशन से
महिषमर्दिनी वक्रेश्वरी देवी के दर्शन के लिए यात्री जाते हैं।
यहाँ भी एक शक्तिपीठ है। |