२४ जुलाई कॉफ़ी दिवस के अवसर पर
कहानी कॉफ़ी की
-अर्बुदा ओहरी
गर्मी के दिन हैं और
गर्मियों में ठंडे पेयों में कोल्ड कॉफ़ी का स्वाद
तो सभी ने चखा होगा। जी हाँ, कॉफ़ी ठंडी व गरम
दोनों ही रूप में बच्चों बड़ों सभी के मन को भाती
है। केपुचिनो कॉफ़ी, इंस्टैंट कॉफ़ी, एस्प्रेसो
कॉफ़ी, अरबी कॉफ़ी या दक्षिण भारत की फिल्टर कॉफ़ी
सभी का स्वाद निराला होता है।
बरिस्ता, कैफ़े काफी डे, काफी हाउस, कोस्टा और
केरिबियन कॉफ़ी ये स्वादिष्ट कॉफ़ी को बेचने वाली
कुछ ऐसी कॉफ़ी शॉप के नाम हैं जो दुनिया में बहुत
ही लोकप्रिय हैं। लोग जितने कॉफ़ी के दीवाने हैं
उतने चाय के नहीं हैं। दुनिया में वस्तुओं के
व्यापार में कॉफ़ी का नाम दूसरे स्थान पर आता है।
कॉफी का इतिहास बहुत पुराना है और इस इतिहास की
यात्रा बड़ी ही रोचक।
कॉफ़ी सबसे पहले इथियोपिया में पाई गई थी पर इसकी
उत्पत्ति के विषय में भी अलग-अलग मत हैं कई लोग
इसकी उत्पत्ति का स्थान यमन मानते हैं। तेरहवीं
शताब्दी में कॉफी अरब देशों में लोकप्रिय हुई थी।
उस समय इस्लाम का एल्कोहल के विरुद्ध होना ही शायद
कॉफी को वहाँ प्रचलित कर गया। १६०० तक कॉफ़ी का
उत्पादन अरब देशों में बहुत ही ख़ुफ़िया रूप से
किया जाता था यहाँ तक कि उपजाऊ कॉफ़ी के बीज अरब
देशों के बाहर नहीं मिलते थे। बहुत से लोग मानते
हैं कि सबसे पहले जर्मनी के वनस्पति वैज्ञानिक
लियोनहार्ड राउवाल्फ ने १५८३ में अपनी पुस्तक में
कॉफ़ी का वर्णन दिया था। १६०० के बाद तो कॉफ़ी
भारत में भी उगानी शुरू कर दी गई ऐसा संभवत: चोरी
से लाए गए कॉफी के बीजों से हुआ होगा। १६५० में
कॉफ़ी इंग्लैंड में आ गई और ऑक्सफ़ोर्ड व लंदन में
कॉफ़ी हाउस भी खुल गए। अट्ठारहवीं शताब्दी तक तो
सारे यूरोप को कॉफ़ी का चस्का लग गया था। हैरत
वाली बात तो यह है कि जहाँ तेरहवीं शताब्दी तक
कॉफ़ी गुप्त रूप से केवल अरब देशों में ही उगाई
जाती थी वहीं उन्नीसवीं शताब्दी में दुनिया की ८०
प्रतिशत कॉफ़ी का अकेले ब्राज़ील ने उत्पादन किया।
अब तो करीब ७० देशों में कॉफ़ी बड़े पैमाने पर
उगाई जाती है।
कॉफ़ी की मुख्य रूप से दो प्रजातियाँ पाई जाती
हैं। सबसे पुरानी प्रजाति केफिया अरेबिका नाम से
जानी जाती है। इसकी उत्पत्ति का स्थान इथियोपिया
माना जाता है और वहीं से यह मिस्र व यूरोप होते
हुए सारी दुनिया में फैली थी परंतु यह अरब देशों
में सबसे पहले पसंद की गई थी इसलिए इस प्रजाति का
नाम अरेबिका दिया गया था। यह प्रजाति ज़्यादा
संवेदनशील थी अत: हर जगह नहीं उगाई जा सकती थी।
कॉफ़ी की दूसरी प्रजाति केफिया रोबस्टा नाम से
जानी जाती है। यह प्रजाति उस वातावरण में भी पनप
सकती है जहाँ केफिया अरेबिका नहीं उग सकती। यों तो
अब कॉफ़ी की बहुत-सी प्रजातियाँ हैं लेकिन यही दो
प्रजातियाँ मुख्य हैं। कॉफ़ी कैफ़ीन का अच्छा
स्रोत है और कैफ़ीन एक उत्तेजक होता है जो हमारे
दिमाग की नसों को सचेत करता है। कॉफ़ी को कॉफ़ी के
बीजों से बनाया जाता है जिन्हें कॉफ़ी बीन्स कहते
हैं। केफिया अरेबिका स्वाद और गुणवत्ता की दृष्टि
से केफिया रोबस्टा से बेहतर मानी जाती है परंतु
रोबस्टा प्रजाति में अरेबिका से ४० से ५० प्रतिशत
ज़्यादा कैफ़ीन होता है। अच्छी किस्म के केफिया
रोबस्टा के के दानों को इसके कड़वेपन के कारण अन्य
कॉफ़ी के दानों के साथ मिला कर कई तरह की
एस्प्रेसो कॉफ़ी में उपयोग किया जाता है। इटली में
गहरे रंग के रोबस्टा के दानों को भून कर एस्प्रेसो
कॉफ़ी में काम में लिया जाता है।
कॉफ़ी का पेड़ करीब १० से १२ फ़ुट लंबा होता है
इसको आमतौर पर झाड़ ही कहा जाता है। ३ से ५ वर्ष
की आयु के कॉफ़ी के झाड़ पर फल आने शुरू हो जाते
हैं और फिर करीब ५० वर्ष की आयु तक यह उपजाऊ रहता
है। इसके फल यानी कॉफ़ी के दानों से कॉफ़ी बनाने
की प्रक्रिया भी निराली है। कॉफ़ी के दानों को
तोड़ कर उनमें से नरम पदार्थ, जिसे 'पल्प' कहा
जाता है, को निकाला जाता है फिर उसे पानी में १०
से ३६ घंटे तक भिगो कर रखा जाता है जिसे
'फरमेंटेशन' कहते हैं। 'फरमेंटेशन' से कॉफ़ी की
रासायनिक संरचना बदली जाती है। इसके बाद इनको धोकर
सुखाया जाता है। यह प्रक्रिया पूरी होने में बहुत
समय लगता है। इसी मेहनत और समय के कारण अच्छी
कॉफ़ी का स्वाद और दाम भी अच्छा होता है। हरे
कॉफ़ी के दानों को भून कर उन्हें गहरा रंग दिया
जाता है, इससे कॉफ़ी की सुगंध व स्वाद में भी
सुधार होता है। कॉफ़ी को उगाने से लेकर पीसने तक
हर कदम पर बहुत ही बारीकी से ध्यान दिया जाता है।
कॉफ़ी के झाड़ पर बहुत से कीड़े लगने की आशंका
हमेशा बनी रहती है। साथ ही साथ खाद भी कॉफ़ी की
गुणवत्ता पर असर डालती है। इसके बाद पके हुए कॉफ़ी
के दानों को तोड़ना भी खास मायने रखता है यदि यहाँ
सावधानी नहीं बरती गई तो अच्छे के दानों के साथ
अधपके के दानों के मिल जाने की संभावना हो जाती है
जिससे सारी मेहनत पानी में मिल सकती है। इसीलिए
हाथ से चुने गए के दानों से बनी कॉफ़ी बाज़ार में
ज़्यादा महँगी मिलती है। कॉफ़ी बनाने की प्रक्रिया
में हर कदम पर अच्छे किस्म के कॉफ़ी के दानों को
घटिया और सस्ते कॉफ़ी के दानों से बचा कर रखा जाता
है।
आजकल कॉफ़ी सिर्फ़ स्वाद के लिए ही नहीं पी जाती
बल्कि कॉफ़ी में कई ऐसे गुण होते हैं जिनका लोगों
पर सकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। कॉफ़ी को लेकर
कुछ ऐसे शोध भी चल रहे हैं जिनसे इसमें पाए जाने
वाले रसायनों से कैंसर जैसी बीमारी में भी आराम
मिलने की संभावना स्पष्ट होगी। कॉफ़ी के दानों में
कुछ ऐसे रसायन होते हैं जो दिमाग को जगा देते हैं।
कॉफ़ी पीने के बाद थकान से भी राहत मिलती है। रात
में जाग कर पढ़ने वाले बच्चों में भी कॉफ़ी पीने
का प्रचलन है। इससे उनकी नींद तो दूर हो ही जाती
है साथ ही साथ उनकी एकाग्रता भी बढ़ जाती है। कई
दफ़्तरों में कामकाजी लोगों को बीच-बीच में 'कॉफ़ी
ब्रेक' मिलता है।
कॉफ़ी में कई औषधीय गुण होते हैं। यह अनेक दर्द
निवारक दवाओं का असर बढ़ा देती है। जिनका रक्तचाप
सामान्य से कम हो जाता है उन्हें भी तुरंत कॉफ़ी
पीने की सलाह दी जाती है। अस्थमा के रोगियों को भी
कॉफ़ी पीने से राहत महसूस होती है। कॉफ़ी में दर्द
निवारक गुण होने के कारण एस्प्रिन बनाने वाली कुछ
कंपनियाँ दवा बनाते समय थोड़ी मात्रा में कैफ़ीन
मिलाती हैं। कॉफ़ी के सेवन से 'मेलिटस टाईप २'
मधुमेह की संभावना कम हो जाती है। यहाँ तक कि दिल
के दौरे की गुंजाइश भी बहुत हद तक कॉफ़ी का सेवन
करने वालों में कम हो जाती है। कॉफ़ी के अनेक
औषधीय गुण होने के बावजूद इस बात से इन्कार नहीं
किया जा सकता कि ज़्यादा मात्रा में कॉफ़ी का सेवन
नुकसानदायक है। गर्भवती महिलाओं को कॉफ़ी न पीने
की सलाह दी जाती है। जो लोग कॉफ़ी का स्वाद तो
लेना चाहते हैं पर उसके अंदर पाए जाने वाले कैफ़ीन
का सेवन नहीं करना चाहते उनके लिए तो यह खुशखबरी
से कम नहीं है कि अब बाज़ार में 'डीकेफीनेटड'
कॉफ़ी भी उपलब्ध है। इस कॉफ़ी में से कैफ़ीन की
अधिकांश मात्रा निकाल दी गई है।
तो अब किस बात का डर। कॉफ़ी से जुड़ी ढेर सारी
मज़ेदार बातों के साथ अपनी मनपसंद कॉफ़ी का मज़ा
लीजिए, कॉफ़ी पीजिए और पिलाइए पर कॉफ़ी पीने के
बाद अपने दाँतों को साफ करना कभी मत भूलिए।
२४ जुलाई २००६
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