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कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है
मारीशस से कुंती मुकर्जी की कहानी- 'कनेर का गुलाबी गुच्छा'


‘’मही, इन कनेर के पेड़ों को लॉन से निकलवा देना। इसे रखने से बड़ा अपशकुन होता है।’’ डॉक्टर सोमदत्त त्रिपाठी आयुर्वेदाचार्य ने मही के घर में प्रवेश करते हुए कहा।
‘’जी गुरु जी।’’
मही अपने गुरु से बहस करना उचित नहीं समझती थी अन्यथा वह उन्हें बतलाती कि जिन फूलों को वे अक्सर भूत प्रेतों के आकर्षण का केंद्र मानते हैं वह उसके जीवन में कितना शुभ शकुन लाया है।

मही को बचपन से सफ़ेद और लाल कनेर लुभाता आया है। उसकी पड़ोसिन मीमोज़ा ने उसे कनेर के बारे में अनेक जादुई बातें बतायी थी। अपनी दादी के कहने पर वह माँ सरस्वती के चरणों में नियमित रूप से सफ़ेद कनेर चढ़ाया करती थी। दादी कहती थी कि हर देवता देवी के चढ़ावे के लिये विशेष फूल होता है। सरस्वती विद्यादायिनी है। उसे सफ़ेद कनेर पसंद है।

’’बिटिया, तुम शारदे माँ को सफ़ेद कनेर उनके चरणों में नित्य चढ़ाया करो। तुम्हें बुद्धि मिलेगी।’’

दादी की बात सुनकर मही स्कूल जाने से पहले, पास के मंदिर में नित्य सफ़ेद कनेर के फूल सरस्वती माता के चरणों में चढ़ाती और बदले में पुजारी के हाथों नारियल और मिश्री का प्रसाद पाकर वह बहुत प्रसन्न होती। हालाँकि उसने माँ शारदे को प्रसन्न करने में कोई कोताही नहीं की थी फिर भी वह अपने स्कूल या घर में कभी बुद्धिमतिनहीं कहलायी। खिलंडरी सोफ़िया ही पहले नम्बर पर पास होती रहती और सबके आकर्षण का केंद्र बनती। मही ने कभी अपनी दादी से यह शिकायत नहीं की कि इतने फूलों के चढ़ावे के वावजूद भी वह परीक्षाएँ प्रथम श्रेणी में क्यों पास नहीं होती। अलबत्ता उसकी माँ हर साल उसे टोकती-
‘’मही, तुम मटरगश्ती करने के बदले अपनी पढ़ाई पर ध्यान दिया करो।’’

बारिश का मौसम था। बरसात के कारण कनेर के फूल गलकर ज़मीन पर बिछ गये थे। मही ने सोचा- ‘’अगर एक कलम तोड़कर घर के लॉन में लगा दूँगी तो बरसात में भी मुझे फूल मिल जाएँगे।’’ यही बात सोचकर वह एक डाल तोड़ लायी और खुश होकर अपनी दादी से कहा-
‘’दादी, अब मैं आँगन में कनेर की कलम लगाऊँगी और जब बरसात का मौसम आएगा तो सारे के सारे फुल तोड़कर गुलदान में रख लूँगी। देखो न आज मुझे एक भी सफ़ेद फूल नहीं मिला।’’
‘’कोई बात नहीं बिटिया, तू मन ही मन माता को फूल चढ़ा दिया कर। सरस्वती माता मन की भी सुनती है...लेकिन बिटिया इस कलम को दूर फेंक आ। इसे आँगन में नहीं लगाते हैं।’’ लेकिन मही ने दादी की बात नहीं सुनी। वह दौड़कर आँगन के एक कोने में गयी और ज़मीन में उस कलम को अपने नन्हें हाथों से लगाने लगी। हाथ में तुलसी की माला फेरती दादी चिल्लायी-‘’मही, तू सुनती नहीं है यह रास्ते का फूल है। अपशकुन होगा।’’

दादी की आवाज़ सुनकर उसकी माँ भी रसोई से निकल आयी और उन्होंने मही को एक दो शब्द और सुनाकर उसका हाथ धुलवा दिया। मही की समझ में दादी की बात नहीं आयी...लेकिन उसने दादी की बात का बुरा भी नहीं माना और आँखें बन्द कर माता सरस्वती को मानसिक रूप से श्वेत कनेर चढ़ाने लगी। उसे बड़ा मज़ा आता वह माँ शारदे को फूलों के ढेर से ढँक देती।
कुछ दिनों के बाद हृदय की गति रूक जाने से उसकी दादी की मृत्यु हो गयी। दादी की चालीसवाँ होते होते घर में जायदाद को लेकर इतना हंगामा हुआ कि मही के पिता को अपना पैतृक घर छोड़ना पड़ा। उन्होंने रोज़हिल के टाउनशिप में एक बना बनाया मकान खरीद लिया। लेकिन उसी वर्ष मही को सी पी ई की परीक्षा देनी थी इसीलिये उसकी परीक्षा होने के बाद ही उसके पिता ने घर छोड़ा। मही को अपना गाँव और सहेलियों को छोड़ते हुए बहुत दुःख हुआ।

प्राइमेरी स्कूल की सी पी ई की परीक्षा बहुत महत्वपूर्ण होती है। मॉरिशस जैसे छोटे से देश में भी हर माता पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा अव्वल आये...लेकिन मही के मामले में ऐसी कोई बात नहीं थी क्योंकि वह हमेशा दूसरी श्रेणी में परीक्षा पास होती आयी थी। घर में या स्कूल में सब को पता था कि वह परीक्षा में फ़ेल तो नहीं होगी लेकिन अव्वल भी नहीं आएगी। इसीलिये उसके पिता ने पहले से ही उसके लिए एक मध्यम श्रेणी के कॉलेज में दाखिला दिलाने के लिये सोच रखा था। जब परीक्षाफल निकला तो उसके पिता ने अपने नौकर से कहा-
‘’रेने, तुम मही का सी पी ई रिज़ल्ट जाकर ले आना।’’
‘’वी पात्रों।’’ (जी मालिक)।
रेने ने जब लिस्ट में मही का नाम देखा तो पागलों की तरह दौड़ते दौड़ते घर गया और चिल्लाकर कहने लगा-
‘’पात्रों, बेबी तो टॉप टेन में पास हूई है। हेडमास्टर ने आपको बुलाया है।’’

घर भर में आश्चर्य और खुशी की लहर फैल गयी। देखते ही देखते मही सबकी आँखों पर छा गयी। उसके अध्यापक को विश्वास ही नहीं हुआ। उसने दुबारा मही के पेपर चेक करवाये। लेकिन परिणाम वैसा का वैसा ही रहा। उसे बड़ी मायूसी हुई क्योंकि उसने अपनी सारी उम्मीदें सोफ़िया पर लगायी थी। मही को रोज़हिल की महारानी एलीज़ाबेथ दो जैसे प्रथम श्रेणी की कॉलेज में दाखिला मिल गया जिसे क्वींस कॉलेज भी कहा जाता है।

क्वींस कॉलेज का विशाल परिसर। मही बहुत डरी सहमी थी। उसमें आत्मविश्वास की बेहद कमी थी। प्रतिस्पर्धा! प्रतिस्पर्धा! सिर्फ़ प्रतिस्पर्धा । यहाँ छात्राओं के बीच सिर्फ़ प्रतिस्पर्धा होती है। यहाँ कोई किसी का दोस्त नहीं होता। वह देश भर की मेधावी छात्राओं को देखकर अपने आप को कोसने लगी कि नाहक वह टॉप टेन में आयी। अब इन लोगों से प्रतियोगिता कौन करे...लेकिन उसे मोना नाम की एक बड़ी अच्छी सहेली मिली जो बो बासें की रहने वाली थी और उसी के पास उसे डेस्क मिली थी। वह मही का लजीला स्वभाव देखकर उससे सहानुभूति जताने लगी थी। नगर के सारे तौर तरीके मही को सिखलाती रहती थी। मही हर साल अच्छे नम्बर में परीक्षा पास होने लगी। वह अब भी सरस्वती को मानसिक रूप से सफ़ेद कनेर चढ़ाया करती थी। वह जब गाँव जाती थी तो उसके रिश्ते के भाई बहन उसे चिढ़ाते थे-
‘’मही, तू तो लँगड़ी घोड़ी थी। बोल! कैसे रेस जीत गयी।’’

हालाँकि उनके रिश्ते के भाई बहनों के मन में दिल्लगी कम और जलन ज्यादा होती थी...लेकिन मही भी हैरान थी कि उसके साथ यह चमत्कार हुआ कैसे? उसके अध्यापक ने दोबारा उससे प्रश्न पत्र हल करवाया था मगर वह कोई संतोषजनक उत्तर नहीं लिख पायी थी।
सोलहवाँ साल। एक नारी जीवन का सबसे महत्वपूर्ण समय जहाँ भावनाएँ एक क्षितिज को छोड़ दूसरे क्षितिज पर आ खड़ा होता है जहाँ न ज़मीन होती है और न आकाश। ऐसी अवस्था में किसी का भी दिशाभ्रमित होना स्वाभाविक है। खासकर एक किशोरी मन का। एक छोटी सी भी किरण मार्गदर्शन का काम करती है...लेकिन वह मार्ग उसे कहाँ ले जाकर छोड़ेगा यह कुछ उसके कर्म पर निर्भर करता है और कुछ उसकी नियति पर।

एस सी (स्कूल सर्टिफ़िकेट) की परीक्षा, विद्यार्थी जीवन की सबसे कठिन अवस्था। अगर विद्यार्थी यह परीक्षा अच्छी श्रेणी में पास कर लेता है तो उसको उच्च शिक्षा पाने में सहायता मिलती है। अगर किसी कारणवश वह भविष्य में पढ़ाई न भी करे तो उसे कम से कम एक अच्छी सरकारी नौकरी तो मिल ही जाती है। सबकी आँखें इस परीक्षा देने वाले पर लगी रहती हैं। सभी विद्यार्थी एक प्रकार से मानसिक तनाव से गुज़रते हैं। ऐसे कठिन दौर के समय एक दिन मोना ने उसे किताब में बंद एक गुलाबी कागज़ और कनेर के सूखे गुलाबी फूल उसे दिखाए।
‘’यह क्या है मोना?।’’
‘’लव लेटर। देख!’’
‘’किसने दिया।’’
‘’मेरे बॉयफ्रेंड ने।’’
‘’और यह फूल।’’
‘’बूके लोरिये (गुलाबी कनेर), यह जादुई फूल है। रात को इसे तकिये के नीचे रखकर सोने से अपना बॉयफ़्रेंड सपने में आता है।’’
‘’तो क्या तुम भी इसे रखती हो।’’
‘’हाँ और जुगल के साथ रात भर सपने में सैर करती हूँ।’’

उसके बाद से मही को रात में नींद नहीं आती थी। जी चाहता था कि उसका भी एक बॉयफ़्रेंड हो और उसे भी इसी प्रकार की गुलाबी चिट्ठी मिला करे। उसे अपनी बचपन की सहेली मीमोज़ा बहुत याद आयी जिसने इस जादुई बूके के बारे में उसे बताया था लेकिन तब वह बात को इतनी गहरायी से पकड़ नहीं पायी थी।
 
क्वींस कॉलेज के लॉन में कनेर के पेड़ कतारों में लगे थे और उस में दोहरे गुलाबी रंग के फूल खिले रहते थे। कई बार वह उन फूलों के गुच्छे तोड़ कर अपने घर लायी तो थी लेकिन अपने कमरे तक ले जाते हुए उसका दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगता। वह अपनी माँ की आँख बचाकर एक काँच के गिलास में पानी भरकर उसमें रख देती और गिलास को घर के मंदिर में दुर्गा माँ के चरणों में रख देती। मंदिर कनेर की भीनी भीनी खुशबू से भर जाता।

एक शनिवार को वह ट्यूशन लेने के बाद मोना के साथ रोज़ हिल की सजी हुई दुकानों को देख रही थी कि सोफ़िया से उसकी भेंट हो गयी। इतने सालों के बाद अपनी सहेली को देखकर मही अवाक् रह गयी। उसने मोना का परिचय सोफ़िया से करवाया। सोफ़िया दोनों लड़कियों को पास के एक रेस्तरॉ में कॉफ़ी पिलाने ले गयी। सोफ़िया बहुत ही सुंदर हो गयी थी और पढ़ाई के साथ ही साथ एक बूटीक के लिये मॉडलिंग भी करती थी। मही और मोना को उसकी जीवन शैली बहुत अच्छी लगी। सोफ़िया के हाथ में एक मैगज़ीन थी। जो मूल रूप से तो इटालियन भाषा में थी लेकिन उसका फ़्रेंच अनुवाद भी थी जिसे सोफ़िया ने दोनों सहेलियों को दिखाया। रोमांस से भरपूर तस्वीरें देखकर और डायलॉग पढ़कर दोनों के मन में भी उसे लेने की लालसा जाग उठी। सोफ़िया ने अपनी दरियादिली दिखाते हुए रोज़ हिल के तालीपो नामक प्राइवेट लाइब्रेरी में दोनों की सदस्यता दिलवा दी।

हालाँकि मही कुछ डरपोक स्वभाव की थी लेकिन रोमों पढ़कर उस के मन में कुछ साहस जागने लगी। वह अपने कमरे बंद कर पाठ्यक्रम की किताबों के साथ ही रोमांस की मैगज़ीन में हीरो हीरोइन के चुम्बनों की तस्वीर देखने का आनंद भी खूब उठाने लगी। घर के लोगों के साथ इधर कुछ दिनों से उसका संवाद भी नहीं के बराबर हो गया था। उसे कोई डिस्टर्ब भी नहीं करता क्योंकि सब जानते थे कि एस सी की परीक्षा की तैयारी चल रही है।

सोफ़िया हर शनिवार को दोनों से मिलने लगी और जीवन के तमाम दिलचस्प बातों से भी दोनों को अवगत कराने लगी। उसी ने एक दिन दोनों को सलाह दी कि अपने बैग में अपना एक टॉप और स्कर्ट रख ले। हर महिने के अंतिम शुक्रवार को सावोय सिनेमा में पोर्न पिक्चर चलता है।

मही और मोना सोफ़िया की पक्की शागिर्द बन गयी थी। सोफिया ने बता दिया था कि फलां शुक्रवार को पोर्न पिक्चर चलने वाला है अतः तुम दोनों तैयार रहना। संयोगवश शुक्रवार को ज्यादातर पीरियड खाली होते है। दोनों सखियाँ मौका पाते ही कॉलेज से निकल पड़ीं और सार्वजनिक बाथरूम में अपनी यूनिफ़ॉम बदल कर स्कर्ट और टॉप पहन लिये। अपनी चोटी खोलकर बालों को पीठ पर लहरा दिया। और सयानी दिखने के लिये हाई हील सेंडील पहन ली। सोफिया ने दोनों के होठों पर गहरी लाल लिपस्टीक लगा दी। जब तीनों लड़कियाँ बाथरूम से बाहर निकलीं तो कोई पहचान ही न सका कि ये सोलह साल की कॉलेजियट कमसिनें हैं। सावोय सिनेमा हॉल के बाहर सोफिया का हेंडसम बॉयफ़्रेंड उसका इंतज़ार कर रहा था। उसी ने सब के लिये टिकट ले रखा था। सोफ़िया तो अपने बॉयफ़्रेंड के साथ एक कोने में चली गयी और दोनों सहेलियाँ जीवन का एक नया स्वरूप आश्चर्य मिश्रित खुली आँखों से देख रही थी। पिक्चर खत्म होने से पहले सोफ़िया ने दोनों को सीट से उठाकर कहा-
‘’अब तुम दोनों अपना ड्रेस बदलकर घर चली जाओ। मुझे लगता है तुम लोगों के पकड़े जाने का खतरा है अगर अंतिम सीन तक रहोगी तो...सामने तुम्हारी टीचर अपने प्रेमी के साथ बैठी है।’’

हॉल में घना अंधेरा था। लेकिन दोनों इतना डर गयी कि सोफ़िया से पूछ भी न सकी कि किधर उसने टीचर को देख लिया।
दूसरे दिन मही और मोना यह जानने में लगी रही कि कौन सी लेडी टीचर पोर्न पिक्चर देखने गयी होगी। एक सप्ताह की जासूसी के बाद यह राज़ भी खुल गया। सबसे ज्यादा अनुशासन में रहने वाली गणित की टीचर मिस रोज़ालीना बॉयज़ कालेज के एक प्राध्यापक के साथ अक्सर सावोय में दिखती है। यह बात सोफ़िया के प्रेमी ने उजागर की। मिस रोज़ालीना रोमांस के सख़्त खिलाफ़ थी। क्लास की सभी लड़कियों के बैग खोल कर देखती थी कि कहीं मिल्स एंड बूंस की नॉवेल तो छुपाकर नहीं रखी है। लव लेटर के साथ एक बार जब एक लड़की पकड़ी गयी थी तब उसे एक सप्ताह कॉलेज आने से रोक दिया गया था। मही एकदम डर गयी। यह बात उसके घर तक पहुँच गयी तो उसके माता-पिता तो खबर लेंगे ही उसके रिश्ते के भाई बहन भी जीना मुश्किल कर देंगे। उसने मन ही मन संकल्प किया कि अब अपनी पढ़ाई पर ज़्यादा ध्यान देगी लेकिन रोमों मैग के मोह से वंचित न रह सकी। जब मोना ने उसे शुक्रवार की याद दिलायी तो उसने जाने से इंकार कर दिया।

‘’अरी, चल... तू डरती है न मीस रोज़ालीना से। वह हमें कभी नहीं पहचानेगी। अपना मेकअप बदल लेंगे।’’ मोना ने मही को प्रलोभन दिया।
‘’नहीं मोना।’’
‘’मैं तो अपने बॉयफ़्रेंड को लेकर जाऊँगी। बोल, अगर तू चाहे तो तेरे लिये एक बॉयफ़्रेंड ला देंगे।’’
‘’तू तो ऐसे बोल रही है जैसे रोमों मैग की तरह यह भी उधार मिलता है।’’
‘’उधार क्या? तुम कहो तो मुफ़्त में मिल जाएगा। तुम जानती हो रॉयल कालेज का वह लड़का सुभाष तुम्हारा दीवाना है।’’
‘’वो जोकर।’’
‘’मिनिस्टर का बेटा है। कई बार तुम्हारे बारे में मुझसे पूछ चुका है।’’
‘’देख मोना, तू मेरे बारे में उसे कुछ न बताया कर। कह देना कि मेरा अपना बॉयफ़्रेंड है। मेरे लिये कोई आशा न रखे।’’
‘’तू बहुत बुद्धू है मही। ऐसा प्रेमी ठुकरा रही है। मैं जानती हूँ तेरा कोई प्रेमी नहीं है।’’
‘’तो चुप रहा कर।’’

बात सच थी। मही के जीवन में कोई नहीं था लेकिन वह अपने हीरो का सपना देखा करती थी। उसे रोमों मैग का हीरो डानीलो डेनवर्ट बहुत ही अच्छा लगता था। उसके साथ वह सपनों में रोमांस किया करती थी। जो भी लड़का उसे प्रोपोज़ करता वह उनका प्रस्ताव इसलिये ठुकरा देती थी कि किसी का चेहरा उसके हीरो से नहीं मिलता था। उसने डानीलो का एक स्केच भी बनवा लिया था और रोज़ उस स्केच पर गुलाबी कनेर रख देती। सोफ़िया और मोना अपने प्रेमी के साथ दिन में घूमती फिरती तो मही अपने प्रेमी के साथ सपनों में सफ़र करती। तीनों लड़कियों के लिये ज़िंदगी बहुत हसीन थी।

एस सी की परीक्षा सर पर आ गयी। पढ़ाई ज़ोर शोर से होने लगी। मही प्रथम श्रेणी में परीक्षा पास हुई और अगले दो साल के लिये हायर स्कूल सर्टिफ़िकेटके कम्पिटीशन में बैठ गयी। मोना से उसका साथ छूट गया लेकिन डानीलो से नाता तोड़ न पायी। दिन रात उसके ख़्यालों में वहीं बैठा रहता। एक दिन वह अपनी माँ के साथ बिटिश राजदूत के दफ़्तर गयी। वहाँ उसने जो देखा उससे उसके होश उड़ गये। वह अपनी आँखों पर विश्वास ही न कर सकी, सोचने लगी कहीं वह कोई सपना तो नहीं देख रही है! उसके सामने हू-ब-हू डानीलो जैसा एक शख़्स खड़ा था। इससे पहले कि उसे और देखती वह राजदूत के दफ़्तर में चला गया। जब मही की माँ का काम पूरा हो गया तो वहाँ और रुकने की कोई गुँजाइश नहीं थी। वह अनमने ढंग से बाहर आयी...लेकिन ब्रिटिश दूतावास के सामने एक कॉफ़ी हाउस देखकर उसे एक उपाय सूझा। वह अपनी माँ को लेकर उस रेस्तराँ में बैठ गयी और कॉफ़ी का ऑर्डर देकर बाहर बड़ी बेसब्री से उस श्ख़्स का इंतज़ार करने लगी। उसका दिल बल्लियाँ उछल रहा था। उसे बहुत इंतज़ार भी नहीं करना पड़ा कि वह शख़्स दूतावास से बाहर आया और अपनी शानदार होंडा गाड़ी में बैठकर चला गया। मही दौड़कर बाहर आयी और उसने उसकी गाड़ी का नंबर मन ही मन याद कर लिया। घर आकर उसने सोफ़िया से मिलने का फैसला किया क्योंकि उस शख्स को ढूँढ़ना उसके बस की बात नहीं थी।

मही जानती थी कि वह कहाँ मिलेगी। अत्यंत व्यस्त होने के बावजूद वह क्यूपीप की प्रीज़ीनीक गयी और सोफिया से मिलकर अपने दिल की बात बता दी। उसे इतना भी ख़्याल न रहा कि वह अपने जीवन की सबसे कठिनतम परीक्षा देने जा रही है और अपने दिल की बात बताकर क्या वह बेवकूफ़ी नहीं कर रही है? फिर भी उसके मन में ऊँच-नीच, ईर्ष्या-द्वेष जैसी भावनाएँ न थीं। उसकी माँ उसे कई बार समझा चुकी थी कि अपने दिल की बात हर किसी से नहीं कहनी चाहिये। सोफ़िया उसके लिये ‘हर किसी’ की श्रेणी में नहीं थी बल्कि उसकी बचपन की सहेली थी। उसी की बदौलत वह डानीलो जैसे हीरो को जान पायी। मही की सारी बातें सुनकर उसने बड़े प्यार से कहा-
‘’तुम निश्चिंत रहो मही। मेरी एक सहेली का भाई ब्रिटिश दूतावास में काम करता है उससे पता चल जाएगा कि वह कौन है।‘’

फिर उसने चुटकी लेते हुए कहा-‘’कहीं सचमुच तुम्हारा हीरो निकला तो...तुम तो मुझे भूल ही जाओगी।’’ मही शरमाकर मुस्कुरा दी।
चार महीने बीत गये। सोफ़िया की कोई खबर नहीं मिली। मही ने एच एस सी की परीक्षा भी दे दी। रिज़ल्ट भी निकल आया। मही इकोनोमिक्स में लोरियट हो गयी। उसके कॉलेज की लड़कियों ने उसे कंधे पर उठाकर पूरे परिसर की सैर करायी। टी वी, रेडियो में उसके नाम की चर्चा होने लगी। घर में खुशी का माहौल छाया हुआ था। इन सब के बावजूद मही खुश नहीं थी। उसका मन बेचैन था। वह उस अनजाने शख़्स को देखने के लिये तड़पने लगी। एक महीना निकल गया और मही को फ़्रांस जाने का वजीफ़ा भी मिल गया। उसकी माँ उसके विदेश जाने का ज़रूरी सामान जुटाने में व्यस्त हो गयी। मही का भी यात्रा की तैयारी में समय बीतने लगा। उसके सारे कागज़ात जब तैयार हो गये तब कहीं जाकर उसने चैन की साँस ली।

मही के विदेश जाने में एक सप्ताह बाकी था। वह गुलाबी कनेर की बहार राजमार्ग पर देख रही थी। जाने क्यों उसकी माँ ने इस सुंदर फूल को लॉन में जगह नहीं दी। उसे अपनी दादी की बात याद आ गयी। रास्ते के पार जाकर कुछ सफ़ेद और गुलाबी कनेर तोड़कर उसने सरस्वती और काली माँ को चढ़ाकर बहुत देर तक पूजा की। आज उसे भगवती के चरणों में बैठकर बहुत ही शांति मिल रही थी। वहीं बैठे बैठे उसे अपनी बचपन की सहेली मीमोज़ा की याद आयी। उसे यह भी याद आया कि उसी ने कहा था कि गुलाबी युगल कनेर से अगर तांत्रिक प्रयोग किया जाय तो जन्मों के बिछड़े प्रेमी मिल जाते हैं। सोफ़िया तो न जाने कहाँ गायब हो गयी है। क्यों न मीमोज़ा से ही कोई उपाय पूछा जाय। उसकी नानी तो है टोने टोटके में माहिर। वह तुरंत उठ कर उससे मिलने गाँव चली गयी।

मीमोज़ा भी उसी की उमर की थी और अब वह भी एक सुंदर युवती हो गयी थी। वह सिलाई कढ़ाई करके अच्छी आमदनी कमा रही थी। मही को देखकर वह फूली नहीं समायी। मही जब मीमोज़ा के पास पहुँची तो दिन के बारह बज चुके थे इसीलिये मीमोज़ा की नानी उसे खाना खिलाए बिना न रही। मही के बारे में सभी को खबर थी कि वह लोरियट हो गयी है इसीलिये मही को इस विषय में ज़्यादा कुछ कहने की ज़रूरत नहीं हुई लेकिन उसने शरमाते शर्माते मीमोज़ा से अपने दिल की बात बतायी। मीमोज़ा ने अपनी नानी से आग्रह किया कि वह उसके लिये कुछ करे। पहले तो उसने चेतावनी दी कि इस परफंद में न पड़े और विदेश जाकर अपनी उच्च शिक्षा पूरी करे लेकिन मही अपने अजनबी की मोह में ऐसी बंधी थी कि उसकी आँखों में आँसू छलक आये। मीमोज़ा की नानी इस युवा दिल की पीड़ा समझ गयी। उसने अपने कमरे से एक गुच्छा गुलाबी कनेर लाकर मही को देते हुए कहा-
‘’इस फूल को ले बिटिया। इसे रात में अपने तकिये के नीचे रखकर सोना। अगर वह अजनबी तेरे जीवन में आएगा तो तुझे सपने में दिख जाएगा। अगर नहीं आया तो ईश्वर की इच्छा मान कर उसे भूल जाना। ईसा मसीह तेरी रक्षा करे। आमेन।’’

मही जब घर वापस आयी तो बहुत खुश थी। उसकी माँ ने उसे एक बड़ा लिफ़ाफ़ा देते हुए कहा-‘’देख मही, तेरी किसी सहेली की शादी का कार्ड लगता है। खोल के देख तो।’’
‘’हाँ! माँ।’’
इतना कह कर वह लिफ़ाफ़ा लिये अपने कमरे में चली गयी। सब से पहले उसने कनेर के गुच्छे को मेज़ पर रखा और लिफ़ाफ़ा जब खोला तो उसमें सोफ़िया की शादी का कार्ड था। साथ ही उसके लिए एक चिट्ठी भी थी। वह चिट्ठी पढ़ने लगी-
प्यारी मही,
तुमने जिसे ढूँढ़ने के लिये मुझसे कहा था उसे तो मैंने एक महीने के अंदर ही ढूँढ़ लिया था। उसकी शुगर मिल रेनियन टापू में है। मैं उसे देखते ही मर मिटी थी। सॉरी यार, तू बचपन में मुझसे एक बाज़ी मार गयी थी आज मैं तुझसे जीवन की यह खूबसूरत बाज़ी मार गयी। हिसाब बराबर। वैसे तो तू फ़्रांस जा ही रही है। तुझे तेरा डानीलो मिल ही जाएगा।
उसका नाम शादी के कार्ड में पढ़ लेना।
तेरी विदेश यात्रा के लिये अनेक शुभकामनाएँ।
तुम्हारी
सोफ़िया।

मही ने डबडबायी आँखों से सोफ़िया के होने वाले पति का नाम पढ़ा। ‘विवियां’
वह बहुत देर तक कमरे में निश्छल खड़ी रही। जब उसकी माँ उसके लिये चाय लेकर आयी तो उसने पूछा-
‘’माँ मेरे साथ समुद्र चलेगी?’’
‘’हाँ मही, मुझे भी तो वरुण देवता की पूजा करनी है। पहली बार तू समुद्र पार जाएगी।’’

मों स्वाज़ी के समुद्र में सूर्यास्त हो रहा था। सारा वातावरण स्वर्णमय था। पक्षियों का समवेत गान वातावरण को गुँजायमान कर रहा था। मही धीरे-धीरे तट की ओर बढ़ी और फिर क्षितिज की ओर हाथ बढ़ाकर उसने गुलाबी कनेर के जादुई गुच्छे को लहरों के हवाले कर दिया।

 

१६ जून २०१४

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