इस सप्ताह- |
1
अनुभूति
में-
योगेन्द्र वर्मा व्योम,
शरद तैलंग, पूनम शुक्ला, सावित्री डागा और अभय कुमार यादव की
रचनाएँ। |
कलम गही नहिं
हाथ- |
नौका वाला चौराहा, बोट राउंड अबाउट,
शिप राउंड अबाउट या कश्तीवाला इशारा, शारजाह का एक शांत मगर
महत्वपूर्ण स्थल है।
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- घर परिवार में |
रसोईघर में- हमारी
रसोई-संपादक शुचि द्वारा प्रस्तुत है- शिवरात्रि का तैयारी में
फलाहार के लिये विशेष
रुप से बनाई गयीं
कूटू की पूरियाँ। |
आज के दिन
(२४ फरवरी को) १९२४ में गायक तलत महमूद, १९३९ में अभिनेता जॉय मुखर्जी और
१९४८ में राजनीतिज्ञ जयललिता, का जन्म हुआ। ...
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हास
परिहास
के अंतर्गत- कुछ नये और
कुछ पुराने चुटकुलों की मजेदार जुगलबंदी
का आनंद...
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नवगीत की पाठशाला में-
कार्यशाला-
३२ विषय- 'शादी उत्सव गाजा बाजा' में रचनाओं का प्रकाशन
प्रारंभ हो गया है। टिप्पणी के लिये देखें-
विस्तार से... |
पुरानी लघुकथाओं-
के
अंतर्गत प्रस्तुत है ९ सितंबर
२००२ को प्रकाशित
सूरज प्रकाश की लघुकथा
बीच का
रास्ता।
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वर्ग पहेली-१७४
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और रश्मि-आशीष के सहयोग से
|
सप्ताह
का कार्टून-
कीर्तीश
की कूची से |
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साहित्य एवं
संस्कृति में-
शिवरात्रि के
अवसर पर |
समकालीन कहानियों में भारत से
मंजु मधुकर की कहानी-
त्रिनेत्र को चुनौती
कभी
सुना था कि भोले शंकर का तीसरा नेत्र भी है, क्रोध में आने पर
ही प्रकट होता है और अपनी क्रोधाग्नि से समस्त ब्रह्मांड हो
भस्म कर देता है। परंतु यह क्या, कामदेव को भी तो भस्म किया
था, फिर वह क्यों किसी-न-किसी पर सवार हो न उम्र देखते हैं, न
समय, न ही परिवेश। ऐसा भान होता है कि पल-प्रतिपल वह भोले बाबा
को उकसाते रहते हैं कि लीजिए, मैं अनंग हुआ तो क्या, आप मेरा
कुछ भी बिगाड़ नहीं सके और न कभी मेरा अहित करने में सफल हो
सकेंगे। जब मैं अंगीय था तो केवल आप ही मेरे बाणों से घायल
हुए, परंतु अब तो अंग-विहीन हो अनंग बन समस्त ब्रह्मांड को
कँपाता रहूँगा। कई बार तो किसी-न-किसी पर यूँ सवार हो जाते हैं
कि स्थिति हास्यास्पद हो जाती है। ऐसा ही एक दिलचस्प किस्सा है
जया के बड़े भैया का। जया अपने सरकारी विशाल बँगले के बाह्म
बरामदे में बैठी सामने दीवार पर टँगी भोले शंकर की तस्वीर के
त्रिनेत्र को देखती सोच रही थी, जहाँ किसी श्रद्धालु चित्रकार
ने अत्यंत दक्षता से शंकरजी का त्रिनेत्र दर्शाया था। ...
आगे-
*
नागार्जुन का व्यंग्य
बम भोलेनाथ
*
डॉ चन्द्रिका प्रसाद शर्मा की कलम से
बटेश्वर नाथ महादेव
*
पूजा प्रजापति का आलेख
शिव और ताण्डव
*
पुनर्पाठ में- उषा खुराना का आलेख
मारीशस में शिवरात्रि
1 |
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पिछले
सप्ताह- |
१
गिरीश पंकज का व्यंग्य
संकट और संगीत
*
डॉ. नरेन्द्र प्रताप सिंह से प्रकृति में-
मूवाँ पक्षी यानि उल्लू
*
व्यक्तित्व में अवध बिहारी का
आलेख
रचनाधर्मिता के बृहस्पति- रामनरेश त्रिपाठी
*
पुनर्पाठ में- कला और कलाकार
के अंतर्गत- सैयद हैदर रजा
*
समकालीन कहानियों में यू.के. से
उषा राजे की कहानी-
चाइनीज कालर
हरे बुंदे
हवा
में नमी थी। रात बारिश होती रही शायद इसलिए उसे गहरी नींद आई।
आँख खुली तो दीवार पर लगी घड़ी को अधखुली आँखों से देखा। सुबह
के छः बजे थे। समीर अभी तक उठा नहीं! सब ठीक तो है न! तकिए में
मुँह गड़ाए, वह चुपचाप लेटी सोचती रही फिर उसने बायाँ हाथ
बढ़ाकर समीर के देह को टटोला। हाँ..आँ.. शायद उठ गया। कमाल!
अभी तक उसने आवाज़ नहीं लगाई। हो क्या गया है आज इस समीर को?
यूँ तो रोज़ उसे झिंझोड़ते हुए अब तक कई आवाज़ें लगा चुका होता,
‘उठ कितना सोएगी? छः बज चुके हैं, आज चाय नहीं मिलेगी क्या?’
फिर याद आया, अरे हाँ, कल तो वह ऑफिस से सीधे ऑडिट के लिए
मैनचेस्टर रवाना हो गया था। नींद की अलस में उसे याद ही नहीं
रहा। अब जल्दी क्या है सो जा, उसने खुद से कहा। ऐसा सुखद दिन
पिछले कई वर्षों में पहली बार मिला है। समीर की नींद तो ठीक
साढ़े पाँच बजे ‘डॉट ऑन’ खुल जाती है, फिर क्या मजाल वह उसे
सोने दे।
आगे- |
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