विश्व के कई देशों में
भारतीय मूल के लोग बसे हुए हैं। जहाँ-जहाँ भारतीय हिंदू
हैं, वहाँ-वहाँ उनके देवी-देवता और देवालय। उनसे जुड़े
व्रत-त्योहार भी उतनी ही श्रद्धा एवं उल्लास से मनाए
जाते हैं। शिव, शिवालय और शिवरात्रि की त्रयी इस कथन का
सर्वोत्तम उदाहरण हैं। अपने देश के पड़ोसी हिंदू राष्ट्र
नेपाल से लेकर सुदूर मॉरीशस, सूरीनाम, गुयाना,
त्रिनिदाद, फीजी इत्यादि देशों में शिवरात्रि का पर्व
किसी न किसी रूप में उसी श्रद्धा से मनाया जाता है,
जितनी श्रद्धा से अपने यहाँ मनाते हैं।
तेरहवाँ ज्योतिर्लिंग : मॉरीशसेश्वर
प्राय: बारह
ज्योतिर्लिंगों की प्रतिष्ठा है। ये भारत में ही हैं
लेकिन विश्व का तेरहवाँ शिव ज्योतिर्लिंग मॉरीशस में
हैं। इस बात को कम ही लोग जानते हैं। मॉरीशस का प्रसिद्ध
'मॉरीशसेश्वर नाथ' नामक शिव मंदिर ही तेरहवाँ
ज्योतिर्लिंग हैं। इसे हम मॉरीशस का केदारनाथ अथवा
रामेश्वर कह सकते हैं।
यों तो मॉरीशस बहुत ही
सुंदर द्वीप है। हिंद महासागर के हरित नील वर्णी जल में
रखे चमकीले मोती-जैसा एक आकर्षक टापू। लेकिन वह
इंद्रधनुषों का देश है और अपनी संस्कृति में
वैविध्यपूर्ण। इसीलिए सांस्कृतिक अभिरुचि के अध्येताओं
के लिए यह एक आश्चर्यजनक समाज है। विभिन्न धर्मों के लोग
यहाँ निवास करते हैं। फिर भी वे रुचिपूर्वक कुल आबादी के
५२ प्रतिशत भारतीय समाज के त्योहारों में सम्मिलित होते
हैं। इन त्योहारों में यहाँ सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण
त्योहार है - शिवरात्रि।
आस्था
का आयाम
प्राकृतिक झरनों, झीलों
और सागर के विभिन्न रंगों ने मिलकर मॉरीशस को जो सुंदरता
सौंपी हैं, उसको आस्था का आयाम देकर मनुष्य ने एक नया
विस्तार तथा अर्थवत्ता दे दी है। इसका सर्वोत्तम उदाहरण
है यहाँ के परी-तालाब अथवा गंगा सरोवर के तट पर स्थित
मॉरीशसेश्वरनाथ शिव-मंदिर। प्रतिवर्ष शिवरात्रि के पर्व
पर हज़ारों की संख्या में मॉरीशसवासी गंगा सरोवर के तट
पर आते हैं। शिव की पूजा-अर्चना करते हैं। प्रतिमाएँ
विसर्जित करते है और गंगा सरोवर का पवित्र जल
श्रद्धापूर्वक अपने घरों को ले जाते हैं।
मॉरीशस
की गंगा
ग्रैंड बेसिन में स्थित
गंगा सरोवर वास्तव में एक सुरम्य प्राकृतिक झील है। इसे
'परी तालाब' भी कहा जाता है। लोग कहते हैं कि इस तालाब
के बीच में जो धरती का टुकड़ा है, वहाँ परियों की
नाट्यशाला थी। रोज़ रात को परियाँ यहाँ नृत्य करती थीं।
एक ग्वाला उन परियों का नृत्य रातभर छिप-छिपकर देखता था।
एक दिन वह सूर्योदय से पूर्व चुपचाप अपने घर नहीं लौट
सका। परियों ने उसे देख लिया और वह पत्थर का हो गया। आज
'मुड़िया पहाड़' के रूप में मॉरीशस का जो सबसे
महत्त्वपूर्ण पहाड़ दिखायी देता है, वह वही ग्वाला है।
इस पहाड़ की आकृति ठीक ऐसी है कि लगता है कोई मानव आकृति
न जाने कब से यों ही पत्थर बनी बैठी हैं। लेकिन यह
'परितालाब' अब 'गंगा सरोवर' है। लोगों का विश्वास है कि
यहाँ गंगा का अवतरण हुआ था। यहाँ के वासियों के लिए यह
झील ही गंगा है।
अवतरण
: दिव्य ज्योति का
गंगा सरोवर के तट पर एक
भव्य शिव-मंदिर बनाया गया है। इस मंदिर के साथ एक
चमत्कारिक घटना जुड़ी हुई है। बताया जाता है कि
'मॉरीशसेश्वर नाथ शिव' की प्रतिष्ठापना समारोह के अवसर
पर पाँचवे दिन २ मार्च १९८९ को शाम लगभग ५ बजे आकाश में
घनघोर घटाएँ छा गईं। बिजली चमकने लगी तथा मूसलाधार बारिश
होने लगी। मंदिर के गुंबद पर एक दिव्य ज्योति उतरी और
त्रिशूल से होती हुई शिवलिंग में प्रवेश कर गई। यह सब एक
क्षण में पलक झपकते ही हो गया। तब जब कमांडिंग अफसर
'कलश' के निकट महाज्योति प्रज्ज्वलित करने जा रहे थे। उस
क्षण में अचानक बिजली चली गई, किंतु मंदिर के २१ बल्ब
तत्क्षण जगमगा उठे। जनसमूह की उपस्थिति में एक गंभीर,
मनोहर और आनंदमयी ध्वनि उत्पन्न हुई। त्रिशूल से जल
टपकने लगा एवं तिलक के सामने रखे मखमली कपड़े पर किसी
प्रौढ़ मनुष्य के दाहिने पैर का-सा चिह्न उभर आया। कुछ
देर बाद यह पग-चिह्न हाथी के चेहरे में बदल गया। 'गंगा
सरोवर' का जलस्तर अनपेक्षित स्तर तक बढ़ गया क्यों कि
धारासार वर्षा लगभग एक घंटे से लगातार हो रही थी। तालाब
तक आनेवाली सड़कें पानी में डूब गयीं। मुख्य नदी में
बाढ़ आ गई। यातायात रुक गया। एक घंटे बाद समूचा वातावरण
प्रशांत, निरभ्र हो गया तथा गंगा सरोवर पर एक श्वेत
कुहासे की चादर छा गई। संपूर्ण गंगा-सरोवर-- जैसे दिव्य
अनुभूति से भर गया।
दिव्यता के प्रत्यक्षदर्शी
अभिषेक के अवसर पर घटित
इस अभूतपूर्व घटना को अनेक धर्मों के श्रद्धालुओं ने
देखा था। आठवें दिन सबके सामने गणेश की पूजा-आरती करते
समय गणेश का प्रतिनिधित्व करनेवाले 'कलश' ने हाथी के
चेहरेवाले गणेश भगवान का रूप ग्रहण कर लिया! शिवलिंग पर
स्वत: ही नाग तथा स्वस्तिक के चिह्न उभर आए।
गंगा सरोवर नामक इस
प्राकृतिक सुनील झील के तट पर कुछ सीढ़ियाँ चढ़कर एक और
शिव-मंदिर है। इसके ठीक सामने ऊँचाई पर बनाया गया है
भक्त प्रवर हनुमान का मंदिर तथा तट पर राम-सीता का
छोटा-सा मंदिर। मुख्य शिव मंदिर में गणेश, देवी-दुर्गा,
नवगृह, आदि की सुंदर मूर्तियाँ हैं।
सांस्कृतिक निष्ठा
मॉरीशस में भारतीयों की
संख्या लगभग १५० वर्ष पूर्व ब्रिटिशराज के समय बढ़नी
शुरू हुई थी। भारत के विभिन्न प्रांतों से प्रवासी
श्रमिक यहाँ लाए गए थे। कुछ ही लोग स्वेच्छा से आए थे,
अधिकांश या तो जबरन लाए गए अथवा यहाँ की मिट्टी में सोने
की खान होने का लालच देकर! इन लोगों ने अपना घर-गाँव
छोड़ा, किंतु अपनी संस्कृति नहीं छोड़ी। कुछ लोग अपने
धर्म के प्रति इतने जागरूक थे कि उन्होंने लिखित आश्वासन
ले लिया था कि उनका धर्म न बदला जाए, और सच तो यह है कि
ऐसे ही जागरूक अनपढ़ श्रमिकों ने अपनी धर्म-ध्वजा इस
अजनबी द्वीप पर फहराई, जो आज भी उसी गौरव से फहरा रही
है। इसी धर्म-ध्वजा की छाया में प्रतिवर्ष मॉरीशस का
शिवरात्रि राष्ट्रीय धार्मिक पर्व उसी उल्लास के साथ
मनाया जाता है। लोग व्रत रखते हैं, इस गंगा सरोवर का
पवित्र जल अपने-अपने घरों को ले जाते हैं। कहा जाता है
कि यह जल भी गंगा के समान शुद्ध है और महीनों तक खराब
नहीं होता। |