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३०. ९. २०१३

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
मातृनवमी के अवसर पर विविध विधाओं में अनेक कवियों की माँ को समर्पित ढेर-सी रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- हमारी रसोई-संपादक शुचि द्वारा प्रस्तुत ब्रेड के व्यंजनों की विशेष शृंखला में इस बार प्रस्तुत है- शाही टुकड़े।

रूप-पुराना-रंग नया- शौक से खरीदी गई सुंदर चीजें पुरानी हो जाने पर फिर से सहेजें रूप बदलकर- टिशू पेपर के खाली रोल का कमाल

सुनो कहानी- छोटे बच्चों के लिये विशेष रूप से लिखी गई छोटी कहानियों के साप्ताहिक स्तंभ में इस बार प्रस्तुत है कहानी- दुर्गा पूजा

- रचना और मनोरंजन में

नवगीत की पाठशाला में- प्रकाशित चुनी हुई रचनाओं का संकलन जल्दी ही प्रकाशित होने की प्रक्रिया में है। नई कार्यशाला की घोषणा में अभी कुछ समय और...

साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये यहाँ देखें।

लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत- इस सप्ताह प्रस्तुत है १६ मई २००६ को प्रकाशित गिरिराज किशोर की कहानी—माँ आकाश है

वर्ग पहेली-१५३
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य एवं संस्कृति में-  मातृनवमी पर माँ के लिये

समकालीन कहानियों में
भारत से अमर स्नेह की कहानी माँ

त्रिवेणी तट लोगों से अटा पड़ा है। मानवी सैलाब थमने का नाम ही नहीं लेता। जहाँ तक दृष्टि जाती है छाजन, गुमटियाँ, तम्बू, पंडाल, लहराते झंडे-झंडियाँ, धर्म पताकाएँ। हर तरफ धर्माचारी, भाँग, चरस, सुलफे में लीन। कहीं भी पैर रखने तक की जगह नहीं। दानी-धर्मी, निरंकारी, सेठ-साहूकार, भिखारी, योगी, नागा, साधु-संन्यासी, गृहस्थ, फक्कड़, बाल-वृद्ध, नर-नारी की आवाजाही, रेलमपेल। स्नान-ध्यान, कीर्तन-आरती, हवन-यज्ञ, प्रवचन-भंडारे, घंटे-घड़याल, झाँझ-मंजीरे, धौंसे-डफ-डमरू-ढोल, बिगुल-शंख-करतालों की ध्वनि, जयकार करता जनसमूह और नदी का कोलाहल। कुल मिलाकर इतना शोर कि अपनी भी आवाज सुनाई नहीं देती। ऐसे में एक बूढ़ी औरत भीड़ के बीच एक टीले पर खड़ी दूर तक पास से गुजरते एक-एक चेहरे को गौर से देखती है और निराश होकर पुकारना शुरु कर देती है। जब वह थक जाती है तो वहीं बैठ जाती है और फिर वही क्रम दोहराने लगती है। उसे देखकर लगता है, जैसे बाँस के बीहड जंगल में कोई पक्षी फँसकर चीख-चिल्ला रहा हो। मैं उसे काफी दूर से देखता आ रहा था। एक क्षण रुका तो भीड़ का ऐसा रेला आया कि मैंने कुछ देर बाद खुद को एक घाट पर पाया। आगे-
*

ज्योति जैन की
लघुकथा- देवी
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अनंत आलोक का आलेख
माता बाला सुंदरी
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अजातशत्रु की संस्मरण
गाँव में नवदुर्गा
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पुनर्पाठ में- देव प्रकाश का आलेख
दुर्गा पूजा का सांस्कृतिक विश्लेषण

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पिछले सप्ताह-


ब्रह्मदेव का व्यंग्य
चिंता में आनंद है
*

डॉ. अशोक उदयवाल का आलेख
चुकंदर स्वास्थ्य का कलंदर
*

डॉ.अँगनेलाल से कलादीर्घा में
बौद्ध धर्म में कला
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पुनर्पाठ में- शरद आलोक का संस्मरण
जिसने-लंदन-को-नहीं-जिया-उसने-जीवन-को-नहीं-जिया

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जयनंदन की कहानी बॉडीगार्ड

गणित में एम.एस.सी. पास भूदेव को एक अनपढ़ नोखेलाल का बॉडीगार्ड बन जाना पड़ा। भूदेव समाज में दया, प्रेम और न्याय के समीकरण को प्रतिष्ठित होते देखना चाहता था और गणित द्वारा दिमाग ही नहीं हृदय भी लगाकर समस्या का समाधान किया करता था। जबकि नोखेलाल अपराध की दुनिया का एक कुख्यात व्यक्ति था। वह हिंसा, आतंक और शोषण की खेती करता हुआ खुद एक समस्या था। समाज को जरूरत थी भूदेव के होने की और नोखेलाल के न होने की। लेकिन विडंबना यह थी कि नोखेलाल के होनेके लिए, उसे बचाने के लिए भूदेव को उसका कवच बन जाना पड़ा। जबकि कवच की जरूरत सही मायने में भूदेव को थी। उस दिन भूदेव ƒघर लौटा था कहीं से, शायद जिला मुख्यालय स्थित एक कॉलेज से पार्ट टाइम €क्लास लेकर, तो देखा कि उसके पिता ƒपरिवार के लोगों में लड्डू बाँट रहे हैं और सभी लोग बड़ी प्रसन्न मुद्रा में हैं, जैसे एक ऐतिहासिक अवसर को सेलिब्रेट कर रहे हों। माँ ने उसे कई लड्डू एक साथ थमाते हुए कहा, 'तुम्हारे बाऊजी आज नौकरी पक्की करके आये हैं।' वह चौंका...नौकरी €क्या कोई कुँवारी कन्या है कि... आगे-

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी -|- मीनाक्षी धन्वंतरि
 

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