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पर्यटन

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माता बाला सुंदरी
-अनन्त आलोक


देवभूमि हिमाचल का शायद ही कोई ऐसा ग्राम या कस्बा हो जहाँ कोई न कोई धार्मिक स्थल यहाँ के लोगों की आस्था और विश्वास को पुष्ट न करता हो। यही कारण है कि इसे देवभूमि कहा जाता है। हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर के मुख्यालय नाहन से लगभग १६ किलोमीटर की दूरी पर दक्षिण पश्चिम में मध्यम ऊँचाई की पर्वत शृंखला की तलहटी में घने वन के आँचल में एक रमणीक एवं पावन स्थल है, जिसे पिहोवा या त्रिलोकपुर के नाम से न केवल हिमाचल अपितु समस्त उत्तर भारत में जाना जाता है। त्रिलोकपुर जैसा कि नाम से ही स्पष्ट होता है। यह तीन शक्तियों का संगम है। जो माँ दुर्गा के तीन स्वरूपों को दर्शाता है।

मुख्य मन्दिर जो त्रिलोकपुर में स्थित है माता बालासुन्दरी का है। यह माता दुर्गा के बाल रूप का साक्षात दर्शन है। जिन्हें आदिशक्ति के रूप में पूजा जाता है। दूसरा मन्दिर भगवती ललिता देवी का है जो माता बालासुन्दरी के मुख्य द्वार के सामने तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। त्रितीय त्रिपुर भैरवी का मन्दिर माता बाला सुन्दरी मन्दिर के उत्तर पश्चिम में लगभग १३ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

माता भगवती बालासुंदरी की पिण्डी के ऊपर पंचदर्शी यंत्र स्थापित है। सरस्वती तट पर होने के कारण इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। वामन पुराण के अनुसार वाराणसी से भगवान शंकर के साथ ही माता बाला सुन्दरी पिहोवा में आई और यहीं पर निवास करने लगी। शास्त्रों के अनुसार सतयुग में पृथूदक पिहोवा की स्थापना के समय श्री पृथ्वेश्वर महादेव और माता बाला सुन्दरी की स्थापना व पूजा राजा वेन के पुत्र राजा पृथू द्वारा की गई। मंदिर में माता बाला सुन्दरी एक पिण्डी के रूप में स्थापित है। जिसपर एक विशेष यंत्र बना हुआ है। विद्वान ज्योतिषियो के अनुसार यह पंचदर्शी यंत्र है जिसकी सच्चे मन से अराधना करने से सृष्टि के हर प्रकार का सुख व वैभव प्राप्त होता है। जोकि बहुत दुर्लभ है कहा जाता है कि आज से लगभग ८०० वर्ष पूर्व मुगल शासको ने इस मंदिर को ध्वस्त कर दिया और तभी माता का पिण्डी स्वरूप लुप्त हो गया। बाद में माता बाला सुन्दरी मन्दिर का निर्माण १५७३ में सिरमौर रियासत के तत्कालीन शासक राजा दीप प्रकाश द्वारा करवाया गया था।

एक दंतकथा के अनुसार लगभग साढ़े ३५० वर्ष पूर्व माता पिंडी रूप में यहाँ पर पहुँची थीं। उस समय इस स्थान पर एक व्यवसायी लाला राम दास व्यापार किया करता था जो उत्तर प्रदेश के देव वन नामक स्थान से नमक लेकर आता था। एक बार जब वह नमक लेकर आया तो एक चमत्कार हुआ। लाला नमक बेचता रहा लेकिन हैरानी कि नमक समाप्त ही न हुआ। जितना नमक वह बेचता पात्र में उतना ही नमक वापस भर जाता। यूँ प्रतीत होता मानो पात्र से नमक निकाला ही न गया हो। वसायी को ज्यों ही इस चमत्कार का आभास हुआ उसे खुशी तो हुई ही साथ ही जिज्ञासा का होना भी स्वभाविक था। उसकी रातों की नींद गायब हो गई।

ज्यों ही उसकी आँख लगी माता ने सपने में आकर दर्शन दिए और बताया कि देवी माता ने भूमि के स्वामी को स्वपन में दर्शन दिए और आदेश दिया की मैं इस भूमि में स्थित कुंए के अन्दर पिण्डी रूप में विराजमान हुँ। आज भी वह कुआँ मंदिर के प्रांगण में विद्यमान है। अगले दिन सुबह ही उस जिज्ञासु और श्रद्धावान परिवार ने जैसे ही खुदाई शुरू की तो वहाँ से एक क्षीण अवस्था में भवन के अवशेष दिखाई दिए। उस ब्रहाम्ण ने उसका जिर्णोद्धार कर पिण्डी को मंदिर में स्थापित किया। चूँकि व्यवसायी अभी इस देव कारज के निमित्त कुछ करने में असमर्थ था। अतः व्यसायी ने अपने साथ हुये चमत्कार और स्वप्न में माता का दर्शन एवं उनकी आज्ञा राजा के समुख जा सुनाई। राजा ने जब स्वयं आकर देखा कि जिस स्थान पर माता पिंडी रूप में विराजमान थी वहाँ पर एक दिव्य आलोक प्रर्दर्शित हो रहा था। राजा ने शक्ति को प्रणाम किया और उसे अपनी कुल देवी स्वीकार करते हुए जयपुर से कारीगरों को बुलाया तथा इस स्थान पर एक सुन्दर मन्दिर का निर्माण करवा गया। उसमें माता को विधिवत प्रतिष्ठित करवाया गया। तभी से माता बाला सुन्दरी राजपरिवार की कुल देवी एवं व्यवसायी रामदास के वंशज माता के पुजारी हुए। मन्दिर के निमार्ण के पूर्ण होने पर जो अनुष्ठान हुआ वह यहाँ की परंपरा बन गई।

बाद में सन् १८२३ में राजा फतेह प्रकाश ने मन्दिर का जीर्णेद्वार करवाया तथा १८५१ में फिर महाराजा रघुबीर प्रकाश ने पुनः मन्दिर का जीर्णोद्वार करवाया। इस समय यहाँ पर माता बाला सुन्दरी मन्दिर न्यास का गठन जिला प्रशासन की देखरेख में किया गया है। जो यहाँ की व्यवस्था को देखता है। माता बाला सुन्दरी के दर्शनार्थ हिमाचल के अलावा समस्त उत्तर भारत से भक्तजन आते हैं और मनवांच्छित फल प्राप्त करते हैं।

वर्तमान में पिछले १४ वर्षो से नगरवासियों के सहयोग से माता बाला सुन्दरी कार्यकारिणी कमेटी पिहोवा का गठन किया गया। जिसके सभी सदस्य महामाई की असीम कृपा और नगर वासियों के सहयोग से मंदिर का निर्माण कार्य निरंतर जारी रखे हुए है। मंदिर प्रांगण में यात्री निवास भी स्थापित है। जिसमें निशुल्क व्यवस्था है और मंदिर कमेटी की ओर से २४ घंटें की ऐम्बुलैंस सुविधा भी उपलब्ध है।

यहाँ आने वाले भक्तों में मान्यता है कि माता के दर्शन का फल तब तक पूर्ण नहीं होता जब तक यहाँ स्थित ध्यानु भक्त के दर्शन न कर लिए जाएँ। मन्दिर के मुख्य द्वार से पहले भगवान भोले नाथ का अद्वितीय मन्दिर एक जलाशय के बीचोंबीच स्थित है। जिसके दर्शन एवं पूजा अर्चना कर श्रद्धालु अपने आप को धन्य करते हैं। माता के मन्दिर तक पहुँचने के लिए जिला सिरमौर के मुख्यालय नाहन से काला आम्ब होते हुए एवं प्रदेश के बाहर से आने वाले श्रद्वालु काला आम्ब पहुँच कर त्रिलोकपुर के लिए बस द्वारा या निजी वाहन से पहुँच सकते हैं। काला आम्ब से इस स्थान तक मात्र छह किलोमीटर की दूरी तय कर पहुँचा जा सकता है। माता बाला सुन्दरी भक्तों की मुरादें पूरी करे।

शास्त्रों के अनुसार नवरात्रों में देवी की उपासना का विशेष महत्व है। प्रत्येक वर्ष चैत्र मास में अश्विन मास व माता के नवरात्रें मंदिर प्रांगण में बडे धूम-धाम से मनाए जाते है और नवरात्रे की सप्तमी वाली रात्री को मंदिर कमेटी की और से प्रांगण में विशाल भगवती जागरण करवाया जाता है।

 

३० सितंबर २०१३

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