गणित में एम.एस.सी. पास भूदेव को एक अनपढ़
नोखेलाल का बॉडीगार्ड बन जाना पड़ा।
भूदेव समाज में दया, प्रेम और न्याय के समीकरण
को प्रतिष्ठित होते देखना चाहता था और गणित द्वारा दिमाग ही
नहीं हृदय भी लगाकर समस्या का समाधान किया करता था। जबकि
नोखेलाल अपराध की दुनिया का एक कुख्यात व्यक्ति था। वह हिंसा,
आतंक और शोषण की खेती करता हुआ खुद एक समस्या था। समाज को
जरूरत थी भूदेव के होने की और नोखेलाल के न होने की। लेकिन
विडंबना यह थी कि नोखेलाल के होनेके लिए, उसे बचाने के लिए
भूदेव को उसका कवच बन जाना पड़ा। जबकि कवच की जरूरत सही मायने
में भूदेव को थी।
उस दिन भूदेव घर लौटा था कहीं से, शायद जिला
मुख्यालय स्थित एक कॉलेज से पार्ट टाइम क्लास लेकर, तो देखा
कि उसके पिता परिवार के लोगों में लड्डू बाँट रहे
हैं और सभी लोग बड़ी प्रसन्न मुद्रा में
हैं, जैसे एक ऐतिहासिक अवसर को सेलिब्रेट कर रहे हों। माँ ने
उसे कई लड्डू एक साथ थमाते हुए कहा, "तुम्हारे बाऊजी आज नौकरी
पक्की करके आये हैं।"
वह चौंका...नौकरी क्या कोई
कुँवारी कन्या है कि बाउजी उसके ब्याह की बात तय करके चले
आये! कुतूहल की ठंडी लकीरें उसके चेहरे पर उभर आयीं।
अब पिता मथुरा प्रसाद बताने लगे,
"हम सीधे नोखेलाल के घर से आ रहे हैं। कई साल से हम अपना
दुखड़ा उससे रोते आ रहे थे। आज उसने हमारी सुन ली। बोला कि भेज
दीजिये भूदेव को, हम अपना बॉडीगार्ड में रख लेंगे...अपने
नातेदारी का विश्वासी आदमी ही हम खोज रहे थे। खाना-खोराकी समेत
तीन हजार रुपया हम महीना देंगे।"
भूदेव को लगा कि यह उसकी
नौकरी का नहीं मानो श्राद्ध का लड्डू बाँटा जा रहा है। यह
इंतजाम तो एक तरह से उसे मारने का ही है। पहली मृत्यु तो साधना
में व्यतीत उस आयु की होगी जो एम.एस.सी. की डिग्री लेने में
गुजरी। किसी चीज का निरर्थक हो जाना मौत से भी बड़ा अभिशाप है।
दूसरी मृत्यु बची हुई इस आयु की भी तय है। एक प्रचंड आततायी,
जिसकी हजारों से दुश्मनी हो, का बॉडीगार्ड होकर कोई जीनेकी
तमन्ना भी करना चाहे तो कब तक कर सकता है।
उसने कातरमुख होकर कहा, "बाउजी, बेहतर हो नौकरी न मिलने के
जुर्म में आप मुझे शूली पर लटका दें, लेकिन ऐसी जघन्य सजा न
दें।"
"कौन बोला तुमको कि यह सजा है? अरे यह तो उनके करीब जाकर दिल
जीतने का एक जरिया है। सुना नहीं कि किसी भी साहब से बड़े से
बड़ा काम निकालने में सबसे ज्यादा सफल डलेवर, बवर्ची और
बॉडीगार्ड होता है।"
"आप क्या समझते हैं कि जिस आदमी का आप नाम ले रहे हैं उसका
बॉडीगार्ड बनकर कोई बचा रह जाएगा बड़ा काम लेने के लिये?"
"आप ऐसा क्यों कहते हैं? हमने तो यह कभी नहीं सुना कि जो
बॉडीगार्ड होता है उसे रात-दिन गोली खानी पड़ती है!" इस बार
सामने खड़ी उसकी पत्नी ने अपने ससुर के लिये समर्थन-मुद्रा
दिखलाती हुई उसके सामान्य ज्ञान को चुनौती दे दी थी।
"मैं औरों की बात नहीं कर रहा, जिस आदमी का बॉडीगार्ड मुझे
बनने को कहा जा रहा है उस नोखेलाल की बात कर रहा हूँ।
"आप किसी की भी बात कर रहे हों। आपको पता होना चाहिए कि यह चलन
बहुत पुराना है। राजा-महाराजा तक अपना अंगरक्षक रखा करते थे।
राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री आदि का भी बॉडीगार्ड होता है। इससे
व्यक्ति की शान बढ़ती है...बड़े और खास होने का पता चलता है।"
उसकी पत्नी अपने पति को एक नौकरी में देखने के लिये मानो
लालायित थी।
"हैरत है कि तुम उस खूँखार आदमी के संदर्भ में यह बात कर रही
हो जिसने आज तक सिर्फ जुल्म और अत्याचार करके अपने दुश्मन ही
बनाये हैं, जिस पर आज तक कितनी ही बार गोलियाँ चल चुकी हैं,
भले ही हर बार वह बच जाता रहा है।"
पास ही खड़ी उसकी माँ शायद अब तक जान चुकी थी कि बॉडीगार्ड का
मतलब क्या होता है। उससे रहा न गया, "क्यों अपने बेटे को ऐसी
जगह भेज रहे हो जहाँ पर जान खतरे में है? नोखेलाल खतरों से
बचने के लिये बॉडीगार्ड रख रहा है और मेरा बेटा खतरों से खेलने
के लिये बॉडीगार्ड बन जाए?"
"तुम्हारा बेटा बॉडीगार्ड ही बनने जा रहा है कोई जंग लड़ने
नहीं जा रहा है...।"
"जंग लड़ना इससे लाख गुना अच्छा है बाउजी, उसमें एक बड़ा
उद्देश्य रहता है मातृभूमि और देश की रक्षा का। लेकिन जिस
मोर्चे पर आप भेज रहे हैं मुझे उसका उद्देश्य महज एक गलत आदमी
के लिये गलत काम करना है।"
"बाल से खाल निकालने की कोई जरूरत नहीं है। अगर तुम्हें
निकम्मा ही होकर रहना मंजूर है तो रहो। बात जब हम फैनल कर आये
हैं तो इस काम के लिये मँझला चला जाएगा।"
"यह क्या कह रहे हैं आप? मँझला वहाँ जाएगा अपनी पढ़ाई छोड़कर?"
"क्या करेगा पढ़ाई पढक़र? तुम्हारी तरह सवाल, जवाब, बहसबाजी,
बहानेबाजी, शोहदागिरी यही न! नहीं चाहिए मुझे ऐसी ऊँची पढ़ाई
जो आदमी को बेवकूफ और बुजदिल बना दे। मँझला, तू जाने के लिये
तैयार है न!"
"हाँ बाउजी, मैं चला जाऊँगा।" मँझला की आँखों में पढ़ाई के
झंझट से मुक्त होने और पैसे कमाने का उत्साह मानो छलक आया था।
भूदेव की पत्नी एकदम झल्ला उठी थी, घर में बड़ा भाई बेकार
बैठा रहे और छोटा भाई पढ़ाई छोड़कर काम करने जाए। इस नतीजे पर
आप खुश रह लेंगे न!"
मथुरा प्रसाद ने अपना ब्रह्मास्त्र चला दिया था तो पत्नी ने
एकघ्नी। जाहिर है इन्हें किसी तरह खाली नहीं जाना था। भूदेव
कैसे अपनी जगह अपने कच्ची उम्र भाई को गोली चलाने और गोली खाने
भेज देता? अंतत: उसे खुद ही जाने का फैसला करना पड़ा। जिस आदमी
से वह घृणा करता था...जिसे वह बर्बाद और ध्वस्त करने की
योजनाएँ बना रहा था, उसी की रक्षा करने वह चल पड़ा था।
एम.एस.सी. करने के बाद आठ साल गुजर गये थे, भूदेव को कोई नौकरी
नहीं मिली थी। राय सेवा आयोग की लिखित परीक्षा में दो बार पास
करके साक्षात्कार में छाँट दिया गया। वह फिर भी हताश नहीं था।
गाँव-जवार के उसके कई मेधावी दोस्त इस नियति को झेल रहे थे।
अपनी तरह के कई लोग दुखी मिल जाएं तो दुख कम हो जाता है। भूदेव
इसे व्यक्तिगत नहीं राष्ट्रीय समस्या के रूप में देखता था। उसे
यह विश्वास था कि एक न एक दिन उसकी बेकारी जरूर दूर हो जाएगी।
हर आदमी की दूर होती है, भले ही मरजी के मुताबिक काम न मिलने
पर बिन मरजी वाले काम से समझौता क्यों न करना पड़े। लेकिन
भूदेव के साथ बिन मरजी का इतना भयानक वास्ता पड़ जाएगा उसे
तनिक गुमान नहीं था।
जबकि वह घर में बैठकर रोटियाँ नहीं तोड़ता था। पिता को
खेती-बारी में पूरा सहयोग देता था, चाहे वह हल जोतना, लाठा
चलाना या बोझ ढोना हो। उसके जुड़ने से पैदावार में काफी अनुकूल
असर पड़ रहा था। गुजारे के लायक खेती थी, इसलिये ऐसा नहीं था
कि किसी भी आलतू-फालतू धंधे या चाकरी करने की सख्त लाचारी हो।
उसे बीच-बीच में जिला मुख्यालय स्थित कॉलेज में पार्ट टाइम
पढ़ाने का भी अवसर मिल जाता था। गाँव, कृषि और गणित से जुड़े
विषयों पर फीचर लिखकर वह अखबारों में भेजा करता था जो आसानी से
छप भी जाया करते थे। हालाँकि इन सबके बदले उसे जो पारिश्रमिक
मिलता वह आय में शुमार करने लायक नहीं होता। महज पॉकेट खर्च तक
ही सीमित था। इन परिस्थितियों में भी पता नहीं क्यों उसे बसर
करना अच्छा लगता था तथा उसके भीतर किसी क्षोभ की जगह नहीं थी।
इन्हीं दिनों ग्रामीण हितों की देखभाल करने के लिये शिक्षित
एवं बेरोजगार युवाओं का एक फोरम गठित हुआ, जिसका नेतृव बगल के
गाँव का उसका साथी सुमिरन कर रहा था।
इस फोरम का मुख्य अभिप्राय उन जालिम तत्वों पर नजर रखना था जो
गाँव एवं किसान के लिये ऊपर से चली विकास की धारा को रोककर सोख
लेते हैं एवं जो गाँव को चारागाह समझकर जब चाहते हैं मनमरजी चर
लेते हैं। बीज, बिजली, पानी, सड़क, ऋण, अनुदान कुछ भी तो
ठीक-ठीक नहीं पहुँच रहा था ग्राम रूट लेवल तक! ऊपर से
खेतों-खलिहानों की फसलों को लूटने तथा जातीय व वर्गीय उन्माद
पैदाकर हत्यायें करने और गाँव उजाड़ने वाले गुटों की सक्रियता
दिन ब दिन बढऩे लगी थी। भूदेव ग्रामीण कल्याण समिति नामक इस
फोरम से बहुत गहरा जुड़ गया। नतीजा यह हुआ कि इनकी अच्छे-अच्छे
सफेदपोश लोगों से आये दिन ठन जाने लगी, जिनमें बीडीओ, सीओ,
मुखिया, ग्रामसेवक, ठेकेदार, नेता और दबंग किसान आदि शामिल थे।
इन्हीं में एक सबसे खूँखार नाम नोखेलाल का था। जो दुर्भागय से
भूदेव के रिश्ते में मौसेरा भाई लगता था और अपनी जघन्य
कारगुजारियों से दूर-दूर तक बदनाम था।
चर्चा थी कि गाँव से होकर रात में गुजरनेवाली लंबी दूरी की एक
महँगी ट्रेन को फिशप्लेट हटवाकर उसने दुर्घटनाग्रस्त करवा
डाला था और कराहते एवं दम तोड़ते यात्रियों को दरिंदगीपूर्वक
जी भरकर लूट लिया था। जवार में हुए कई हिंसक जातीय संघर्ष एवं
बस्ती-दहन कांड में इसका सीधा हाथ होना साबित हो चुका था। इस
क्षेत्र में कोई भी सरकारी ठेका इसके बिना दूसरा नहीं ले सकता
था। दूसरा तभी ले सकता था जब इसकी मरजी हो और पंद्रह बीस
प्रतिशत कमीशन देने के लिये तैयार हो। इसी के चक्कर में आज तक
यहाँ कोई भी काम पुख्ता और बढिय़ा नहीं हुआ, चाहे वह पोखर हो,
सड़क हो, नहर हो, ट्यूबवेल हो, बिजली हो...। शहर से इन गाँवों
को जोड़ने के लिये पक्की सड़क की मंजूरी वर्षों पहले से मिली
हुई थी। लेकिन इसकी ठेकेदारी में आने-जाने लायक एक कच्ची सड़क
का अस्तित्व भी आज तक सामने नहीं आ पाया। बरसात आते ही वह इस
तरह ढह-ढनमना जाती कि अगले साल इसे दुरुस्त करने के लिये एक
नया ग्रांट सैंशन करवाना पड़ता। दरअसल नोखेलाल नहीं चाहता था
कि सड़क बनकर प्रशासन की आवाजाही इस तरफ बढ़ायी जाए। अपना
एकछत्र गुंडाराज चलाने के लिये ऐसा जरूरी था। सड़क-निर्माण के
मामले में जिस किसी ने इसकी सत्ता को अस्वीकार करके चुनौती
देनी चाही, उसे बेरहमी से कुचल दिया गया।
ग्रामीण कल्याण समिति को सबसे ज़्यादा जोखिम इसी चंट धूमकेतु
से टक्कर लेने में था। सुमिरन ने बताया था कि हमें इसके लिये
हर तरह की तैयारी करनी होगी। ईमानदारी, उसूल और कायदे-कानून के
बूते सिर्फ नहीं रहा जा सकता। लिहाजा नोखेलाल की शैली में ही
जवाब तैयार होने लगा। भूदेव पूरी तरह साथ था। सुमिरन ने पूछा
था कि उसके रिश्तेदार होने की वजह से अगर कोई हिचकिचाहट हो तो
वह अभियान से अपने को अलग कर सकता है। जवाब में भूदेव ने कहा
था कि नोखेलाल से घृणा करना और उसके ध्वस्त होने की कामना
करना उसकी बौद्धिक चेतना का एक अनिवार्य दायित्व है।
टकराव की छिटपुट घटनायें जब होने लगीं तो मथुरा प्रसाद जैसे
लोगों ने समझा कि बुरी संगति में पड़कर बुरे धंधे की ओर बढऩे
लगे हैं ये लड़के। वे बहुत चिंतित रहने लगे। बेटे के यदाकदा
कॉलेज में पढ़ाने और खेती में मदद करने को भी वे एकदम बेगारी
और दिनकट वाला काम समझते थे। वे अक्सर कहा करते थे कि जवान
बेटी अगर कुँवारी रहे और पढ़ा-लिखा बेटा बेरोजगार तो यह
माँ-बाप के माथे का कलंक है। वे पढ़ाने का उद्देश्य ही मानते
थे नौकरी करके पैसा कमाना। अगर नौकरी न मिली तो पढऩा या अनपढ़
रहना दोनों बराबर है। उन्हें लगने लगा था कि या तो बेटे में
अपेक्षित योग्यता नहीं है या योग्यता है तो जमाना अब
सोर्स-सिफारिश का हो गया है। वे वैसे-वैसे रिश्तेदारों के पास
आवागमन करने लगे जो किसी न किसी नौकरी में थे, भले ही उनसे
लंबे समय से कोई ताल्लुक नहीं रह गया था। वे उनसे कोई जुगाड़
बैठाने की खुशामद करते और प्रस्ताव रखते कि अगर घूस भी देने की
नौबत आयेगी तो वे पीछे नहीं रहेंगे। भूदेव जानता था और कहता भी
था कि बेकार ही आप अपने को हल्का बना रहे हैं। इन रिश्तेदारों
में कोई ऐसा नहीं है जिनकी हैसियत नौकरी देने-दिलाने की हो।
मथुरा प्रसाद इस उक्ति पर हीन भाव से उसे देखते हुए कहते कि
इतनी ही अक्ल तुम्हें रहती तो अब तक नौकरी मिल गयी होती। भूदेव
इस दृष्टिकोण पर बड़ा उदास हो जाता जिसके तहत नौकरी न मिलने
पर अक्लमंद या बुद्धिमान कहाने का भी हक नहीं।
पिता ने ऐसी छवि बना दी थी उसकी कि मामूली-सी पढ़ी-लिखी पत्नी
की निगाह में भी उसे समुचित आदर का अभाव दिखाई पड़ता। नवीं और
ग्यारहवीं में पढऩे वाले भाई भी उसे इतना तरजीह नहीं देते कि
अपने गणित के न हल होने वाले प्रश्न पूछ लें। सिर्फ माँ थी
जिसके बर्ताव से कोई भेद-भाव या हिकारत का पता नहीं चलता था।
भूदेव जब घर की अपेक्षाओं में झाँककर असहाय हो उठता था तो
सुमिरन अपनी अवस्था दिखाकर उसे उबार लेता था, "मेरे रिजल्ट तो
तुमसे भी अच्छे रहे हैं, भूदेव। तुम्हारी जितनी जमीन भी मेरे
पास नहीं है। तुम्हारे गार्जियन पिता हैं तो मेरा भाई। तुमसे
तो ज़्यादा मुझे नौकरी की जरूरत है। लेकिन नहीं मिलती तो हार
जाना समाधान नहीं है, बल्कि हमें इसका विकल्प ढूँढऩा होगा।
स्वरोजगार योजनाओं की ओर हमें बढऩा चाहिए। तुम्हारे पिता की
भोली कोशिशें देखना थककर एक दिन यथास्थिति को स्वीकार कर
लेंगी।"
लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मथुरा प्रसाद को एक अदद नौकरी, चाहे वह
किसी भी स्तर की हो ढूँढऩी थी और उहोंने ढूँढ ली। नोखेलाल कुछ
ही दिन पहले चुनाव जीतकर एमेले बन गया था।
कहा जाता है कि चुनाव आयोग ने जिन-जिन धाँधलियों और गड़बडिय़ों
पर अंकुश लगाने का अभियान चलाया था, वे सारी की सारी अपने
अधिकतम विकृत रूप में नोखेलाल द्वारा संचालित की गयीं और वह
चुनाव जीत गया। जनता उसे हराने का मंसूबा लेकर मुँह बाये रह
गयी।
मथुरा प्रसाद एमेले बनने के पहले से उसके संपर्क में थे। उसकी
दबंगता, धाक और प्रभुता के वे बड़े कायल रहते थे। इसकी बुराई
को जमाने की जरूरत समझकर अच्छाई में काउंट करते थे। ऐसे
बाहुबली आदमी के अपनी जाति और रिश्ते में होने का उन्हें बड़ा
गर्व रहा करता था। वे उसके मौसा और उम्र में बड़े होने के
बावजूद छोटे की तरह पेश आते थे जिससे खूब श्रद्धा और
भक्ति-भाव टपकता था। राम-सलाम करने का शिष्टाचार भी वे अपने ही
खाते का दायित्व मानते थे। वे कभी अपने को मौसा होने का वास्ता
नहीं देते थे और ऐसा जाहिर करते थे जैसे कि नोखेलाल ही उसका
मौसा हो। ऐसे ही चरणदासी आचरण के द्वारा वे नोखे के गुडबुक
में दर्ज हो गये थे।
जब वह एमेले हो गया तो मथुरा प्रसाद ने अपने बेटे को कोई नौकरी
दिलाने की अपनी चिरपरिचित गुहार एकबार फिर लगायी। बस, मिल गया
उन्हें बॉडीगार्ड का ऑफर और बन गया भूदेव बॉडीगार्ड!
जिला पुलिस की ओर से पहले ही उसे एक सिपाही मिल चुका था। भूदेव
के नाम से शस्त्र-प्रतिधारण का लाइसेंस बनवाया गया। उसे कई
तरह के अस्त्रों को चलाने की, दुश्मन को पहचानने की, हमले से
निपटने की एवं निगाहों में चीते-सी सतर्कता रखने की ट्रेनिंग
दी गयी। दिखावे के तौर पर उसे हमेशा धारण करने के लिये एक
लाइसेंसी रिवाल्वर दिया गया, लेकिन बताया गया कि गुप्त रूप से
उसके पास दूसरा शक्तिशाली आदमी भी रहा करेगा। जीप या कार आदि
में जब नोखेलाल के साथ सफर करेगा तो उसकी पहुँच के भीतर
कार्बाइन और स्टेनगन आदि भी हुआ करेंगी। साथ देने के लिये
हथियारों से लैस आठ-दस अतिरिक्त वेटरन भी होंगे, कुछ इसी गाड़ी
में, कुछ पीछे की गाड़ी में। ये लोग प्रशासन के खाते में
कानूनी तौर पर बॉडीगार्ड के रूप में दर्ज नहीं होंगे। दुश्मन
का वार कब कितना आक्रामक होगा, उससे निपटने की ये तैयारी हमेशा
बहाल रहेगी।
जीवन और समय को खूबसूरत एवं आधुनिकतम बनाने के लिये गणित के
कठिन सवाल हल करने वाला हाथ जीवन और समय को बदसूरत और आदिम
बनाने वाले कठिन सवाल खड़े करने जा रहा था। भूदेव हैरान था कि
सदन में बैठकर कानून तोड़ने का सारा इंतजाम रखा हुआ है। तब भी
इस पर कोई टाडा या कोई अधिनियम लागू करने वाला कोई नहीं है।
पहले ही दिन उसकी इच्छा हुई कि उसी के दिये रिवाल्वर से उसकी
हत्या कर दे। लेकिन एक सरल-सीधे आदमी की जहनियत से वह उबर नहीं
सका। विश्वासघात, मानसिक-यंत्रणा और घरवालों के क्षोभ से
जुड़े इंसानी जज़्बे को पूरे वेग से उसने अपने भीतर संचरित होते
पाया।
ऊहापोह के बीच भी एक बॉडीगार्ड के रूप में उसकी दिनचर्या शुरू
हो गयी। नोखेलाल ने अपना आवास अब जिला मुख्यालय में ही
स्थानांतरित कर लिया था। पहले से ही एक आलीशान कोठी बनवाकर रखी
हुई थी। राजधानी के एमेले फ्लैट में विधानसभा अधिवेशन के दौरान
मुश्किल से दो-चार दिन ही टिक पाता था।
चूँकि वह विधानसभा में ऊँघने के सिवा और कोई काम करने के लायक
नहीं था। हाँ, जब मारपीट की नौबत आती तो वह जागकर अपने दल
वालों के पक्ष में अग्रणी भूमिका निभाने लगता।
भूदेव जब भी उसके साथ होता, कार में अथवा कोठी पर, हमेशा उसके
अवचेतन में यह बना रहता कि कभी भी किसी दिशा से गोलियाँ बरसने
लग जाएंगी। तब या जवाबी फायर करने में उसका प्रजेंस ऑफ माइंड
साथ देगा? उँगलियाँ धड़ाधड़ स्ट्रिगर पर चलेंगी? अब एक-एक दिन
की उम्र उसे ईश्वर की कृपा जान पड़ती।
वह बैठा हुआ अक्सर सोचा करता कि योग्यता का गलत प्लेसमेंट
क्या कभी रूकेगा इस मुल्क में? जिस आदमी को इंजीनियर बनना था
वह रसोइया बन जाता है...जिस आदमी को पान बेचना था वह डॉक्टर
जाता है...जिस आदमी को रिक्शा चलाना था वह देश चलाने वाला बन
जाता है...जिस आदमी को वैज्ञानिक बनना था वह बॉडीगार्ड बन जाता
है।
एक बार अखबार पढ़ते हुए उसकी नजर उस रपट पर टिक गयी जिसमें
बताया गया था कि देश में विशिष्ट और अतिविशिष्ट लोगों की
सुरक्षा- व्यवस्था पर करोड़ों रुपये का खर्च आता है। उसके मन
में यह विचार कौंध गया था कि गरीब जनता की गाढ़ी कमाई के ये
रुपये अगर फैक्ट्री लगाने में खर्च किये जाते तो हजारों
बेरोजगारों को काम मिल जाता। क्या इस लोकतांत्रिक देश में ऐसा
माहौल कभी बन सकता है कि किसी से किसी की कोई दुश्मनी न
रहे...किसी को किसी के डर से कोई बॉडीगार्ड रखने या कड़े
सुरक्षाप्रबंध में रहने की जरूरत न पड़े? शायद इसकी कोई
संभावना नहीं है... यह देखते हुए कि अमीरी और गरीबी की खाई दिन
ब दिन चौड़ी होती जा रही है तथा मालिक बनने की प्रवृत्ति को
बढ़ावा और संरक्षण दिया जा रहा है।
अखबारों में जब कभी यह खबरें उसकी नजरों से गुजरतीं कि अमुक
साहब एक हमले में बच गये लेकिन उनका अंगरक्षक मारा गया तो उसकी
आत्मा कलप उठती। किसी की दुश्मनी और किसी की मौत! खेत खाये
गदहा और मार खाये जुलाहा!
कोठी के मुलाकाती कमरे में कभी टीवी देखते हुए अगर उन
कार्यक्रमों को देख लेता जिसमें बड़े लोगों के साथ बॉडीगार्ड
दिखायी पड़ जाते तो वह उनके हावभाव और मनोदशा को पकड़ने की
कोशिश करता। उसे लगता कि ये लोग मानो दिखाई पड़के भी दिखाई
नहीं पड़ रहे हैं... अतिमहत्वपूर्ण के साथ होकर भी बहुत लघु और
तुच्छ हैं।
अपनी नियति को समझकर धीरे-धीरे वह भूलने लगा कि जीवन में उसने
कोई लक्ष्य निर्धारित किया था। उसे असर आहटें सुनाई पड़ने
लगीं कि उसके भीतर जमीर, गैरत, वजूद टूट रहे हैं...दम तोड़ रहे
हैं।
उस दिन अपने मुलाकाती कमरे में नोखेलाल बैठा हुआ था। बाहर के
वेटिंग-हॉल में बैठकर बॉडीगार्ड की हैसियत से उसे निगरानी रखनी
थी भीतर जानेवालों पर। बाहर से तीन-चार कारें आकर रूकीं।
तीन-चार व्यक्ति उतरे और आकर बिना पूछे अंदर घुसने लगे।
भूदेव ने इन्हें रोक दिया। "आप बिना बाबू की इजाजत के भीतर
नहीं जा सकते।"
"तुम्हारी यह मजाल! जानते हो हम कौन हैं?" एक की आँखों में
गुस्सा उबल उठा।
"मैं आपको नहीं पहचानता।"
"कहाँ हैं नोखे बाबू?" वह चीख उठा।
नोखेलाल भीतर से आया और इन्हें देखकर भूदेव पर बरस पड़ा,
"तुम्हें आदमी को पहचानने की भी तमीज नहीं है! राजधानी के
मशहूर आदमी गौरांग बाबू को भी नहीं जानते! खाक पढ़े-लिखे हो?
आइये गौरांग बाबू, इसकी तरफ से हम माफी माँगतेहैं।"
भूदेव को ऐसा लगा जैसे उस पर घड़ों ठंडा पानी डाल दिया गया हो।
यही औकात है उसकी! इस दुष्ट गौरांग का नाम बेशक उसने अखबारों
में बहुत पहले पढ़ा था। इसी ने उस समय एक थलेरा नामक गाँव को
जलाकर राख कर दिया था, जिसमें दर्जनों लोग जीवित स्वाहा हो गये
थे।
कुछ ही रोज पहले की बात है-एक परिचित गरीब किसान को बिना पूछे
उसने भीतर जाने दे दिया था तो इसी नोखे ने उसकी काफी खिंचाई कर
दी थी। कहा था कि बिना पूछे किसी को भी अंदर नहीं आने देना
है...क्या पता कौन किस वेश में हमलावर हो! जबकि इस किसान के
बारे में वह अच्छी तरह जानता था कि बाप के श्राद्ध के लिये
चीनी की दरख्वास्त लेकर आया है।
एक और घटना स्थायी रूप से उसके दिमाग पर दर्ज हो गयी है।
बूँदी देवी नाम की एक महिला अपने पति के साथ नोखेलाल से एकबार
मिल चुकी थी। उसका काम फिर भी नहीं हुआ। वह किसी स्कूल में
प्रधानाध्यापिका होकर आयी थी, परंतु वहाँ का पुराना हेडमास्टर
कई महीनों से उसे चार्ज देने से इंकार करता आ रहा था। दोबारा
वह अकेली ही मिलने आयी। मुलाकातियों की पंक्ति में देर तक बैठी
रही, परंतु उसका बुलावा तब आया जब वहाँ कोई न बचा, सिवा भूदेव
और सिपाही के। वह देर तक भीतर बनी रही। उठा-पटक और धड़-पकड़ की
आवाजें स्पष्ट रूप से सुनाई दे रही थीं। भूदेव का खून खौल उठा
था। लग रहा था कि भीतर घुसकर बलात्कारी नोखे को गोलियों से
छलनी कर दे। पर एक नपुंसक आक्रोश से बस बिलबिलाकर वह रह गया।
औरत जब बाहर आयी तो उसे इस तरह देखा जैसे थूक कर धिक्कार रही
हो। अपनी तुच्छता पर उस दिन उसे बहुत रोना आया।
आशंका के अनुरूप किसी तरह के खतरे कई महीने बीत जाने के बाद भी
उपस्थित नहीं हो रहे थे, फिर भी भूदेव को महसूस हो रहा था कि
एक अदृश्य पैना आक्रमण रोज-रोज हो रहा है उस पर। मथुरा प्रसाद
तो भूदेव की बुद्धि की दुहाई देते हुए अपने निर्णय पर निहाल
होने लगे थे, "कहा था न हमने कि कोई गोली-वोली नहीं चलने वाली
है। अरे किसकी माई बाघ बियाई है जो नोखेलाल से टक्कर लेगा!
तुम नाहक ही डर से मिमियाये जा रहे थे।"
भूदेव भला क्या समझाता उन्हें! उसे खुद ताज्जुब हो रहा था कि
ऐसा हो कैसे रहा है? इसके डंक खाये लोगों के मंसूबे क्या ठंडे
हो गये? सुमिरन और उसके ग्रामीण कल्याण समिति की तैयारी का
क्या हुआ? या नोखेलाल के एमेले बन जाने पर यानी इसकी गुंडई को
वैधानिक अधिकार मिल जाने पर इनके हौसले की भी हवा निकल गयी! जब
से वह इधर आया उससे मुलाकात नहीं हुई। पता नहीं वे सभी साथी
क्या क्या राय बना रहे होंगे अपने मन में? निश्चय ही दोगला और
दो मुँहा की उपमा दी जाती होगी। इसी श्रेणी का आचरण किया भी
तो है उसने। शायद मिल जाएं तो घृणा से वे बात भी न करें।
भूदेव इस तरह के आंतरिक और स्वगत संवादों से एकदम विचलित हो
जाता था।
एक दिन ऐसा हुआ कि सुमिरन अपने दो साथियों के साथ सचमुच ही
नोखेलाल से मिलने आ पहुँचा। भूदेव पर निगाह पड़ी तो अपनी आँखें
फेर लीं। लगा कि उस औरत बूँदी देवी की तरह ये लोग भी उस पर थूक
रहे हैं। उसके भीतर बनती हुई मुर्देपन और बौनेपन की ग्रंथि आज
और बड़ी हो गयी। वह चाहते हुए भी नहीं पूछ सका कि कैसे हो
सुमिरन? क्या हो रहा है इन दिनों? इस दुष्ट से क्यों मिलने
चले आये...इसके किसी जाल में तो नहीं फँस रहे?
वे जब अंदर चले गये तो भूदेव ने अपना कान दरवाजे पर लगा दिया।
कोई अन्य मुलाकाती नहीं था, इसलिये ऐसा करना संभव हो गया।
सिपाही अपनी ड्यूटी पूरी करके सो गया था। महीनों से स्थिति को
निरापद देखकर अन्य छुटभैये भी अतिसतर्क नहीं रखे जा रहे थे।
कोठी के लॉन में वे इधर-उधर बिखरे थे।
सुमिरन ने बिना राम-सलाम के पहले ही वाक्य में अपनी बात रख दी,
"एसडीओ ने बताया कि सड़क निर्माण के लिये हमारे शुरू होने
वाले काम के बारे में आप कुछ कहना चाहते हैं।
"तो तुम्हीं लोग हो सड़क के काम में हाथ घुसाने वाले? तुम्हें
पता है कि शुरू से इसे मेरा एक फर्म करता आ रहा है?"
"हाँ, हमें पता है कि आपका फर्म करता आ रहा है कुछ इस तरह कि
हर साल वह टूट जाए। इसलिये इस बार हमारा फर्म नहीं फोरम करेगा
ताकि दोबारा न टूटे।"
"मेरे मामले में हाथ डालने का अंजाम तुम्हें मालूम है?"
"वे हाथ काट दिये जाते होंगे।"
"तुम्हें ठीक मालूम है।"
"लेकिन इस बार जो हाथ बढ़ रहे हैं वे कटने वाले नहीं काटने
वाले हाथ हैं। हर हाथ गाजर-मूली नहीं होते मि.नोखे लाल। कुछ
हाथ फौलाद के भी होते हैं।"
"लड़के! जवानी के जोश में औकात का पता नहीं चलता। तुम लोगों को
काम चाहिए तो अदब से बात करना सीखो। मैं जिस स्थान पर अब हूँ
सबका भला देखना चाहता हूँ। चलो, यह काम मैंने दे दिया तुम
लोगों को, शर्त यह है कि बीस प्रतिशत कमीशन तुम्हें एडवांस दे
देना पड़ेगा।"
"आप बहुत गलत जगह पर हाथ फैला रहे हैं, नोखेलाल जी! हम दान
सुपात्र को देते हैं और भिक्षा उसे जो किसी काम के लायक न हो।
आप इन दोनों में नहीं आते।"
"तुम्हें पता नहीं है कि मेरी मरजी के बिना यहाँ पत्ता तक नहीं
हिलता।"
"यह मुगालता अब आप छोड़ दीजिये। आपकी सहमति -असहमति का हम पर
कोई प्रभाव पड़ने वाला नहीं है। यह कांट्रैक्ट हर हाल में हम
पूरा करके रहेंगे। चाहिए तो यह था कि विधायक होने के नाते आप
खुद सड़क बनवाने की पहल करते लेकिन बदकिस्मती है हमारी कि आप
इसे रुकवाने में अपना जोर आजमाइश कर रहे हैं। यही कारण है कि
आप यहाँ के जन प्रतिनिधि हैं, लेकिन जनता हमारे साथ है।"
"बहुत बड़ी-बड़ी बातें कर रहे हो छोकरे, लगता है जिंदगी से मोह
नहीं रह गया है तुम्हें।"
"यह तो वक्त ही बतायेगा कि कभी-कभी ऊँट भी पहाड़ के नीचे आ
जाता है। आप जहाँ कहीं भी मुकाबला करना चाहें हम तैयार हैं।
चलो, साथियों।"
दरवाजे से निकल पड़े तीनों। नोखेलाल भी इनका पीछा करते हुए
बाहर आ गया और बौखलाया हुआ-सा इन्हें जाते हुए देखने लगा।
तीनों की निर्भीकता ने एकदम मोह लिया भूदेव को। इसे कहते हैं
जीना और अपने होने को सार्थकता प्रदान करना।
नोखेलाल ने अचानक एक खूनी फैसला कर लिया, "फायर... इन पर फायर
करो... ये हमलावर हैं...हमें मारने आये थे। काउंटर करो...अपने
लोगों को बुलाओ...!"
भूदेव के हाथ कंपकंपा गये-यह क्या पागलपन है। वह नर्वस-सा होकर
कभी रिवाल्वर को तो कभी नोखेलाल को देखता रह गया। नोखेलाल ने
झट उसके हाथ से रिवाल्वर छीनकर दनादन कई गोलियाँ चला दीं। अगले
ही पल सामने से भी जवाबी गोलियाँ आने लगीं। वाह, सुमिरन! तो
सही-सही अनुमान करके पूरी तैयारी के साथ आये थे तुम! बहुत
अच्छे!
नोखेलाल बाल-बाल बचते हुए कायरों की तरह अपने कमरे में समा गया
और डर से सिटकनी चढ़ा ली। जवाबी गोलियाँ लगातार आ रही थीं। वह
अंदर से ही चिल्ला रहा था, "भूदेव, ए.के.-४७ चलाओ, नहीं तो बच
नहीं सकोगे।" भूदेव की पहुँच के दायरे में ही ए.के.-४७ था
लेकिन वह चाहता था कि सुमिरन और उसके साथी बचे रहें। चूँकि इस
निपट पिछड़े क्षेत्र को विकास की मुख्य धारा से जोड़ने के लिये
एक पुख्ता सड़क का निर्माण और इसके शत्रुओं का संहार जरूरी था,
जिसे ये लोग ही पूरा कर सकते थे।
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