अभिव्यक्ति-समूह : फेसबुक पर

पुरालेख तिथि-अनुसार। पुरालेख विषयानुसार हमारे लेखक लेखकों से
तुक कोश  //  शब्दकोश //
पता-


१२. ८. २०१३

इस सप्ताह-

अनुभूति में- स्वतंत्रता दिवस के अवसर विभिन्न रचनाकारों द्वारा, विविध विधाओं में रचित, देश से संबंधित ढेर-सी काव्य रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- हमारी रसोई-संपादक शुचि द्वारा प्रस्तुत ब्रेड के व्यंजनों की विशेष शृंखला में इस बार प्रस्तुत है- बाम्बे सैंडविच

रूप-पुराना-रंग नया- शौक से खरीदी गई सुंदर चीजें पुरानी हो जाने पर फिर से सहेजें रूप बदलकर- टायर में निखरा प्राकृतिक सौंदर्य

सुनो कहानी- छोटे बच्चों के लिये विशेष रूप से लिखी गई छोटी कहानियों के साप्ताहिक स्तंभ में इस बार प्रस्तुत है कहानी- सुबह का नाश्ता

- रचना और मनोरंजन में

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला-२९ विषय- मेरा देश के लिये प्राप्त रचनाओं का प्रकाशन शुरू हो गया है। टिप्पणी लिखने के लिये यहाँ देखें।

साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये यहाँ देखें।

लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत- इस सप्ताह प्रस्तुत है ९ सितंबर २००६ को प्रकाशित शिबन कृष्ण रैणा की कहानी— बाबू जी

वर्ग पहेली-१४६
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-
कीर्तीश की कूची से

अपनी प्रतिक्रिया लिखें / पढ़ें

साहित्य एवं संस्कृति में-  स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर

समकालीन कहानियों में भारत से हेमंत जोशी
की कहानी अनास नदी क्यों सूख गई

असीम राय निज़ामुद्दीन रेलवे स्टेशन में मदन मोहन शर्मा का बेताबी से इंतज़ार कर रहा था। रात के दस बज कर दस मिनट हो चुके थे और इंदौर एक्सप्रेस निकलने में अब कोई पाँच मिनिट बचे थे। अचानक सीढ़ियों से भागते हुए उतरता मदन उसके पास आ पहुँचा। वह हाँफ रहा था लेकिन सिगरेट तब भी हाथ में थी।
एई दादा, अपना डिब्बा किधर है?
यही सामने वाला है। यह भी कोई समय है आने का? असीम गुस्से में भी था और आश्वस्त भी हो चुका था।
सामान रखते-रखते गाड़ी चल पड़ी थी। दोनो सहकर्मी अपनी-अपनी बर्थ पर चादर बिछा कर बैठ चुके थे। असीम अपनी उत्सुकता को ज़्यादा देर तक रोक नहीं पाया। एई बताओ मदन कि झाबुआ जैसी पिछड़ी जगह जाने के लिए तुम उतना ज़ोर क्यों लगाया?
उधर हमारा दूसरा बीबी रहता।
ओरी बाबा! तुम तो छुपा रुस्तम रे। आज तक किसी को बताया नहीं।
मौका ही नहीं लगा यार। अभी दो सुट्टे लगा कर आता हूँ।
जब मदन सिगरेट पीकर, फ़ारिग होकर लौटा तो असीम महाराज ढेर हो चुके थे।  ...आगे-

*

संकलित बोध-कथा
पिंजरे का तोता
*

अनीता महेचा का आलेख
स्वतंत्रता के पुजारी- महाराणा प्रताप
*

भजन लाल महाबिया की कलम से
राष्ट्र चेतना और आल्हा का व्यक्तित्व
*

पुनर्पाठ में- तारकेश्वरी सिन्हा से संवाद
संसद में नहीं हूँ झख मार रही हूँ

अभिव्यक्ति समूह की निःशुल्क सदस्यता लें।

पिछले सप्ताह-


डॉ. अजित गुप्ता का व्यंग्य
चाहत शेर को देखने की
*

शैलेन्द्र चौहान से फिल्म इल्म में
मन्ना डे का संगीत-संसार
*

कुमुद शर्मा से व्यक्तित्व में
जगन्नाथदास रत्नाकर
*

पुनर्पाठ में- यश मालवीय का संस्मरण
जो कहते थे कि जीते रहिये
*

समकालीन कहानियों में भारत से
राहुल यादव की कहानी दोस्ती

कड़ाके की हड्डी गला देने वाली ठंडी पड़ रही थी, और साथ ही साथ थोड़ा थोड़ा कुहरा भी छाया हुआ था। धूप अभी निकलने की कोशिश ही कर रही थी, लेकिन इन सब की परवाह न करते हुए रोज की ही भाँति बब्बा का कौड़ा (लकड़ी का अलाव) जल चुका था। वैसे मैं रोज बब्बा के जागने के बाद ही जागता था, इसलिये मुझे कभी पता नहीं चला की ये कौड़ा बब्बा कब जलाते हैं और कौड़ा जलाने के लिये इतनी ढेर साडी लकड़ी कहाँ से लाते हैं। लेकिन इतना पता था की सूरज की पहली किरण निकलने से पहले गोशाला के पास में कौड़ा जल जाता था और गाँव के सभी बूढ़े आ जाते थे। जब मैं जगा तो गाँव के ५-६ बूढ़े पहले से ही बब्बा के पास पुआल पर आसन जमा के बैठे थे और हुक्के की गुड़ गुड़ के साथ सर्दी की सुबह वाली चाय का आनंद ले रहे थे। आज चर्चा का विषय ये था कि चरखे पर किसके गन्ने की पेरेन होगी और किसका गुड़ बनेगा। गाँव में सभी लोग मिल बाँट कर काम करते हैं, तो एक ही चरखे पर बारी बारी से सब अपना गन्ना पेर लेते हैं। वैसे भी हमारे गाँव में सिर्फ घर के इस्तेमाल भर का ही गन्ना...आगे-

अभिव्यक्ति से जुड़ें आकर्षक विजेट के साथ

आज सिरहानेउपन्यास उपहार कहानियाँ कला दीर्घा कविताएँ गौरवगाथा पुराने अंक नगरनामा रचना प्रसंग पर्व पंचांग घर–परिवार दो पल नाटक परिक्रमा पर्व–परिचय प्रकृति पर्यटन प्रेरक प्रसंग प्रौद्योगिकी फुलवारी रसोई लेखक विज्ञान वार्ता विशेषांक हिंदी लिंक साहित्य संगम संस्मरण
चुटकुलेडाक-टिकट संग्रहअंतरजाल पर लेखन साहित्य समाचार साहित्यिक निबंध स्वास्थ्य हास्य व्यंग्यडाउनलोड परिसरहमारी पुस्तकेंरेडियो सबरंग

© सर्वाधिकार सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी -|- मीनाक्षी धन्वंतरि
 

Loading
 

आँकड़े विस्तार में

Review www.abhivyakti-hindi.org on alexa.com