एक दिन हम भी शेर देखने की चाहत
में रणथम्भौर अभयारण्य की ओर निकल पड़े। असल में हमें जितनी चाहत शेर की नहीं थी
उससे अधिक उस जीप की सवारी की थी जिस पर चढ़कर हमें शेर देखने जाना था। हम अक्सर
शिकारियों की जीप देखा करते थे। सौभाग्य से ऐसी जीपें हमारे घर के सामने से रोज ही
निकलती हैं तो हमारा लालायित होना स्वाभाविक ही था। हमारे घर के पास थोड़ा बचा-खुचा
जंगल है और हमारे शहर में क्षत्रिय भी बड़ी तादाद में हैं। अक्सर मूँगिया रंग की एक
खुली जीप हमारे ख्वाबों के शहजादे की तरह हमें नजर आती थी, जीप के पीछे एक जाल लगा
रहता था और उसमें बाबा आदम के जमाने की एक बंदूक पड़ी रहती थी।
मुझे लगता है कि यह जीप और उसमें चढ़कर शिकर करने का शौक एक स्टेटस सिम्बल है, जो
हमारे पास नहीं था, इसलिए हम उन्हें ललचाई निगाहों से देख लेते थे। हमारे यहाँ के
‘बने’ अक्सर ऐसी जीप लेकर निकल जाते हैं, यह बात अलग है कि उन्हें खरगोश तक नहीं
मिल पाता और वे दो चार किलोमीटर जीप को घुमाकर सारी जनता पर अपने क्षेत्रीय होने का
रौब डालकर घर आ जाते हैं। ऐसे ही रौब मारने के चक्कर में सलमान खान मारा गया, उसे
पता ही नहीं था कि जमाना बदल गया है और अब सामंतशाही समाप्त हो गयी है। पहले तो
राजा प्रजा का शिकार भी कर लिया करते थे लेकिन अब हिरण को भी मारना अपराध है। सलमान
ने सोचा कि अरे मैं तो जनता का लाड़ला राजकुमार हूँ, मैं अभी तक केवल कमीज उतार कर
ही अपने आपको जबरू जवान बताता रहा हूँ लेकिन जोधपुर में आते ही उसे क्षत्रियों की
आन बान शान दिखायी दी। उसने ऐसी मूँगिया जीप में ‘बनों’ को जाते हुए देखा और वह भी
जोश में आ गया और दाग दी गोली बेचारे काले हिरण पर। खैर हम बात कर रहे थे शेर की।
शिकार की बात करना भी इस जमाने में अपराध है।
रणथम्भौर शेरों का अभयारण्य है। मीलों तक फैले इस जंगल में कहते हैं कि कई शेर है।
हम भी भरी गर्मी में निकल पड़े शेर को देखने। हमारे समाने हमारे ख्वाबों की जीप थी।
वैसी ही मूँगिया रंग की, खुली थी वह। बस पीछे जाल नहीं था। हमारे साथ एक गाइड भी
था। उसने हमें हैट भी पहनाए तो हमें ऐसा लगा कि राजा अपना-अपना मुकुट पहनकर शिकार
के लिए जा रहे हों अक्सर शिकारी जीपों के साथ हमने ठण्डी बोतलों का जखीरा भी देखा
था, हमारे गाइड भी इन सारी सुविधाओं के अभ्यस्त थे तो हमारी खुशी और गर्व का ठिकाना
नहीं रहा तब उसने आइस बाक्स के साथ कुछ पानी की बोतलें लीं। क्षत्रियों और हममें बस
इतना ही फर्क था कि हमारी बोतलें केवल मिनरल वाटर की ही थीं। पहले कभी-कभी जब जेब
आज्ञा देती थी तो ठण्डा भी पी लेते थे लेकिन अब तो रामदेव जी की कृपा से वह तो
टायलेट क्लीनर हो गया। तो हम अब केवल ठण्डे के नाम पर पानी से ही काम चला लेते हैं।
चिलचिलाती धूप में, खुली जीप में, हैट लगाकर हम जंगल में शेर की खोज में निकल पड़े।
अभी कुछ ही दिन पहले एक और अभयारण्य देखने हम गए थे। लेकिन उसकी याद करके हम शर्म
से गड़ जाते हैं और यहाँ तो हमारा सीना चौड़ा हुआ जा रहा था। मतलब की बात यह कि हम
इतने खुश थे कि हमने भी अपने आपको शिकारी समझ लिया था और उसी खुशी में हम भूल गये
थे कि हम महिला हैं और हमार सीना चौड़ा नहीं हो सकता। उस अभयारण्य में शेर देखने के
लिए हमें एक बस में बिठाया गया था और वह बस क्या थी एक पिंजरा थी। जंगल में कई
दरवाजे पार करने के बाद शेर घूमते हुए दिखायी देने लगे। बैंगलोर के इस अभयारण्य में
जाना इतना आसान नहीं था, थोड़ी-थोड़ी दूरी पर लोहे के दरवाजे लगे थे, आपको वहाँ से
आज्ञा लेकर अंदर प्रवेश करना पड़ता था। पुराने जमाने में किले के अन्दर जाने पर ऐसे
ही कई दरवाजे पार कर महल आता था। जंगल में दरवाजे क्यों थे हमें समझ नहीं आया ? खैर
तो वहाँ शेर कभी हमारी बस के सामने आ जाते और कभी आसपास ही चहलकदमी करते दिखायी
पड़ते। हमने कहा कि अरे ये कैसे शेर हैं जो कुत्तों की तरह घूम रहे हैं। चिड़ियाघर
में भी कभी दहाड़ लेते हैं लेकिन वहाँ ये भीगी बिल्ली की तरह थे। वे सब रोज रोज के
तमाशे के अभ्यस्त हो गए थे। लेकिन यहाँ की तो बात ही कुछ और थी। यहाँ हम भी खुली
जीप में थे और शेर भी खुले जंगल में था।
रणथम्भौर अभयारण्य में हमारा काफिला जंगल की ओर चल पड़ा। जंगल की सीमा आते ही हम सब
चौकन्ने हो गए, ना जाने कब शेर दिखाई दे जाए। क्योंकि यहाँ जीप खुली थी और शेर भी
खुले थे। अतः सावधानी जरूरी थी। रास्ते में सांभर और हिरण दिखाई दिए, हमें आशा बँधी
कि जब शिकार है तो उनका शिकरी भी होगा ही। हमारा गाइड हमें वहाँ के पेड़ों के नाम
कभी अंग्रेजी में, कभी बोटनी में और कभी देशी में बता रहा था। हमें उनमें कोई
दिलचस्पी नहीं थी। हमने पूछा कि अरे शेर कहाँ हैं ? इतने में एक और जीप सैलानियों
की आ गयी। हमारे गाइड ने उनके गाइड से पूछा कि शेर दिखा ? उसने कहा नहीं ! फिर वह
स्वयं ही बोला कि सुबह दिखा था उस नाले के पास। तो अब वह चलकर तालाब तक आ गया होगा।
हमने हमारे गाइड से कहा कि आजकल मोबाइल का जमाना है आप एक शेर महाशय को भी दिला
दीजिए। जिससे आपका काम आसान हो जाए। हमें उनकी गणित समझ नहीं आ रही थी। वे कह रहे
थे कि सुबह नाले के पास थ तो अब तक वह यहाँ पहुँचा होगा। हमने सुना है कि शेर जंगल
का राजा होता है, जो कुछ भी करता है अपनी मर्जी से करता है।
यह कोई सूरज है क्या कि सुबह पूरब में था तो शाम को पश्चिम में होगा। लेकिन हम कर
क्या सकते थे ? हमें तो गाइड की बात माननी ही थी। अब वे जीप को घुमाकर तालाब किनारे
ले गए। क्या पता शेर को प्यास लग जाए और पानी पीने आ जाए। दो घण्टे तक हम ऐसे ही
भटकते रहे। शिकारी जीप गर्मी से तप रही थी, नीचे से इंजन गरम हो गया था और पाँव जले
जा रहे थे। जैसे ही हमारी जीप एक नाले के पास पहुँची हम झट से नीचे उतर गए। गाइड ने
कहा कि नहीं आप जीप में ही बैठे। मुझे लगा कि जीप में बैठने का शौक एक दिन में ही
ये पूरा कर देंगे। मैंने पूछा कि ये हिरण भी आक्रमण कर देंगे क्या ? मुझे फिर सलमान
का ध्यान हो आया। क्या पता उसका बदला हम से ही ले लें। लेकिन गाइड ने कहा कि नहीं
ऐसी बात नहीं है, आपके धरती पर पाँव रखने से हिरण ओर सांभर चौकन्ने हो जाएँगे और
फिर शेर की गति रुक जाएगी। मैंने उनके कम्यूनिकेशन सिस्टम को तत्काल नमन किया और
अपने पाँवों को ऊपर। आखिर हम एक नाले के किनारे बहुत देर तक चुपचाप जीप में बैठे
रहे लेकिन शेर नहीं आया। मीलों दूर तक फैले उस जंगल में भला शेर को हम कहाँ खोजते ?
बस हम तो गाइड की बातों का ही रस ले रहे थे जो कभी दूसरे गाइड से पूछ लेते कि ‘काल’
सुनाई दी क्या ? वह बोलता कि अभी सांभर कुछ चौकन्ना हुआ था, तो चलो दूसरे नाले पर
चलते हैं। हम भी वहीं बढ़ लिए, वहाँ देखा कि एक किसान पैदल अपने गाँव जा रहा था। इसी
कारण साँभर चौकन्ना हुआ था। उनका दृढ़ मत था कि वह आएगा जरूर। शेर भी उस चिलचिलाती
धूप में जरूर आ जाए अगर उसे भी कुछ रायल्टी मिलती हो तो। उसे रात को भी दिखायी देता
है और हिरण सांभर वगैरह भी खूब घूम रहे थे तो भला वह क्यों धूप में निकलेगा ? उसे
मालूम है कि आप कौन है। ? उस साहित्यकार के लिए भला शेर बाहर आएगा ? वह तो
प्रधानमंत्री राजीव गाँधी के लिए ही बाहर आया था और पोज देकर फोटो भी खिंचवाया था।
आखिर शाम के साढ़े छः बज गए और जंगल से बाहर निकलने का समय हो गया। हम वापस लौटने
लगे तो हमारे गाइड ने एक जगह जीप को धीरे कराकर मिट्टी में बने पंजे को दिखाया।
देखो शेर सुबह यहाँ आया था। सारा दिन के बाद भी शेर के पंजे का निशान सड़क किनारे
बचा रहा यह तो बड़े आश्चर्य की बात थी। उस निशान के पीछे ही एक बड़े से जूते का निशान
भी था। हम बाहर निकल रहे थे, एक खुली बस में कुछ बच्चे भी हमारे साथ ही बाहर आ रहे
थे। मैंने उनसे पूछा कि शेर दिखा ? उन्होंने कहा कि नहीं। फिर पूछा कि पंजे का
निशान देखा तो उन्होंने कहा कि हाँ। आश्चर्य की बात थी कि हमें भी वापस लौटते हुए
ही पंजे का निशान दिखाया गया और इन बच्चों को भी। घर आकर टीवी खोला, तो उसमें एक
विज्ञापन आ रहा था। वैसी ही एक जीप में शेर देखने का, देखते क्या हैं कि एक आदमी
शेर के पंजे का निशान बना रहा है। हमारी समझ में वह विज्ञापन भी आ गया और जंगल में
पंजे के निशान का रहस्य भी। उस निशान के पीछे जूते का निशान क्यूँ था यह भी समझ आ
रहा था।
गर्मी से सायँ-सायँ करते धोक के जंगल में हम तीन घण्टे तक इधर-उधर चक्कर काटते रहे।
हमारा सहारा या तो वह हैट था या फिर पानी की बोतल। खुली जीप में जंगल में जाने का
शौक एक दिन में ही पूरा हो गया थ। सवाईमाधोपुर के शेर हमें प्रोफेशनल नहीं लगे।
जबकि वहाँ ढेर सारे प्रोफेसनल लोग डेरा डाले बैठे हैं। कई फाइव स्टार तो कई सेवन
स्टार होटल वहाँ चल रहे हैं, इन्हीं शेरों की बदौलत। जंगल में जाने के लिए भी पर्ची
कटानी पड़ती है और उसके लिए भी लम्बी प्रतीक्षा सूची रहती है। हम भाग्यवान थे जो
हमें बिना उन मँहगे होटलों में कई दिन बिताए एक दिन में ही जंगल में जाने का अवसर
मिल गया। जंगल में एक अंग्रेज महिला मिल गयी, उससे पूछा कि कितने दिन से शेर की खोज
में घूम रही हो, उसने कहा कि तीन दिन हो गए। हमें लगा कि इतने दिन में तो भगवान भी
मिल जाते लेकिन शेर नहीं मिला। खैर हमने शेर को भी भगवान का दर्जा दिया और अपने
पुण्यों का लेखा-जोखा देखने में मशगूल हो गये। क्योंकि शहर में आकर हर कोई यह कह
रहा था कि अरे वे तो बड़े भाग्यशाली थे, उनको तो शेर दिख गया। आप लोगों को नहीं
दिखा, बस भाग्य की ही बात है ! अब हमें लगा कि यहाँ पर जंगल के बाहर एक ज्योतिषी को
भी बिठा देना चाहिए, जो अपके भाग्यों को पढ़ ले। आपको बता सके कि आज शेर दिखेगा कि
नहीं। बदलते जमाने में शेर को भी कुछ सोचना चाहिए, लोग उसे देखने के लिए सात समुंदर
पार से आकर यहाँ पड़े हैं और आप उन्हें दर्शन नहीं दे रहे हैं, भई ये तो ज्यादती है।
अच्छा ना दो दर्शन लेकिन एकाध बार दहाड़ ही मार दो जिससे लगे कि नहीं शेर है तो सही।
अब जंगल में हिरण और सांभर खुले आम घूम रहे थे और शेर कहीं दुबका पड़ा था। तो शेर से
पूछा कि जंगल का राजा है तो राजा की तरह व्यवहार भी करे। तभी हमें हमारे
प्रधानमंत्री जी की याद आ गयी, बेचारे वे भी कहीं दिखायी नहीं देते और प्रजा मस्ती
से घूम रही है। हो सकता है कि वहाँ पर कोई सुपर पी.एम. हो। उसकी आज्ञा के बिना शेर
बाहर कैसे निकले ? तो मैंने गाइड से पूछ ही लिया भैया यह बताओ कि यहाँ शेर अकेला है
या शरेनी के साथ है। उसने कहा कि अजी यहाँ शेरनी भी है और उसके दो बच्चे भी। तो फिर
शेर की क्या हिम्मत जो उससे बिना पूछे वह जंगल में निकल जाए ? हुआ करे जंगल का
राजा, रानी तो वह है। पहले शेर को रानी की आज्ञा लेनी पड़ेगी फिर उसके दो बच्चों की,
तभी तो वह जनता के सामने आएगा।
खैर हमें तो उस राजसी परिवार के दर्शन नहीं हुए हो सकता है कि आप जाएँ और दर्शन पा
जाएँ। भगवान करे आप भग्यशाली हों। अच्छा फिर एक बात हमें और दिखाई दी कि वहाँ भी
भारत की तरह प्रजा की जनसंख्या अधिक थी। सैकड़ों की तादाद में हिरण और सांभर थे, बड़ी
आसानी से शिकार मिल जाता है तो फिर दर-दर की ठोकरें खाने के लिए धूप में भला कोई
क्यों निकले? हमें तो जीप में बैठने का जुनून था जो हमने पूरा किया और पसीने से
लथपथ होकर केवल हिरण, सांभर, मोर, बंदर आदि पशु-पक्षियों को देखकर ही खुश हो लिए।
वैसे हम इन चीजों के अभ्यस्त हैं, क्यों कि हम कई दिनों तक दूरदर्शन पर अपने
प्रधानमंत्री जी के दर्शन नहीं कर पाते और उनके सारे ही दरबारियों के दर्शन
प्रतिक्षण होते रहते हैं तो फिर जैसा देश वैसा रिवाज। शेर तुम भी भारत के ही हो तो
तुम्हें भी अपनी सीमाएँ पता होंगी ही ना ? |