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२२. ४. २१३

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
राम नवमी के अवसर पर विविध विधाओं में विभिन्न रचनाकारों की अनेक भावभीनी रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- होली गई और नवरात्र आ गए। इस अवसर पर शुचि प्रस्तुत कर रही हैं फलाहारी व्यंजनों की शृंखला में- मखाने की खीर

रूप-पुराना-रंग नया- शौक से खरीदी गई सुंदर चीजें पुरानी हो जाने पर फिर से सहेजें रूप बदलकर- हरी पत्तियाँ सुंदर कोना

सुनो कहानी- छोटे बच्चों के लिये विशेष रूप से लिखी गई छोटी कहानियों के साप्ताहिक स्तंभ में इस बार प्रस्तुत है कहानी- राम नवमी

- रचना और मनोरंजन में

नवगीत की पाठशाला में- अभी आराम का समय है। अगली कार्यशाला के अगले विषय की घोषणा होने की प्रतीक्षा है

साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये यहाँ देखें

लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत- १ सितंबर २००३ को प्रकाशित बी मुरली की मलयालम कहानी का हिंदी रूपांतर शिशिर की शारिका

वर्ग पहेली-१३०
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य एवं संस्कृति में- रामनवमी के अवसर पर

समकालीन कहानियों में भारत से संजीव की कहानी
हिटलर और काली बिल्ली

वर्षों 'ना'-'ना' करने के बाद शिवानी ने अंतत: 'हाँ' कर दी थी। चालीस के क्रिटिकल मोड़ पर 'हाँ'! चलो, देर आयद दुरुस्त आयद।
पहली बार खुद को आईने के सामने खड़ा कर गौर से निहारा कुँवर वीरेन्द्र प्रताप ने - दूधिया गोराई, नुकीली नाक, चौड़ा मस्तक, लंबे कान! अंग-अंग साँचे में ढला हुआ- सुडौल और संतुलित। वैसे कद तनिक और उँचा होता, आँखें तनिक और नीली और नाक तनिक और नुकीली तो अच्छा होता। पंजों के बल उचके, उँगलियों से नाक को दबाया फिर आँखों को एक विशेष कोण से देखा तो नीली नज़र आईं। खुश हो गए। उन्हें यकीन हो गया कि वे शुद्ध आर्य नस्ल के हैं और हल्का-फुलका-सा जो भी विचलन है, वह महज भौगोलिक है। अब रहीं पत्नी शिवानी, तो उन्होंने खुद ही देख-सुनकर उनका चयन किया था। हजारों में... न न... हजारों नहीं, लाखों में एक, विशुद्ध आर्य कन्या! ऐसे में उनकी भावी संतान का उनकी प्रत्याशाओं के अनुरूप न होने का सवाल ही पैदा नहीं होता। यह सब सोचते हुए उन्होंने एक विजयी मुस्कान खुद के अक्स पर उछाल कर ...आगे-

*

मुक्ता की लघुकथा
श्रम का पुरस्कार
*

डॉ. मनोहर भंडारी का आलेख
रोम रोम में बसने वाले राम
*

देवेन्द्र ठाकुर की कलम से
दक्षिण-पूर्व एशिया रामायण शिलाचित्र
*

पुनर्पाठ में महेशदत्त शर्मा
का निबंध- शाश्वत राम हमारे
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पिछले सप्ताह-


सुरेन्द्र चतुर्वेदी का व्यंग्य
हमारा पप्पू पास क्यों नहीं होता
*

सामयिकी में लीना मेंहेंदले के विचार
हमारा गो-धन और सरकारी नीतियाँ
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नलिन चौहान का नगरनामा
कहानी राजधानी (दिल्ली) की
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प्रकृति के अंतर्गत प्रभात कुमार से जानें
सागर की संतानें- अल नीना और अल नीनो

*

भावना सक्सैना की कहानी- समानांतर

बरसों से खुल कर हँसा नहीं हूँ मैं, यदा कदा कर्तव्य स्वरूप मुस्कुराहट ज़रूर आ जाती है। कहा जाता है मैं अवसाद का शिकार हूँ। यूरोप के एक बड़े से शहर के अनेक डॉक्टरों ने मेरा हर संभाव इलाज किया किन्तु मेरी उदासी की घटाओं पर कोई सुनहरा किनारा दिखाई नहीं दिया। मैं अपना हृदय किसी के समक्ष खोल नहीं सकता, सभ्य समाज का प्राणी हूँ। किन्तु आज के समाचार-पत्र में छपे एक आलेख ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया – आलेख था – "फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी"। हजारों मील दूर एक देश के वासियों की गाथा जिन्होंने अपनी संस्कृति अपनी भाषा को जीवित रखा। उनका दिल हिन्दुस्तानी है, हाँ बस दिल ही तो! ऐसे दिल से मैं टकरा गया था बरसों पहले... विश्वविद्यालय में दूर देश से आई परी सी एक लड़की... कहती थी अमरीका से, पर पहनती थी साड़ी! जब हमारी हमउम्र लड़कियाँ चौड़े पाँयचों वाली बेलबौटम और कसे हुए ब्लाउज, बड़े फूलों वाली मैक्सी व काफ्तान के साथ नव प्रयोग कर रही थी, सादगी की उस प्रतिमा पर मैं...आगे-

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
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सहयोग : कल्पना रामानी

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