|  पवित्रन ने 
						सिर उठाकर देखा तो खिड़की की सलाख पर एक चिड़िया आ बैठी है। 
						उसके पंख बहुरंगी हैं, पलकें भी, तालबद्ध गति से बहती हवा 
						चिड़िया के डैनों को जिस वक्त खोलती व समेटती है उस वक्त 
						खिड़की की सलाख पर एक नन्हा सा इंद्रधनुष खिलता है। हवा में 
						सूखा विरह है। चिड़िया बीच-बीच में हवा के झोंके में उलटकर 
						पवित्रन के बिस्तर पर गिरना चाहती है। एक खूबसूरत चिड़िया 
						के लिये उड़ना मुश्किल होगा। नन्हें पर अपने सारी खूबसूरती 
						लिये हुये कैसे उड़ सकेंगे, हाय! खिड़की का शीशा और एक बार हवा 
						में झूमकर आवे और उसे उछाल दे तो? पवित्रन ने बिजली की तेज़ी 
						से खिड़की का शीशा सिटकिनी लगाकर जड़ दिया। चादर हटाई तो 
						पूरे बदन पर मानों एक ठंडा कंबल आ पड़ा। बाहर घनी धुँधली-सफेद 
						सठियाती चादर जो कल तक नहीं थी।
 पवित्रन के किसी कार्यक्रम ने चिड़िया का कुछ नहीं बिगाड़ा। वह 
						आँख मूँदे बैठी रही। कोहरे से घर के भीतर आये पवित्रन ने 
						उससे मौन वाणी में कुशल-समाचार पूछा। चिड़िया तो आँखें बंद 
						किये बैठी थी।
 
 पवित्रन अब चौके में चाय तैयार कर रहा है। सर्दियों की 
						प्रभातवेला में स्टोव की आवाज में भी कोमलता है। गाढ़ी नीली 
						लौ भी ठंडी है। कल सुबह खिड़की के बाहर का सबेरा जर्द पीला 
						था। वो, हवा की हलकी सी किरच खिड़की के पर्दे को हटाती हुई 
						पवित्रन को चूमती है।
						जब परदा हटा तब चौके की खिड़की की सलाख पर भी एक चिड़िया! 
						उतनी ही खूबसूरत! वही निःसंग भाव! स्टोव की लौ जब तेज होती 
						है तब चिड़िया आँख खोलती है। वह एकदम मस्त है।
						पवित्रन ने बिस्तर के नजदीक की खिड़की की तरफ नज़र दौड़ाई। 
						आँखें बंद किये बैठी कल्पना की घनी शारिका उधर नहीं। वह 
						मेरे समीप आकर बैठी है। 'वही चिड़िया! कोहरे से आई मेहमान', 
					पवित्रन ने सोचा।
 
 धीमी लौ के स्टोव पर चाय को छोड़कर पवित्रन दातून करने लगता 
						है। पंछी ने सिर और कुछ भीतर घुसाकर ऐसी ध्वनि सुनाई जो 
						आसमान से आती सी महसूस हुई। पवित्रन हँस पड़ा।
						झाग-भरे मुँह से बोला, "तेरी मेज़बान यहाँ नहीं हैं। तू 
						चाहे इस मुल्क की न हो? तो भी उसके लिये तू एक हीरोइन 
						से कम नहीं।"
 
 चिड़िया ने चूँ तक नहीं किया। आगे पवित्रन ऑमलेट तैयार करने 
						लगा तो चिड़िया बाहर उड़ गई। किस क्षण चिड़िया उड़ी, यह पवित्रन 
						ने नहीं देखा। अंडा फोड़ने पर क्या चिड़िया ने अपना एतराज़ 
						जाहिर किया, मगर पवित्रन को लगा कि वह चिड़िया दूसरे दिन 
						सुबह भी आयेगी।
 धत! ऑमलेट की तैयारी शुरू कर चुके पवित्रन ने सोचा। अब 
						इसमें कोई मज़ा नहीं। अंडे का पीला हिस्सा दूसरी चीजों से 
						मिलकर जमने लगा।
 यह प्रविधि पक्षियों की अनुगामिनी मेरी शोध-कर्मी को सबसे 
						घृणाजनक लगती थी। पवित्रन को याद आया। सुनंदा हल्ला मचाती। 
						आलस छोड़ मिक्सी चलानी चाहिये। अच्छी कसरत भी हो जायेगी। 
						चिड़िया का अंडा फोड़कर खाते भूख नहीं मिटाते, सुनंदा कहती।
 "तुम्हें बिदा करने के बाद ही कुछ अंडे खरीदने का इन्तज़ाम 
						करना है", पवित्रन सुनंदा को चिढ़ाता।
 
 गत सप्ताह सबेरे आठ बजे की धूप की तरफ देखते हुये सुनंदा 
						बोली, "बताओ पवित्रन, अगले 
					हफ्ते चलूँ? थीसिस पूरा करना 
						है। इस दिसम्बर में भी न दूँ तो बाद में बड़ी देर हो 
						जायेगी।" उसने बातें जारी रखीं, "बाज़ आई तुम्हारे शहर से। 
						अपने हिल स्टेशन की गाड़ी पकडूँगी। एक काम करो, एक महीने के 
						लिये फरार हो जाओ। वहाँ सरदियाँ शुरू हो रही हैं।"
 पवित्रन ने कहा, "तुम अकेले जा सकती हो। एक काम करेंगे। 
						आज जाकर टिकट का आरक्षण करें। नहीं तो तुम्हें सफर में 
						तकलीफ होगी। तुम्हारे जाने के बाद मुझे कुछ प्रोजेक्ट पूरे 
						करने हैं। तुम्हारे बंजर टीले पर मेरी योजनाएँ नहीं 
						चलेंगी।"
 
 रेलवे स्टेशन जाते समय बाइक के आगे म्युनिसिपल लारी सरक 
					रही थी। किसी तरह उससे कतराकर आगे पहुँचा तो एक आटो रिक्शा 
					रास्ता रोक रहा था। धूल, कोयले के टुकड़ों और काले धुएँ से भरा 
					आसमान। आकाश पवित्रन के मस्तिष्क में पैठ गया। पवित्रन मुड़कर 
					सुनंदा को देखने से डरता था। जब पसीने की बूँदें पलकों को 
					भिगोने लगीं तब उसने आइसक्रीम दुकान के सामने बाइक 
						रोकी। एक कौए को जूठन कुतरकर खाते देख सुनंदा रो पड़ी। कहीं 
						चश्मा न रखने से तो ऐसा नहीं लगा?
					बाहर पान वाले से 
						पवित्रन ने सिगरेट खरीदी। सुनंदा ने पूछा, "क्या कार्बन 
					मोनोक्साइड से जी नहीं भरा?
 
 आइसक्रीम पार्लर में एक पिंजड़ा, तोता और अक्वेरियम। मगर 
						पवित्रन को झटपट बाहर निकलना था। सुनंदा को एक तमिल 
						फिल्म- फिर पूरी शाम आफिस का मामला! रात तक डिस्कशन चलेगा। 
						एस्टैबलिशमेंट में कुछ घाघ हैं। उनका घमंड चूर करना होगा। 
						उसके बाद पार्टी।
 सुनंदा का रेलवे टिकट, तमिल फिल्म, चर्चा, बदला, पार्टी।
 
 तब तक पवित्रन अनजाने ही ऑमलेट उदरस्थ कर चुका था। चाय हाथ 
						में लेने लगा तो दीवार की घड़ी बजी। बड़े सवेरे से बजने का 
						प्रोग्राम करके रखा था। वह छः दफे बजी, छः बजे।
 पवित्रन दंग रह गया। बड़े सबेरे का मतलब उसके शब्दकोश में 
						आठ बजे है। छः बजे का राज़ क्या है, एकाएक पवित्रन को याद 
						आया। एक धुँधले सपने में एक ठंडी चादर आ पड़ी और सिहरन लाई। 
						बाहर की तरफ देखा। देखा कि वहाँ कहीं इंद्रधनुष का टुकड़ा 
						तो नहीं। फिर आराम कुर्सी पर पसर गया और सिगरेट का धुआँ 
						बाहर की तरफ उड़ाते हुये एक ठंडे हिल स्टेशन के बारे में 
						सोचने लगा।
 
 उस दिन आये सारे अखबारों को बाएँ हाथ से एक तरफ हटाया। फिर 
						एक स्पाइरल पैड लेकर पहला पन्ना फाड़कर फेंक दिया। और एक 
						अच्छा पन्ना निकाला। फिर अटैची से बेडयूल डायरी निकाली। 
						काफी देर तक घटा जोड़ का हिसाब करने के बाद उसने अपने 
						कार्यालय के योजना-संचालक को फोन पर बुलाया। ठीक एक महीने 
						की छुट्टी का प्रबंध किया। सब कुछ ठीक आधे घंटे में खत्म।
 
 फिर सिगरेट की खूँट ऐश-ट्रे में बुझाने के बाद पवित्रन ने 
						धुँधले रंग के डोनाल्ड डक व डेयिसी के चित्र वाले पैड में 
						एक नया शेड्यूल लिखना शुरू किया। हिल स्टेशन का टिकट आज ही 
						खरीदना। सफर डेढ़ दिन का। वहाँ से सुनंदा के पक्षी-अनुसंधान 
						शिविर को। इसी दिसम्बर में उसकी थीसिस पूरा करना कोई जरूरी 
						बात नहीं है। दो तीन दिन उसकी चिड़ियों के साथ, उसके बाद 
						उसके आगे सिर्फ बर्फ वाले उस स्वास्थ्य केन्द्र को, पूरा 
						दिन हम बर्फ पर चलने का मज़ा लेंगे, कैंप फायर से दमकती 
						रात! पहाड़ी पर चढ़ेंगे। एकोफेमिनिस्ट की 
					विदुषी, कृपया सुनंदा 
						आपत्ति न करना तुम्हारी जैसी रमणी के लिये ये द्विनाम 
						सुन्दर लगते हैं, चिड़ियों के साथ जितना समय चाहो, उड़ेंगे।
 
 आधा घंटा और बीता। पवित्रन पत्रिकाएँ पढ़ने लगा। प्रथम 
						दोनों समाचार-पत्र सरसरी निगाह से देखे। मॉडलों पर एक 
						ग्लॉसी पृष्ठ बाद में पढ़ने के लिये अलमारी के भीतर घुसेड़ 
						दिया। कांग्रेस में समस्या बड़ी टेढ़ी है.. इंग्लैंड के टूर 
						से काँबले और.. सबके नीचे आज की डाक है। पवित्रन को याद आया, आज डाक खोलने की फुरसत नहीं मिली थी। एल-आई-सी, पॉलिसी 
						की रसीद, मद्रास के क्लाइंट की भद्दी एँब्लमवाली एक 
						चिठ्ठी, कोरियर से तीन खत, मोटे लिफाफे में, बिसनिस 
						एडमिनिस्ट्रेशन की नई डीलें होंगी।
 
 पवित्रन का ध्यान बरबस खींचते हुये बीच में सुनंदा की 
					चिट्ठी गिरी, "हे भगवान! कल मैंने यह पत्र नहीं देखा।"
 पवित्रन ने पढ़ना शुरू किया, "आपके यहाँ बरफ गिरना शुरू नहीं हुई होगी न? 
					यहाँ बरफ खूब 
						छाने लगी है। कल हवा के झोंके ने हमारी खिड़की का पर्दा फाड़ 
						डाला। यहाँ दिसम्बर में हिमकण बरसते रहेंगे। सब पत्तों पर 
						दोपहर तक सफेद झाग रहेगा।
 "सॉरी, यहाँ दोपहर ही नहीं होती, 
					बात कुछ और है। मैं थीसिस बढ़ा रही हूँ, पवित्रन, हम एक ही तरह 
					सोचते हैं। बात यह
  है 
					कि यहाँ से करीब पचास किलोमीटर दूर हमारा ऐड्वेंचर स्पाट है। 
					पचास प्रवासी पक्षी हमारी तलाश में वहाँ की सैंक्चुरी में आये 
					हैं। कई दुर्लभ पंछी और भी हैं। हमारे अपने सलीम अली बड़े ही 
					उत्साहित हैं। मेरी थीसिस की रूपरेखा ही शायद बदल जाये। 
					पवित्रन, आप जानते हैं कि हमारे वज्र देहात में फोन नहीं 
					मिलेगा। लिखने पर भी संदेश मिलने में विलंब होगा। तो एक मास 
					बाद इस पहाड़ी से उतरकर आऊँगी, तब मिलेंगे। "प्रोजेक्ट का क्या हाल है, गुड 
					लक।" पवित्रन हल्की सी मुस्कराहट के साथ चादर के भीतर घुस गया। 
					बाहर आकाश में जमी हुई बर्फ के पिघलने में दोपहर तक समय है!
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