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साहित्यिक निबंध

शाश्वत राम हमारे
-महेश दत्त शर्मा

 

 

रामनाम की सर्वव्यापकता उनके अस्तित्व का प्रमाण है। यह नाम उतना ही सच्चा है, जितना हिमालय और गंगा का अस्तित्व। भगवान राम सूर्यवंश में उत्पन्न हुए। यह वंश राजा इक्ष्वाकु से आरंभ हुआ। पुराणों में कहा गया है कि इक्ष्वाकु वैवस्वत मनु के पुत्र थे।

इस वंश में राजा पृथु, मांधाता, दिलीप, सगर, भगीरथ, रघु, अंबरीष, नाभाग, त्रिशंकु, नहुष और सत्यवादी हरिश्चंद्र जैसे प्रतापी व्यक्तियों ने जन्म लिया। ये नाम किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। श्रीराम के पूर्वज पृथु के नाम पर ही इस पृथ्वी का नामकरण हुआ। पृथु ने पृथ्वी को समतल करवाकर कृषि का आविष्कार किया। राजा सगर एक न्यायप्रिय और प्रजापालक राजा थे। उन्होंने पृथ्वी को खुदवाकर समुद्र बनवाए, इसलिए इनके नाम पर इन्हें सागर भी कहा जाने लगा। सगर के साठ हज़ार एक पुत्र थे। एक बार कपिल मुनि ने कुपित होकर उनके साठ हज़ार पुत्रों को भस्म कर दिया था, तब उनकी मुक्ति के लिए सगर के प्रपौत्र अंशुमन ने गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए तप किया, लेकिन वे असफल रहे। उनके पुत्र दिलीप भी इस उद्देश्य में सफल नहीं हुए। अंततोगत्वा राजा दिलीप के पुत्र भगीरथ गंगा को पृथ्वी पर लाने में सफल हुए और अपने पुरखों का उन्होंने उद्धार किया। इस प्रकार गंगा नदी भी किसी न किसी रूप में भगवान राम से जुड़ी हुई है और आज भी हमारे मृत संबंधियों को तार रही है।

राजा त्रिशंकु(सत्यव्रत) सूर्यवंश के इतने प्रतापी राजा थे कि उन्होंने सशरीर ही स्वर्ग जाने की तैयारी कर ली थी, लेकिन इंद्र आदि देवताओं के विरोध के चलते वे बीच आकाश में ही लटक गए और रामायण के अनुसार, 'आज नक्षत्र उनकी परिक्रमा करते हैं।'

सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र की कथा सभी जानते हैं। उपर्युक्त सभी कथाएँ और व्यक्ति किसी शून्य से नहीं टपके हैं, वरन यह सारी शृंखला कड़ी-दर-कड़ी मज़बूती से जुड़ी है। भगवान श्रीराम इस कड़ी के ही एक हिस्से हैं।
सरयू से सागर तक भगवान राम जहाँ भी गए, वे स्थान आज भी उनकी मौजूदगी के अकाट्य प्रमाणों से भरे पड़े हैं। चित्रकूट, नासिक के निकट पंचवटी और दक्षिण में रामेश्वरम उनमें से कुछ प्रमुख हैं। ये सभी स्थान रामभक्तों के पुण्मय तीर्थ हैं।

चित्रकूट से तो भगवान राम को भी बहुत प्रेम था। वे वनवास काल में ग्यारह वर्ष यहीं रहे थे। यहीं उन्होंने अश्वमेध यज्ञ किया था। स्मृति रूप में आज यहाँ कई राम-मंदिर, हनुमान-मंदिर और सीता माता से जुड़े स्थान हैं। तुलसीदास जी को यहीं अनेक बार भगवान राम और हनुमान ने दर्शन दिए थे। संभवतः इसलिए यह दोहा प्रचलित हुआ। कहा जाता है कि इसे हनुमान जी ने तोते का रूप धारण करके उच्चारित किया था-
'चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीर।
तुलसीदास चंदन घिसे तिलक देत रघुवीर।।'

यदि हम भगवान राम के अस्तित्व को नकारने की कोशिश करेंगे तो उनके पूर्वजों की समृद्ध वंशावली, राम, सीता, लक्ष्मण और हनुमान से संबद्ध स्थान, घर-घर में मिलने वाले राम से जुड़े नामों की लंबी शब्दावली, गाँधी जी की रामराज्य की परिकल्पना, रावण, कुंभकर्ण, मेघनाद, बालि इत्यादि जैसे खलनायकों की अनवरत शृंखला- सभी कल्पनालोक की बातें हो जाएँगी। और हम चाहकर भी ऐसा नहीं कर सकेंगे, क्यों कि हक़ीक़त को झुठलाया नहीं जा सकता।

गाँधी, नेहरू, सुभाष, स्वामी विवेकानंद, रामकृष्ण परमहंस इत्यादि महापुरुष- राम और उनके नाम की शक्ति से ऊर्जा ग्रहण करते थे। गाँधी जी कहा करते थे, ''मेरे पास एक रामनाम के सिवा और ताक़त नहीं है। वही मेरा एक आसरा है। रामनाम से मनुष्य को भीतर और बाहर प्रकाश मिलता है। निराधारों के लिए रामनाम सबसे बड़ा आधार है।'' वे यहाँ तक कहते थे, ''मेरा चिकित्सक राम है और रामनाम मेरी एकमात्र औषध है।'' उनके प्रिय भजन- 'रघुपति राघव राजाराम, पतित पावन सीताराम...' से ही रामनाम और राम के प्रति उनकी श्रद्धा का ज्ञान हो जाता है। यदि रामनाम से गाँधी जी ऊर्जा ग्रहण करते थे तो लंबे अनुभूत प्रयोगों द्वारा ही 'उन्होंने इस सच्चाई को स्वीकार किया था।

परमहंस रासकृष्ण स्वामी विवेकानंद के गुरु और काली के परम भक्त थे। भगवान राम में भी उनकी अगाध श्रद्धा थी। एक बार वे कलकत्ता में प्रवचन दे रहे थे। इसी प्रवचन के दौरान उन्होंने कहा, ''रामनाम बहुत बड़ा मंत्र है। यदि कोई पूरी निष्ठा से रामनाम का जाप करता रहे तो संसार की कोई भी ऐसी समस्या नहीं, जिसका समाधान न हो सके। ज़रा रामनाम पूरी निष्ठा से जपकर तो देखें।''

उनका यह कथन सुनकर कलकत्ता के एक गणमान्य डॉक्टर उठ खड़े हुए। वे इंग्लैंड से पढ़कर आए थे। कलकत्ता के भद्रलोक में उनका बहुत नाम था। विज्ञान के विद्यार्थी तो वे थे ही, उन्होंने अपनी शंका ज़ाहिर करते हुए कहा, ''महाराज! आप ये कैसी बातें कर रहे हैं। क्या सिर्फ़ रामनाम लेने मात्र से सब समस्याएँ हल हो सकती हैं? मान लीजिए, मुझे भूख लगी है, यदि मैं लगातार रोटी-रोटी जपता रहूँ, तो क्या मेरी भूख शांत हो जाएगी? भूख तो रोटी खाने से ही शांत होगी, रोटी का नाम जपने से नहीं, चाहे आप कितना भी जाप करें।''

भरी सभा में इस प्रकार का तर्क सुनकर श्रीरामकृष्ण परमहंस कहने लगे, ''अरे पापी! तू निकृष्ट जीव है, विक्षिप्त है, निरा मूर्ख है, तुझे मैं क्या समझाऊँ।''

डॉक्टर महोदय भौचक्के रह गए। उन्हें इस प्रकार की प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं थी। फिर उनका एक सामाजिक सम्मान भी था। भरी सभा में उन्हें अपशब्द कहे गए थे। उनका भी खून खौल उठा, बोले, ''स्वामी जी, तर्क का जवाब तर्क से देने के बजाए आप तो गाली-गलौच पर उतर आए। मैं खुद भी ऐसी बेतुकी सभा में नहीं रहना चाहता।'' और यह करकर डॉक्टर महोदय बेहद गुस्से से बाहर जाने लगे।

तभी रामकृष्ण ने मुस्कराकर कहा, ''बंधु! मैंने तो आपकी शंका का समाधान किया था। आपका विश्वास था कि शब्द में कोई शक्ति नहीं होती। यदि शब्द शक्तिरहित है तो मेरे द्वारा उच्चारित कुछ शब्दों से आप इतने उत्तेजित हो गए कि गुस्से में वर्षों का साथ एक पल में तोड़ने लगे। बंधु, शब्द में बड़ी शक्ति होती है। यदि गाली आपको उत्तेजित कर सकती है तो स्तुति आपको प्रसन्न नहीं कर सकती क्या?''

रामनाम की महिमा डॉक्टर महोदय की समझ में आ गई और वे परमहंस के चरणों में गिर पड़े। मरा-मरा जपकर वाल्मीकि दस्यु से कवि बन गए। रामनाम ने ही राजा पौरु को महर्षि विश्वामित्र के क्रोध से बचाया था। दीपावली, रामनवमी और श्रीराम से जुड़े सैंकड़ों व्रत, पर्व और तीर्थ उनके अस्तित्व को प्रमाणित करते हैं। द्वादश ज्योतिर्लिंगों में शामिल रामेश्वरम की स्थापना स्वयं भगवान राम ने की थी, जो हिंदू तीर्थों के चार धामों में से एक भी माना जाता है। ऐसे ही और अनगिनत तीर्थ भगवान राम से संबद्ध हैं। उत्तर भारत में स्थित प्रसिद्ध वैष्णो देवी तीर्थ भी किसी-न-किसी रूप में भगवान राम से जुड़ा है।

श्रीराम को विष्णु-अवतार माना जाता है। वैष्णो देवी जब बालिका थीं, तब भगवान राम के वरण के लिए उन्होंने तप किया था। तब श्रीराम ने उनसे कहा था कि इस जन्म में वे एकपत्नी व्रती हैं, अतः उनसे विवाह नहीं कर सकते। कलियुग में वे कल्कि अवतार ग्रहण करें, तब वे उनका (वैष्णो माता का) वरण करेंगे। इस प्रकार वैष्णो माता आज भी कल्कि रूप मे भगवान राम के अवतार की प्रतीक्षा कर रही हैं। इस प्रकार आज जो लोग भगवान राम के अस्तित्व को लेकर चिंतित हैं, देर-सवेर उनके वंशज कल्कि रूप में उनके दर्शन कर ही लेंगे।

'स्कंदपुराण' के काशी खंड में कहा गया है कि काशी में मरने वाले व्यक्ति को शिवजी भगवान राम के- रां रामाय नमः- मंत्र का उपदेश देकर मुक्ति दिलाते हैं। रामनाम के महत्व को समझकर ही विश्वामित्र ने 'रामरक्षा स्तोत्र' की रचना की, जिसमें अभिमंत्रित व्यक्ति सब प्रकार की बाधाओं से सुरक्षित रहता है। चित्रकूट की मंदाकिनी नदी के किनारे-किनारे मिलने वाली पीली मिट्टी का नाम 'रामरज' वैसे ही नहीं पड़ गया। और सूर्यवंशी राजाओं की राजधानी अयोध्या को कौन नहीं जानता। सरयू तट पर बसी यह नगरी वैवस्वत मनु ने बसाई थी, जहाँ यह आज तक विद्यमान है। श्रीराम का जन्म यहीं हुआ था। पुराणानुसार यह हिंदुओं की सप्त पुरियों में से एक है (सात पुरियाँ हैं- अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, काशी, कांची, उज्जैन और द्वारिका- ये सात पवित्र स्थल हैं जो मोक्षदायक कहे गए हैं)। इसे साकेत भी कहते हैं। यहाँ लाखों की संख्या में यात्री आते हैं। रामनवमी के दिन यहाँ बहुत बड़ा मेला लगता है। राम और रामनाम की अटूट श्रद्धा ही इन्हें यहाँ खींचकर लाती है। यह अयोध्या नगरी का पुण्य प्रताप ही है कि सूर्यवंशी राजाओं के साथ-साथ यह पाँच जैन तीर्थकारों - ऋषभदेव, अजितनाथ, संभवनाथ, अभिनंदननाथ और सुमतिनाथ- की भी जन्मस्थली बनी।

भगवान राम के प्रति जन-आस्था और विश्वास के कारण ही उनके लीलाग्रंथ 'रामायण' और 'रामचरितमानस' के विश्व की अनेक भाषाओं और बोलियों में सृजन और अनुवाद हुए। मॉरिशस, गयाना, फीजी, दक्षिण अफ्रीका, सूरीनाम आदि देशों में तो रामचरितमानस के पाठ के बिना कोई धार्मिक-सांस्कृतिक कार्य पूर्ण नहीं होता। यूरोप और लैटिन अमेरिकी देशों में भी रामचरितमानस की लोकप्रियता उत्तरोत्तर बढ़ रही है। मॉरिशस में तो संसद के अधिनियम द्वारा 'रामायण सेंटर' की स्थापना की गई है जिससे कि विश्वभर में रामायण के आदर्शों की प्रतिष्ठा बढ़े।

राम एक आदर्श पुत्र, पति और प्रजापालक थे। वे जितेंद्रिय, तेजस्वी, बुद्धिमान, पराक्रमी, विद्वान, नीति-निपुण और मर्यादा पुरुषोत्तम थे। सीता उनकी महान पतिव्रता पत्नी थीं। उनके लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न जैसे प्रिय भाई थे जो उन पर जान छिड़कते थे। हनुमान जैसे उनके समर्पित सेवक थे। रामराज्य में कोई दरिद्र, दुःखी या दीन नहीं था। छुआछूत का भेदभाव नहीं था। सरयू के 'राजघाट' पर चारों वर्णों के लोग साथ-साथ स्नान करते थे-
'राजघाट सबु विधि सुंदर वर।
मज्जहिं तहाँ बरन चारिउ नर।।'

यही कारण है कि आज भी रामराज्य का उदाहरण दिया जाता है। आज के शासक भी उनका अनुसरण करके इतिहास में अपनी उपस्थिति दर्ज़ करा सकते हैं।
श्रीराम को न मानने वालों के लिए तुलसी बाबा पहले ही कह गए हैं- 'जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।'
ईसा मसीह ने कहा है, ''माँगो, वह तुम्हें मिलेगा, ढूँढ़ो, तुम उसे पाओगे, खटखटाओ और वह तुम्हारे लिए खुल जाएगा।'' लेकिन पूर्वाग्रह से ग्रसित लोग अपनी सभी खिड़कियाँ और दरवाज़े बंद करके रखते हैं। सोचते हैं, इस प्रकार वे सामने मौजूद सत्य को नकार देंगे। लेकिन आँखें बंद कर लेने से सच नहीं छुपता।

भगवान राम कल थे, आज हैं और आगे भी रहेंगे, इनके अस्तित्व को नकारने वाले न रहें, राम शाश्वत हैं और रहेंगे।

१ नवंबर २००७। १ अप्रैल २०२०

  
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