अभिव्यक्ति-समूह : फेसबुक पर

पुरालेख तिथि-अनुसार। पुरालेख विषयानुसार हमारे लेखक लेखकों से
तुक कोश  //  शब्दकोश //
पता-


११. २. २१३

इस सप्ताह-

अनुभूति में- नितिन जैन, सुधीर तिवारी,  हेमंत कुकरेती,  डॉ. परमेश्वर गोयल ’काका बिहारी‘, पराशर गौड़ की रचनाएँ एवं खबरदार कविता।

- घर परिवार में

रसोईघर में- सर्दी का मौसम थोड़ा ही बचा है। इस मौसम के लिये तिल के व्यंजनों की विशेष शृंखला में शुचि प्रस्तुत कर रही हैं- तिल के लड्डू।

रूप-पुराना-रंग नया- शौक से खरीदी गई सुंदर चीजें पुरानी हो जाने पर, फिर से सहेजें रूप बदलकर- पुराने ट्रैम्पोलिन का टेन्ट

सुनो कहानी- छोटे बच्चों के लिये विशेष रूप से लिखी गई छोटी कहानियों के साप्ताहिक स्तंभ में इस बार प्रस्तुत है कहानी- तितलियाँ

- रचना और मनोरंजन में

साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये यहाँ देखें

नवगीत की पाठशाला में- ार्यशाला- २५ की रचनाओं का प्रकाशन पूरा हो गया है। नई कार्यशाला की तिथि और विषय निश्चित होने पर सूचित करेंगे।

लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत- प्रस्तुत है पुराने अंकों से इंदु लता महान्ति की उड़िया कहानी का, सुजाता शिवेन द्वारा हिंदी रूपांतर- सुरभित संपर्क

वर्ग पहेली-१२०
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-             
          कीर्तीश की कूची से

अपनी प्रतिक्रिया लिखें / पढ़ें

साहित्य एवं संस्कृति में- वसंत पंचमी के अवसर पर

वरिष्ठ कथाकारों की प्रसिद्ध कहानियों के स्तंभ गौरवगाथा में कृष्णा सोबती की कहानी- दादी अम्मा

बहार फिर आ गई। वसन्त की हल्की हवाएँ पतझर के फीके ओठों को चुपके से चूम गईं। जाड़े ने सिकुड़े-सिकुड़े पंख फड़फड़ाए और सर्दी दूर हो गई। आँगन में पीपल के पेड़ पर नए पात खिल-खिल आए। परिवार के हँसी-खुशी में तैरते दिन-रात मुस्कुरा उठे। भरा-भराया घर। सँभली-सँवरी-सी सुन्दर सलोनी बहुएँ। चंचलता से खिलखिलाती बेटियाँ। मजबूत बाँहोंवाले युवा बेटे। घर की मालकिन मेहराँ अपने हरे-भरे परिवार को देखती है और सुख में भीग जाती हैं यह पाँचों बच्चे उसकी उमर-भर की कमाई हैं। उसे वे दिन नहीं भूलते जब ब्याह के बाद छह वर्षों तक उसकी गोद नहीं भरी थी। उठते-बैठते सास की गंभीर कठोर दृष्टि उसकी समूची देह को टटोल जाती। रात को तकिए पर सिर डाले-डाले वह सोचती कि पति के प्यार की छाया में लिपटे-लिपटे भी उसमें कुछ व्यर्थ हो गया है, असमर्थ हो गया है। कभी सकुचाती-सी ससुर के पास से निकलती तो लगता कि इस घर की देहरी पर पहली बार पाँव रखने पर जो आशीष उसे मिली थी, वह उसे सार्थक नहीं कर पाई। आगे-
*

हरिशंकर परसाईं का व्यंग्य
घायल वसंत
*

शुकदेव श्रोत्रिय का ललित निबंध
मौसम रंग और गंध
*

मिता दास का संस्मरण
सरस्वती पूजा के वे सरस दिन
*

पुनर्पाठ में महेन्द्र सिंह रंधावा
का आलेख ऋतुओं की झाँकी - वसंत ऋतु

*

अभिव्यक्ति समूह की निःशुल्क सदस्यता लें।

पिछले सप्ताह-


कृष्ण नंदन मौर्य का व्यंग्य
भैंस खड़ी पगुराय
*

कुमुद शर्मा का आलेख
हिंदी एकांकी के जन्मदाता डॉ. रामकुमार वर्मा
*

डॉ. अशोक उदयवाल से जानें
सर्दी की दुआ बथुआ
*

प्रभात कुमार से प्रकृति और पर्यावरण में
आपदाओं का धन जल

*

समकालीन कहानियों में संयुक्त अरब इमारात से पूर्णिमा वर्मन की कहानी- एक शहर जादू जादू

यह कहानी आज की नहीं है। बीस साल पहले की है। एक तो “बीस साल बाद”- इन शब्दों में ही जादू है और फिर बीस साल का लंबा समय तो किसी भी कहानी को तिलिस्मी बना सकता है। कहानी जब बीस साल पुरानी होती है, उसमें से एक नशा उड़ना शुरू होता है, धुआँ धुआँ सा जैसे हुक्के का झीना बादल.. और हल्की नशीली गुड़गुड़ाहट की ध्वनि में घुलती हुई मीठी-सी रूमानी गंध जो नथुने पार कर दिमाग की नसों तक पहुँचती है। यह नशा सच से जादू की दुनिया में ले जाता है। वैसे भी सच और जादू में दूरी ही कितनी होती है जादू में प्रवेश करने का माहौल होना चाहिये... जो आपको हर तरफ से घेर ले उसको एकाग्र कर दे एक जादुई दुनिया में विचरने के लिये। समय बदलता है तो परिवेश बदलते हैं और शहर भी बदल जाते हैं। लेकिन कभी-कभी स्मृतियों के जादू में शहर सदा वैसे ही जिंदा रहते हैं जैसे वे बीस साल पहले थे। यह कहानी भी ऐसे ही एक शहर की है। ... आगे-

अभिव्यक्ति से जुड़ें आकर्षक विजेट के साथ

आज सिरहानेउपन्यास उपहार कहानियाँ कला दीर्घा कविताएँ गौरवगाथा पुराने अंक नगरनामा रचना प्रसंग पर्व पंचांग घर–परिवार दो पल नाटक परिक्रमा पर्व–परिचय प्रकृति पर्यटन प्रेरक प्रसंग प्रौद्योगिकी फुलवारी रसोई लेखक विज्ञान वार्ता विशेषांक हिंदी लिंक साहित्य संगम संस्मरण
चुटकुलेडाक-टिकट संग्रहअंतरजाल पर लेखन साहित्य समाचार साहित्यिक निबंध स्वास्थ्य हास्य व्यंग्यडाउनलोड परिसरहमारी पुस्तकेंरेडियो सबरंग

© सर्वाधिकार सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।



प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : कल्पना रामानी

Loading
   

आँकड़े विस्तार में

Review www.abhivyakti-hindi.org on alexa.com