मीतू के
बगीचे में सफेद तितलियाँ थीं। वे बगीचे में उड़ती रहती
थीं। कभी इस फूल पर कभी उस फूल पर। माँ कहती थीं कि
तितलियाँ फूलों का रस पीती हैं। वही उनका भोजन है।
"चलो हम तितलियाँ पकड़ें।"
गीतू ने कहा। उसके पास तितलियाँ पकड़ने वाला जाल था।
नहीं
नहीं तितली मत पकड़ो मीतू ने कहा। पकड़ने से तितली उड़
नहीं सकेगी। फिर वह फूलों का रस कैसे निकालेगी?
उसे खाना कौन खिलाएगा? वह तो
भूख से मर जाएगी। उसके पर कोमल हैं, पकड़ने से वे टूट
जाएँगे।"
"हाँ,
उड़ती हुई तितलियाँ सुन्दर लगती हैं। उन्हें उड़ने दो। चलो
हम पेड़ के नीचे बैठकर उन्हें उड़ते हुए देखते हैं।"
गीतू ने कहा।
गीतू और
मीतू पेड़ के नीचे बैठ गईं और देर तक सुन्दर तितलियों को
उड़ते हुए देखती रहीं।
- पूर्णिमा वर्मन |