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यह
कहानी आज की नहीं है। बीस साल पहले की है। एक तो “बीस साल बाद”- इन शब्दों
में ही जादू है और फिर बीस साल का लंबा समय तो किसी भी कहानी को
तिलिस्मी बना सकता है। कहानी जब बीस साल पुरानी होती है, उसमें से एक नशा
उड़ना शुरू होता है, धुआँ धुआँ सा जैसे हुक्के का झीना बादल.. और हल्की नशीली
गुड़गुड़ाहट की ध्वनि में घुलती हुई मीठी-सी रूमानी गंध जो नथुने पार कर दिमाग की
नसों तक पहुँचती है। यह नशा सच से जादू की दुनिया में ले जाता है। वैसे भी
सच और जादू में दूरी ही कितनी होती है जादू में प्रवेश करने का माहौल होना
चाहिये... जो आपको हर तरफ से घेर ले उसको एकाग्र कर दे एक जादुई दुनिया
में विचरने के लिये।
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समय बदलता है तो परिवेश बदलते हैं और शहर भी बदल जाते
हैं। लेकिन कभी-कभी स्मृतियों के जादू में शहर सदा वैसे ही जिंदा रहते हैं जैसे
वे बीस साल पहले थे। यह कहानी भी ऐसे ही एक शहर की है। शहर का नाम- जयपुर।
एक राजा, एक रानी... बीस साल पहले...
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शाम के करीब साढ़े पाँच बजे होंगे, यह अनन्या अग्रवाल के घर में शाम की चाय
का समय था। कमल आते ही होंगे अनन्या ने सोचा। कमल यानि कमलकांत अग्रवाल जो
सोनी टीवी में रीजनल मैनेजर हैं और लखनऊ से ट्रांसफर होकर पंद्रह दिन पहले
ही जयपुर आए हैं।
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