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अपने-अपने ऑफिस से लौटकर एक साथ चाय पीने के समय का
सुदर्शन और सुचरिता दोनों ही जी भरकर उपयोग करते। दोनों
आपस में इस तरह घुल-मिल जाते कि बाहर भी एक विराट दुनिया
है, यह भूल जाते।
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कहानी की पिटारी ज्यादातर सुचरिता के पास ही रहती। पिटारी
खोलकर वह एक-के-बाद एक कहानी निकालती और सुदर्शन साधारणतः
नीरव श्रोता की भूमिका में रहता।
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सुचरिता-सुदर्शन के जीवन का यह प्रतिदिन का वाकया था। पर
उस दिन व्यतिक्रम दिखायी दिया। उस दिन ठीक समय पर ही सुचरिता
घर लौटी थी। चाय, नाश्ता लेकर सुदर्शन का इंतजार भी किया
था। सब-कुछ पूर्व निश्चित समय से होने पर भी सुचरिता के
रेकॉर्डर में पिन नहीं लगा था।
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सुदर्शन को आश्चर्य लगा। उसने सुचरिता के चेहरे की तरफ
देखा। पर सुचरिता नीचे की ओर चेहरा किये, एकाग्रता से चाय
में चीनी मिलाने का काम करती रही। चीनी शायद बहुत पहले ही
घुल गयी होगी।
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आषाढ़ महीने के बरसने को प्रतीक्षारत आकाश की तरह सुचरिता
का चेहरा धम-धम कर रहा था।
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