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स्वाद और स्वास्थ्य

सर्दी की दुआ बथुआ

 क्या आप जानते हैं?

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चरक संहिता, सुश्रुत संहिता इत्यादि प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों में भी बथुए का उल्लेख मिलता है।
 

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हकीमों के अनुसार बथुआ ठंडा तथा खुश्क होता है। यह शरीर में शीतलता तथा कोमलता उत्पन्न करता है। यह यकृत-विकारों को दूर करता है। इसके सेवन से नवीन रक्त का निर्माण प्रचुरता से होता है।
 

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बथुआ बहुत पुराना और मजबूत शाक है। पुरातत्ववेत्ताओं को लौह युग के अवशेषों में भी इसके चिह्न प्राप्त हुए हैं।
 

सर्दी के दिनों में बथुआ बहुतायत से मिलता है। यह खरपतवार की तरह शीतकालीन फसल के साथ बहुतायत से उगता है। इसका वानस्पतिक नाम चेनोपोडियम अल्बम है। होमियोपैथी में इस नाम से दवा भी है। पालक की तरह गुणकारी बथुए का साग स्वादिष्ट और पौष्टिक होता है। बथुआ फसल की दृष्टि से बहुत पुराना और मजबूत शाक है। पुरातत्ववेत्ताओं को लौह युग के अवशेषों में भी इसके चिह्न प्राप्त हुए हैं। मजबूत होने के कारण यह हर तरह की जमीन में पनपता है, जल्दी नष्ट नहीं होता और सोयाबीन तथा पालक के साथ बहुत अच्छी तरह उगता है। जब तक इसकी फसल रहती है इसे ताजा खाया जाता है। इसके पौष्टिक गुणों के कारण मेथी की तरह सुखाकर भी रखा जाता है। सूखे बथुए को आलू के साथ सब्जी की तरह पकाया जाता है या फिर पत्तियों का चूरा बनाकर दाल के साथ मिलाकर भी खाते हैं।

१०० ग्राम बथुए में अनुमानित पोषक तत्व इस प्रकार हैं- जल- ८९.६ ग्राम. प्रोटीन- ३.७ ग्राम. वसा- ०.४ ग्राम, रेशा- ०.८ ग्राम, कार्बोहाइड्रेट- २.९ ग्राम, कैल्शियम- १५० मि.ग्रा., फॉस्फोरस- ८० मि.ग्रा., लौह तत्व- ४.२ मि.ग्रा., खनिज लवण- २.२ ग्राम, कैरोटीन- १७४० मा.ग्रा., थायेमिन- ०.०१ मि.ग्रा., रिबोफ्लेविन- ०.१४ मि.ग्रा., नियासिन- ०.६ मि.ग्रा., विटामिन सी- ३५ मि.ग्रा., ऊर्जा- ३० कि. कैलोरी। बथुए में पारा, सोना और क्षार भी पाया जाता है।

स्वदेशी चिकित्सा पद्धति ’आयुर्वेद‘ के अनुसार ’बथुए‘ में अनेकानेक औषधीय गुण होते हैं। आयुर्वेदाचार्यों की यह मान्यता है कि बथुआ मधुर रसीय, ठंडा, क्षार-युक्त तथा विषाक में कटु, कृमिघ्न, अग्निप्रदीपक, रूचिकारक शुक्रवर्धक, बल-प्रद, प्लीहा रोग, रक्त पित्त, कृमि इत्यादि रोगों को दूर करने में समर्थ होता है। यह शरीरगत विषम अवस्था को प्राप्त हो रहे तीनों दोषों को सम अवस्था में लाता है। प्रवाहिका, सूखी-खांसी, ऊरू- स्तम्भ, स्थानिक दाह, जीर्ण-अपच, इत्यादि रोगों से पीड़ितों को नियमित रूप से बथुए की सब्जी सेवन करते रहना चाहिए।

बथुए का सेवन सलाद के अन्य द्रव्यों के साथ मिलाकर, भोजन के साथ किया जा सकता है। बथुए के नियमित सेवन से भूख खुलती है तथा शरीर की समस्त धातुओं का पोषण होता है। बथुए में काफी मात्रा में उपस्थित जीवन-पोषक तत्वों के कारण, इसका नियमित सेवन करने वाले ’कुपोषण‘ से पीड़ित नहीं होते। गर्भवती एवं प्रसूताओं के लिए भी यह परम हितकर है। यह स्वयं में ही पूर्ण संतुलित आहार-द्रव्य है। बथुए का रस अतिशीघ्र ही रक्त कणिकाओं में वृद्धि करने में समर्थ होता है। बथुए के रस में मिश्री मिलाकर पिलाने से पेशाब की रुकावट दूर होती है। बथुए में विटामिन ’ए‘ प्रचुर मात्रा में होता है इसलिए इसके नियमित सेवन से नेत्र ज्योति बढ़ती है तथा रतौंधी में भी लाभ होता है। बथुए को बुद्धिवर्धक भी माना गया है।

हकीमों के अनुसार बथुआ ठंडा तथा खुश्क होता है। यह शरीर में शीतलता तथा कोमलता उत्पन्न करता है। यह यकृत-विकारों को दूर करता है। इसके सेवन से नवीन रक्त का निर्माण प्रचुरता से होता है। महिलाओं तथा एनीमिया से पीड़ितों के लिए इसका सेवन वरदान सिद्ध होता है। इसका कुछ दिनों तक सेवन करने से कब्ज दूर हो जाता है और पेट मुलायम बन जाता है। यह ठण्डा होने से ’पीलिया‘ को भी दूर करता है। पित्त प्रकृतिवालों के लिए यह विशेष रूप से लाभदायक होता है। पित्त के कारण उत्पन्न हुई एसिडिटी, विविध चर्म रोग, सर्वशरीरगत दाह इत्यादि को बथुआ दूर करता है।

बथुए के पत्तों को पानी में उबालकर तथा उस पानी में शक्कर मिलाकर पीने से दस्त साफ होता है, तथा गुर्दे की पथरी टूट जाती है। मलेरिया, टाइफाइड इत्यादि के कारण बढ़ी हुई तिल्ली भी इस प्रयोग से सामान्य अवस्था में आ जाती है। रक्त के विभिन्न उपद्रव पेट के कीड़े, बवासीर तथा सन्निपात में भी मुफीद है। इसके पत्तों का उबाला हुआ पानी पीने से रूका हुआ पेशाब खुलकर आने लगता है। इसका काढ़ा रेशमी कपड़ों के धब्बे मिटाने के लिए भी उपयोगी होता है।

बथुआ दिल को शक्ति प्रदान करता है। यकृत में गाँठें पड़ने के कारण होने वाले पीलिया के रोगी को सात माशे बथुए के बीजों को इक्कीस दिन तक नियमित देने से गांठें बिखर जाती हैं तथा पीलिया समाप्त हो जाता है। बथुए का साग ’अर्श‘ के रोगियों के लिए परम हितकारी सिद्ध होता है। बथुए का ताजा रस निकाल कर, उसमें नमक मिलाकर पीने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।

बथुए के बीजों के दो ग्राम चूर्ण को थोड़े से नमक एवं शहद के साथ लेने से अमाशय की सफाई होकर, दूषित-पित्त शरीर से बाहर निकल जाता है। बथुए के डेढ़ तोला बीजों को आधा सेर पानी मे उबालें। जब आधा पानी शेष बच जाए, तब उसे छानकर पिलाने से, शिशु- जन्मरत स्त्री को कष्ट-मुक्ति मिल जाती है। यह प्रयोग आज भी हमारे ग्राम्यांचलों में बहु प्रचलित है।

४ फरवरी २०१३

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