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					 आपदाओं का धन जल
 प्रभात कुमार
 
 जल अगर जीवन 
					है तो जलाधिक्य मृत्यु और तबाहियों का कारण। प्राणीमात्र ही 
					नहीं, बल्कि समूचे प्रकृति में जल का इतना अनुशासित महत्व है 
					कि इसकी कमी और आधिक्य – दोनों ही स्वीकार्य नहीं। आसमान में 
					उमड़ती घुमड़ती घटाओं को देखकर, इसकी सुंदरता के वर्णन में हम 
					भूल जाते हैं कि जल की बूँदों से निकली धाराएँ सिर्फ जीवन रस 
					नहीं, आपदाओं का अंबार भी लाती है। ईश्वर के बनाए संहारक रूपों 
					में, बाढ़ शायद वह हथियार 
					है जिसके आगे मानव हमेशा से झुकता रहा है और प्रकृति अपनी 
					प्रभुता का अहसास कराती रही है। 
 कब, क्यों और कैसेः–
 
 अत्यंत कम समय में अस्वाभाविक रूप से हुई भारी वर्षा, हिमगलन, 
					चक्रवातीय तूफान या अन्य कारणों के चलते समुद्री ज्वार या 
					अंर्तस्थलीय जल से उत्पन्न जलमग्नता की स्थिति बाढ़ या सैलाब 
					कहलाती है। प्रायः हर देश के लिए यह एक आपदा की स्थिति है और 
					दुनिया में शायद ही कोई ऐसा देश है जहाँ बाढ़ ने अपना कहर न 
					ढाया हो। फिर भी, कुछ के लिए बाढ़ की संवेदनशीलता अधिक है तो 
					कुछ के लिए कम। समुद्रतटीय प्रदेश या नदी–घाटी क्षेत्रों में 
					रहनेवाले लोगों के लिए बाढ़ जहाँ अत्यधिक महत्वपूर्ण है वहीं 
					उच्च भूमि या मरुस्थलीय प्रदेशों में रहने वालों के लिए एक 
					विरल अनुभव। कुछ क्षेत्रों के लिए तो यह एक सालाना अनुभव है और 
					लोगों ने उसी के रंग में स्वयं को रंगकर जीना सीख लिया है। 
					आमतौर पर अतिवृष्टि को ही बाढ़ के लिए उत्तरदायी माना जाता है 
					किंतु इसके निम्नलिखित कारणहो सकते हैः–
 
						
						भयंकर 
						तूफान या चक्रवातीय हवाओं के चलने पर तटीय प्रदेशों में 
						सैकड़ों मील तक समुद्री जल का घुस आना।  
						कम समय 
						में होनेवाली तीव्र वर्षा या बादल फटने से हुई भारी वर्षा 
						के फलस्वरूप अचानक आनेवाली बाढ़।  
						तापमान 
						में अचानक वृद्धि के परिणामस्वरूप हिमगलन से उत्पन्न बाढ़ 
						की स्थिति। लगातार होनेवाली वर्षा के चलते संतृप्त मिट्टी या चट्टानों 
						में होनेवाली भूस्खलन तथा मृदा का बहाव।
						हिमखंडों 
						या मलबों (लकड़ी) आदि के चलते नदी का जलमार्ग अवरुद्ध हो 
						जाने पर आई बाढ़।   
					इसके अलावा 
					अन्य कई विशेष भौगोलिक स्थितियाँ जैसे–
					
			 अलनीनो या सुनामी भी 
					खतरनाक सैलाब का कारण बन सकती हैं। विद्युत ऊर्जा उत्पादन या 
					कृषि उद्देश्यों से बनायी गई बाँध या स्वयं बाढ़ नियंत्रण के 
					लिए बनाई गई तटबंधों की विफलता भी बाढ़ के लिए जिम्मेदार हो 
					सकती है। हलाँकि ऐसे उदाहरण नगण्य हैं। इटली के संत वायोंत 
					बाँध के जलाशय में हुई भयानक भूस्खलन के पश्चात उठी जल–तरंगो 
					से १९६३ में मात्र १५ मिनटों के भीतर २५०० लोगों की मृत्यु हो 
					गयी थी। मजे की बात यह है कि उस घटना में २६२ मीटर ऊँचे बाँध 
					को कोई नुकसान नहीं हुआ। वर्षण विधि के अतिरिक्त बारिश की 
					तीव्रता, अपवाह क्षेत्र का भूगोल तथा भूपटल की स्थिति बाढ़ के 
					पीछे कारक तत्व हैं। पिछले कई दशकों में हुई शहरीकरण की तीव्र 
					गति के चलते जल–बहाव की दर में २ से ४ गुणा वृद्धि हुई है और 
					पहले की तुलना में बाढ़ आने की संभाव्यता भी बढी है। 
 बाढ़ के प्रभाव—
 
 सभ्यता के प्रारंभ से ही बाढ़ आती रही है और स्थानीय कहानियों 
					या पौराणिक कथाओं के रुप में यह दर्ज है। बाढ़ के चलते 
					होनेवाले नुकसान एवं फायदों का ज्ञान प्राचीन काल से ही नदी 
					घाटी प्रदेशों में रहने वाले लोगों को रहा है। चिंता का विषय यह 
					है कि पहले की तुलना में, बाढ़ से होनेवाली क्षति और इसका 
					प्रभाव क्षेत्र आज बढा है। जलाधिक्य से उत्पन्न दुष्प्रभावों 
					में जानमाल की होनेवाली अपूरणीय क्षति के अतिरिक्त व्यापक 
					आर्थिक नुकसान अतिमहत्वपूर्ण है। बंग्लादेश में १९७० के नवंबर 
					में चक्रवात के चलते आई बाढ़ से ५० लाख लोगों की मृत्यु हुई जो 
					२०वीं शताब्दी की सबसे भीषण दुर्घटनाओं में से एक है। अकेले 
					एशिया में १९९८ में आई बाढ़ के चलते ७००० लोगों की मौतें हुई, 
					६० लाख घर बर्बाद हुए और २५० लाख हेक्टेअर फसल की तबाही 
					हुई। अक्टुबर १९९९ में उड़ीसा में चक्रवातीय तूफान के चलते आई 
					बाढ़ में कई हजार जानवर और लगभग १०००० लोगों की मृत्यु को आप 
					भूले नहीं होंगे। बंग्लादेश, भारत, चीन, वियतनाम आदि देशों में 
					बाढ़ से प्रतिवर्ष होनेवाली क्षति, यहाँ की सरकारों के लिए बड़ी 
					चुनौती है। बाढ़ के चलते होनेवाले मुख्य प्रभावों को निम्न रुप 
					में देखा जा सकता है—
 
 पशुओं तथा असहाय लोगों की मौत, अस्त–व्यस्त जीवन तथा 
					बाढ़–क्षेत्र से पलायन
 घर, खेत–खलिहान एवं फसल की बर्बादी
 प्रभावित क्षेत्र का शेष भाग से कटने से उत्पन्न समस्याएँ
 शहर के सीवर लाईन की 
					विफलता
 गंदे जल एवं मलमूत्रों के बहाव होने से महामारी की संभावना
 मृदाक्षरण तथा कटाव की समस्या
 भूस्खलन की संभावना में वृद्धि
 
 बाढ़ से जुड़ा अर्थशास्त्र 
					भी चौंकाने वाला है। अकेले भारत में ही जानमाल की अपूरणीय 
					क्षति के अतिरिक्त प्रतिवर्ष औसतन १००० करोड़  रुपये की आर्थिक 
					क्षति होती है। भारत की ४ करोड़ हेक्टेअर भूमि यानी देश का 
					आठवाँ हिस्सा बाढ़ के प्रभाव क्षेत्र में है। बाढ़ से होनेवाली 
					आर्थिक क्षति का सार्वाधिक (६०–८०%) प्रभाव उत्तर प्रदेश, 
					बिहार, पश्चिम बंगाल, असम और उड़ीसा राज्य में होता है। भारत के 
					८०४१ किलोमीटर लंबे समुद्र तटीय क्षेत्र तथा बंग्लादेश में, 
					उष्ण–कटिबंधीय चक्रवात तथा इसके परिणामस्वरुप आनेवाली बाढ़ की 
					आशंका हमेशा बनी रहती है। दक्षिण एशिया के लगभग सभी देशों में 
					ज्यादातर नुकसान अगस्त से सितंबर के महीनों में गंगा और 
					ब्रह्मपुत्र जैसी हिमालयी नदियों के चलते होता है।
 
 तमाम अवांछनीय प्रभावों के बीच सैलाब कुछ अच्छे प्रभाव भी लेकर 
					आता है जिसे कम करके नहीं आँका जा सकता। नदी के किनारे बाढ़ के 
					मैदानों में लाई गयी उपजाऊ मिट्टी की नई परत खेतों की उर्वरा 
					शक्ति को बढा देती है। भारत में गंगा एवं ब्रह्मपुत्र डेल्टा 
					तथा समूचे बंग्लादेश की उपजाऊ भूमि का राज यही है। लगभग ५००० 
					वर्ष पूर्व नील नदी में आनेवाली बाढ़ का अवलोकन कर ही 
					मिस्रवासियों ने पहले कैलेण्डर का निर्माण किया था। बाढ़ अगर 
					विनाश का पर्याय है तो सभ्यता का जनक भी। वैज्ञानिक तथ्य ही 
					नहीं बल्कि पौराणिक कहानियाँ और धार्मिक मान्यताएँ भी इसकी 
					पुष्टि
					करती हैं। संसार का कोई 
					हिस्सा नहीं जहाँ बाढ़ से जुड़ी कहानियाँ या मान्यताएँ न हों।
 
 बाढ़ से उत्पन्न प्रलय की कुछ कहानियाँ—
 
 हिंदू धर्मग्रंथ ‘सतपथ ब्राह्मण’ के अनुसार आदि पुरुष ‘मनु’ ने 
					एक बार एक छोटी सी मछली को क्रमशः तालाब, गंगा और फिर समुद्र 
					में डालकर रक्षा की। प्राणरक्षा के बदले में उसने मनु को समूची 
					मानवजाति को नष्ट करने वाली प्रलय की जानकारी दी और बचने का 
					उपाय भी बताया। समय आने पर मनु ने अपनी नाव को उस मछली के सींग 
					से बाँधकर अपनी रक्षा की और फिर ब्रह्मा के आदेशानुसार नई 
					सृष्टि की रचना की। महाभारत में उस मछली को ब्रह्मा का एक रुप 
					और पुराणों में उसे विष्णु का 
					मतस्यावतार बताया गया है।
 
 यहूदी और इसाई धर्म में सृष्टि की रचना के पश्चात आए प्रलयकारी 
					नोआह बाढ़ का वर्णन है। ओल्ड टेस्टामेंट के जेनेसिस पाठ के छठे 
					से लेकर नौवें सूक्त में लिखा गया है कि आदम और ईव को पृथ्वी 
					पर भेजने के पश्चात मनुष्यों की अगली पीढ़ी के कुकृत्यों से 
					दुखी होकर ईश्वर जिहोवा ने संसार को नष्ट करने की सोची। अच्छा 
					मनुष्य होने के कारण जिहोवा ने जान बचाने के लिए नोआह को गोंद 
					की लकड़ी से आर्क (सन्दूक) बनाने और उसकी सहायता से बचने का 
					उपाय बताया। चालीस दिनों तक लगातार हुई वर्षा से उत्पन्न प्रलय 
					में सारा संसार डूब गया और जिहोवा के बताए रास्ते के अनुसार 
					नोआह ने अपनी पत्नी, तीन बेटे और उसकी पत्नियों समेत प्रत्येक 
					जीव जंतुओं के एक–एक युग्म की रक्षा 
					की। इस्लामिक धर्मग्रंथ 
					कुरान में भी नोआह बाढ़ से होनेवाली प्रलय की इसी कहानी को 
					दुहराया गया है।
 
 यूनानी पुराणों के अनुसार, देवताओं के राजा एवं आसमान तथा 
					बादलों के भगवान ‘जीयूस’ ने मनुष्य के बुरे आचरण से गुस्सा 
					होकर एक प्रलय द्वारा पृथ्वी को नष्ट करने की सोची। आदिपुरुष 
					प्रोमेथ्यूस ने ड्युकेलियन एवं उसकी पत्नी पेरिहा को बचने के 
					लिए एक आर्क बनाने का आदेश दिया। प्रलय आने पर, उसकी सहायता से 
					दोनों ने लगातार नौ दिनों तक बाढ़ के पानी में बहते हुए 
					पारनेसस नामक पहाड़ी पर शरण ली। जीयूस को पूजा–अर्चना कर खुश 
					करने पर उसने मानव जीवन की पुर्नरचना करने के लिए, दोनों को 
					अपनी माँ की हड्डी पीछे की ओर फेंकने के लिए कहा। दोनों ने इसका 
					अभिप्राय धरती माता से समझकर, पहाड़ी पर अपने कंधे के पीछे की 
					ओर से पत्थर फेंका जिससे एक स्त्री और एक पुरुष का उद्भव हुआ 
					और सृष्टि आगे चली। रोमन मान्यताओं में, जीयूस की जगह 
					‘ज्युपिटर’ बताकर इसी कहानी को 
					दुहराया गया है। कहानियाँ चाहे 
					जैसी गढ़ी जाएँ, यह तो तय है कि बाढ़ का मतलब सबके लिए तबाही 
					है।
 
 दुनिया के सभी धर्मो या जनसमूहों में मनुष्य की उत्पत्ति को 
					लेकर प्रचलित कथाओं में बाढ़ से विनाश और फिर ईश्वर के द्वारा 
					या उसकी प्रेरणा से नवसृष्टि का निर्माण शामिल है। यद्यपि सभी 
					नदी घाटी सभ्यताओं से ऊपजी कथाओं में बाढ़ किसी न किसी रुप में 
					अवश्य शामिल है किंतु यह आश्चर्य का विषय है कि नील नदी घाटी 
					में, जहाँ बाढ़ प्रायः हर वर्ष आती रही है, बाढ़ से जुड़ी 
					कहानियाँ नहीं हैं।
 
 बाढ़ पर नियंत्रणः–
 
 अति प्राचीन काल से ही बाढ़ के खतरों से बचाव हेतु मनुष्य 
					संरक्षात्मक एवं सुरक्षात्मक तरीके अपनाता रहा है। दूसरी सदी 
					के आसपास, चीन के ह्वांग–हो नदी में आनेवाली बाढ़ से बचाव के 
					लिए सैंकड़ों किलोमीटर लंबे तटबंधों का निर्माण किया गया किंतु 
					पिछले २००० सालों में नदी का स्तर २१ मीटर तक ऊँचा उठा है। 
					बाढ़ से बचाव के लिए किए गये तटबंधों के निर्माण के चलते कई 
					बार बाढ़ की तीव्रता और बढ जाती है। आवश्यकता इस बात की है कि 
					ऐसी विधि अपनाई जाए जो स्थानीय पर्यावरण के अनुकूल हो। बाढ़ पर 
					नियंत्रण तथा इससे बचाव के लिए संरचनात्मक तथा गैर–संरचनात्मक 
					विधियाँ अपनायी जाती है। संरचनात्मक विधि में निम्नलिखित तरीके 
					महत्वपूर्ण है—
 
 बाँध बनाकर जलाशयों में बाढ़ के पानी का जलग्रहण
 नदी के दोनों ओर तटीय बाँध या डाईक का निर्माण
 जलनिकासी के लिए बाढ़वाही नहरें या प्राकृतिक चैनल का उपयोग
 जल निकाष के लिए बनी चैनलों का परिवर्धन
 
 बहुउद्येशीय परियोजनाओं को ध्यान में रखकर किए गए, बड़े 
					बाँधों के निर्माण से बाढ़ नियंत्रण में काफी मदद मिली है। नील 
					नदी पर मिस्र में बनाए गए असवां बाँध से बना जलाशय अपने अपवाह 
					क्षेत्र में तीन वर्षो तक होनेवाली सामान्य वर्षा का पानी रोक 
					सकता है। गैर–संरचनात्मक तरीकों में बाढ़ की समय–पूर्व 
					भविष्यवाणी, वूक्षारोपन, मृदा संरक्षण के तरीकों का उपयोग या 
					बाढ़ के मैदान का खंडों में बाँटना तथा उसका प्रबंधन शामिल 
					है। बाढ़ के समय बाढ़–मैदान में संस्थापित वस्तु को अत्यधिक 
					संवेदनशील जोन से हटाकर तुलनात्मक सुरक्षित जोन में लाकर बचाया 
					जा सकता है।
 
 बाढ़ का पूर्वानुमानः–
 
 समय रहते बाढ़ की भविष्यवाणी, बाढ़ से होनेवाली तबाहियों के 
					प्रति बचाव तथा नियंत्रण का सबसे सस्ता और कारगर तरीका है। उचित 
					समय से दी गयी चेतावनी बाढ़ से होनेवाले खतरों से लोगों को 
					जहाँ बचाता है वहीं गलत अनुमान होने से चेतावनी तंत्र के प्रति 
					लोगों की विश्वसनीयता घटती है। इसलिए पर्याप्त समय रहते किया 
					गया भरोसेमंद पूर्वानुमान बाढ़ नियंत्रण तंत्र की दोहरी 
					आवश्यकता है। चेतावनी के लिए सामान्य तौर पर तीन प्रकार के 
					पूर्वानुमान किए जाते हैं—
 (क) छोटी अवधि के लिए १२ से ४० घंटा 
					पूर्व की गयी भविष्यवाणी
 (ख) मध्यम अवधि के लिए २ से ५ दिन 
					पूर्व की भविष्यवाणी तथा
 (ग) मौसमी आँकड़े तथा रडार प्रणाली की 
					सहायता से लंबी अवधि के लिए की जाने वाली भविष्यवाणी
 बाँध, सेतु या कलवर्ट जैसी अभियाँत्रिकीय संरचनाओं के निर्माण 
					के लिए बाढ़ के शीर्ष बहाव की मात्रा का सही पूर्वानुमान एक 
					महत्वपूर्ण चुनौती है। बाढ़ को ऊँचाई, शीर्ष प्रवाह, डुबाव 
					क्षेत्रफल या जलीय आयतन के अनुसार मापा जा सकता है लेकिन यह 
					आसान काम नहीं। अपवाह क्षेत्र की विशेषताएँ, वर्षा की मात्रा 
					एवं भूपटल की बाढ़ पूर्व स्थिति जैसी राशियों के आकलन में 
					अनिश्चितता के चलते, संभावित बाढ़ के अनुमान के लिए सांख्यिकीय 
					विधि का प्रयोग किया जाता है। परंतु, 
					
					पर्याप्त आँकड़े (कम से कम ३० 
					वर्ष) के न होने की स्थिति में आवृति विश्लेषण विधि का प्रयोग 
					संभव नहीं होता।
 
 बचाने वाले पर एक नज़रः–
 
 विश्व के अधिकांश देशों की सरकारों ने बाढ़ की पूर्वसूचना या 
					बाढ़ के खतरों से निबटने हेतु एक स्वतंत्र निकाय बना रखी 
					है। भारत में समयपूर्व बाढ़ की भविष्यवाणी का काम केन्द्रीय जल 
					आयोग करता है। आयोग ने देशभर में १४१ बाढ़ भविष्यवाणी केंद्र 
					बना रखे हैं जो भारत मौसम विज्ञान विभाग के सहयोग से संचालित 
					है। बाढ़ से उत्पन्न स्थिति की समीक्षा, बाढ़ नियंत्रण के 
					तरीकों का मूल्यांकन तथा भविष्य में सुधार आदि विषयों पर १९७६ 
					में स्थापित राष्ट्रीय बाढ़ आयोग अपनी नज़र रखता है। संयुक्त 
					राज्य अमेरिका में ‘फेडरल इमरजेंसी मैनेजमेंट एजेंसी’ बाढ़ 
					जैसी प्राकृतिक आपदाओं से निबटने के लिए सभी प्रकार की सहायता 
					उपलब्ध कराता है। वैश्विक स्तर पर बाढ़ प्रभावित क्षेत्र के 
					आलेखन, मापण, विरल घटनाओं का विश्लेषण तथा इसपर अनुसंधान कार्य 
					के लिए, अमेरिका की ही एक अन्य संस्था ‘डार्टमाउथ बाढ़ 
					बेधशाला’ काम कर रही है। यह बेधशाला दूरसंवेदी उपग्रह की सहायता 
					से पृथ्वी पर कहीं भी होनेवाली बाढ़ की घटना पर नज़र रखती है 
					तथा अद्यतन जानकारी उपलब्ध कराती है।
 
 मानवीय उद्यमशीलता ने काफी हद तक बाढ़ पर आज नियंत्रण कर लिया 
					है लेकिन फिर भी कब, कहाँ और कैसे बाढ़ आकर आपको घेर लेगा यह 
					तो ईश्वर ही जाने। बाढ़ आने की थोड़ी भी संभावना अगर आपको दिख 
					रही हो, तो एहतियात बरतने के लिए कुछ दिनों का राशन पानी, 
					जरुरी दवाएँ, फ्लैश लाईट या मोमबतियाँ, आवश्यक कपड़े और समाचार 
					तथा गाने सुनने के लिए बैटरी वाला रेडियो जरूर रख लीजिए। बाढ़ 
					में अगर सचमुच घिर जाएँ, तो आसमान पर नज़र डालते रहिए ताकि 
					भगवान और राहत सामग्री गिरानेवाले की दृष्टि आपसे न चूके!
 १६ 
			अप्रैल २००४ |