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अभिव्यक्ति हिंदी पुरस्कार- २०१२ //  तुक कोश  //  शब्दकोश //
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१७. . २०१२

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
कृष्ण बिहारीलाल पांडेय, सतीश कौशिक, महेन्द्र भटनागर, डॉ. उमेश महादोषी और दिव्या माथुर की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- अंतर्जाल पर सबसे लोकप्रिय भारतीय पाक-विशेषज्ञ शेफ-शुचि के रसोईघर से गणेश चतुर्थी के अवसर पर- बेसन के लड्डू

बचपन की आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में संलग्न इला गौतम से जानें एक साल का शिशु- शिशु की तस्वीरें

रक्षक फ़ाउंडेशन द्वारा आयोजित
देशभक्ति काव्य प्रतियोगिता
"गौरवगाथा २०१२" में हिस्सा लें।
अधिक जानकारी - गौरवगाथा फ़ेसबुक पर

सुनो कहानी- छोटे बच्चों के लिये विशेष रूप से लिखी गई छोटी कहानियों के पाक्षिक स्तंभ में इस बार प्रस्तुत है कहानी- धमाचौकड़ी चंदा के संग

- रचना और मनोरंजन में

साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये यहाँ देखें

नवगीत की पाठशाला में- ार्यशाला-२३ के नवगीतों का प्रकाशन प्रारंभ हो चुका है। रचनाएँ अभी भी प्रकाशनार्थ भेजी जा सकती हैं।

लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत- प्रस्तुत है पुराने अंकों से १६ सितंबर २००३ को प्रकाशित यू.के. से उषा वर्मा की कहानी—"सलमा"।

वर्ग पहेली-०९९
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-             
          कीर्तीश की कूची से

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साहित्य एवं संस्कृति में-


समकालीन कहानियों में कैनेडा से
पंखुरी सिन्हा की कहानी-
अर्जुन का दूसरा नाम

पार्थ। अभी भी, कभी-कभी वह आधी रात को, बीच रात को, भयानक अँधेरे में, सुबह होने से पहले, तीन बजे के आसपास चौंककर जागती, उसे टटोलती, जैसे प्यार अंधा हो, तलाशती, पुकारती, खामोशी से। पार्थ। वह कब का जा चुका था। पसीने की कुछ ठंडी बूँदे, एक झीनी सी परत, उसकी बाहों के नीचे तैर आती। यहीं तो सारी लड़ाई थी, पार्थ अब भी प्रिय था, पार्थ बहुत प्रिय था, प्रिय था तो तलाक क्यों? तलाक के बाद प्रिय क्यों ? ये विरोधी खेमे के सवाल थे। करुणा के सवाल थे कि वह इतना मौजूद क्यों था ? कोई प्रिय होकर भी दूर हो सकता है उसके जाने के बाद सबकुछ खत्म क्यों था? कि सबकुछ उसी से क्यों था? कि वही सबकुछ क्यों था ? कि अब कुछ भी पाने के लिए उसे उससे लड़ना क्यों था ? लड़ना नहीं विकराल युद्ध। पार्थ अब भी प्रिय था-सबसे ज्यादा अपनी गैर हाजिरी में। लेकिन उसकी सारी हस्ती उसके होने न होने के दरमियान सिमट गई लगती थी। पार्थ बेशक प्रिय था। पार्थ हमेशा मित्रवत था। आगे-
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गिरीश बख्शी की लघुकथा
सारा झगड़ा खत्म
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आज सिरहाने
गीत/नवगीत संकलन- सप्तराग

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प्रौद्योगिकी में श्रीश बेंजवाल से जानें
डिजिटल दुनिया में हिंदी का विकास
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पुनर्पाठ में- डॉ. रामप्रकाश सक्सेना
का संस्मरण-
पुण्य का काम

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पिछले-सप्ताह-


रमाशंकर श्रीवास्तव का व्यंग्य
हिंदी का हठ
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जनान एर्देमीर का आलेख
तुर्की में हिंदी

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डॉ. सुरेन्द्र गंभीर का आलेख
अमेरिका मे हिन्दी शिक्षण की लहर
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शीलभूषण का दृष्टिकोण
हिंदी एक सशक्त भाषा

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समकालीन कहानियों में भारत से रजनी गुप्त की कहानी यों हुआ राज्याभिषेक हिंदी का

आज तो इस ऑफिस में बड़ी चहल-पहल नजर आ रही है। ऑफिस की तरह से एक बड़ा-सा हॉल बुक कराया गया है। दरअसल सितंबर माह चल रहा है न। यानि सर्वत्र हिंदी दिवस, हिंदी सप्ताह, हिंदी पखवाड़ा और हिंदी मास के बैनर देखे जा सकते हैं। यही वजह है कि इस ऑफिस में भी ‘हिंदी दिवस’ का आयोजन किया जा रहा है। दरअसल सरकार के सख्त निर्देश आए हैं कि हिंदी दिवस समारोह को जोर-शोर से मनाया जाए। आज के दिन राजभाषा अधिकारी महोदय तो कुछ ज्यादा ही व्यस्त नजर आ रहे हैं। कभी चीफ गैस्ट के लिए फूल-मालाएँ लेने जाना है तो कभी फोटोग्राफर को फोन कर रहे हैं, आखिरकार उनके कंधों पर इस भव्य आयोजन के संचालन का गुरूतर दायित्व जो है। दुबले-पतले मँझोले कद और साँवले से दिखनेवाले के. एन. त्रिपाठी उर्फ पंडितजी यानि राजभाषा विभाग प्रमुख बड़ी ही मुदित मुद्रा में यहाँ-वहाँ प्रबन्ध संचालन करते घूम रहे हैं। आगे-

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
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सहयोग : दीपिका जोशी

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