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कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है
भारत से रजनी गुप्त की कहानी— यों हुआ राज्याभिषेक हिंदी का


आज तो इस ऑफिस में बड़ी चहल-पहल नजर आ रही है। ऑफिस की तरह से एक बड़ा-सा हॉल बुक कराया गया है। दरअसल सितंबर माह चल रहा है न। यानि सर्वत्र हिंदी दिवस, हिंदी सप्ताह, हिंदी पखवाड़ा और हिंदी मास के बैनर देखे जा सकते हैं। यही वजह है कि इस ऑफिस में भी ‘हिंदी दिवस’ का आयोजन किया जा रहा है। दरअसल सरकार के सख्त निर्देश आए हैं कि हिंदी दिवस समारोह को जोर-शोर से मनाया जाए।  

आज के दिन राजभाषा अधिकारी महोदय तो कुछ ज्यादा ही व्यस्त नजर आ रहे हैं। कभी चीफ गैस्ट के लिए फूल-मालाएँ लेने जाना है तो कभी फोटोग्राफर को फोन कर रहे हैं, आखिरकार उनके कंधों पर इस भव्य आयोजन के संचालन का गुरूतर दायित्व जो है। दुबले-पतले मँझोले कद और साँवले से दिखनेवाले के. एन. त्रिपाठी उर्फ पंडितजी यानि राजभाषा विभाग प्रमुख बड़ी ही मुदित मुद्रा में यहाँ-वहाँ प्रबन्ध संचालन करते घूम रहे हैं।

इन्हें आज के दिन ही तो अपना प्रभामंडल गौरवान्वित होता महसूस होता है। वैसे ये महानुभाव हैं बड़े ही जिद्दी, सनकी यानि तुनकमिजाजी। खुद को संस्कृत का बड़ा भारी विद्वान् समझते है इसलिए चाहे किसी बड़े अधिकारी का स्वागत समारोह हो, चाहे विदाई समारोह, हरैक मौके पर कोई-न-कोई श्लोक संस्कृत में बोलकर वे अपनी विद्वता की धाक जमाना नहीं भूलते।

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