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तुर्की में हिंदी- एक पत्र
-तुर्की
से
जनान एर्देमीर
सभी
हिंदी प्रेमियों को मेरी ओर से नमस्कार !
आज मैं अपने देश तुर्की में हिंदी की स्थिति और अपने
साथ पढ़ने वाले छात्र–छात्राओं की स्थिति के बारे में
कुछ लिखना चाहूँगी। चलिये... पहले मेरे देश तुर्की
कहाँ पर स्थित है वह जान लें। इसके बाद अन्य जानकारी
देने की कोशिश करेंगे।
मेरा देश तुर्की यूरेशिया में स्थित है। इसके एशियाई
हिस्से को अनातोलिया और यूरोपीय हिस्से को थ्रेस कहा
जाता है। तुर्की का लोकतान्त्रिक गणराज्य ओटोमन
साम्राज्य के नष्ट होने के बाद महान नेता मुस्तफ़ा केमल
अतातुर्क द्वारा २९ अक्टूबर १९३२ को स्थापित किया गया।
यह संसार में अकेला मुस्लिम बहुमत वाला एक
धर्मनिर्पेक्ष देश है। इसकी राजधानी अंकारा है। यदि आप
ऊपर दिये गए भौगोलिक चित्र पर एक नज़र डालें तो देखेंगे
कि तुर्की की राजधानी अंकारा, अनातोलिया क्षेत्र के
केन्द्र में स्थित है।
तुर्की ८१
राज्यों और ७ प्रदेशों में बाँटा गया है। हर साल देश
के विभिन्न क्षेत्रों से छात्र – छात्राएँ स्नातक की
शिक्षा लेने के लिए अंकारा, इस्तांबुल और इज़मीर जैसे
बड़े शहरों में आते हैं। पर इन बड़े शहरों में पढ़ने के
लिए विद्यार्थियों को पहले से ही बहुत परिश्रम करना
पड़ता है।
ज़्यादातर सरकारी विश्वविद्यालयों में शिक्षा की भाषा
तुर्की भाषा होती है। तुर्की में बारहवीं कक्षा के बाद
किसी भी स्नातक पाठ्यक्रम में प्रवेश चाहने वालों के
लिए राष्ट्रीय स्तर पर प्रवेश परीक्षा आयोजित की जाती
है। यह परीक्षा उत्तीर्ण करने बाद स्नातक कक्षा में
संबंधित विषय के लिए विद्यार्थियों को एक और परीक्षा
देनी पड़ती है। इसके बाद ही उसे किसी भी संबंधित विभाग
की स्नातक कक्षा में प्रवेश मिलता है और किसी भी विषय
की परीक्षा से उत्तीर्ण होने के लिए, विशेष रूप से
अंकारा विश्वविद्यालय में प्रत्येक विषय की परीक्षा
में विद्यार्थियों को कम से कम ७० % अंक पाना चाहिए।
बिना परिश्रम इन परीक्षाओं में सफल होना कभी इतना आसान
नहीं होता, लगातार पढ़ाई करना ज़रूरी होता है।
अंकारा विश्वविद्यालय का भाषा और इतिहास – भूगोल संकाय
वर्षों पहले मुस्ताफ़ा केमल अतातुर्क के समय में
अनुसंधान करने-कराने का तथा विभिन्न तरह के विशेष
विज्ञान के अध्ययन के केंद्र के रूप में स्थापित किया
गया था। इसी संकाय के एक केंद्र में यानी अंकारा
विश्वविद्यालय के भाषा और इतिहास – भूगोल संकाय के
भारतीय विद्या विभाग में स्थानीय और विदेशी शिक्षकों
द्वारा हिंदी पढ़ाई जाती है। यह विभाग जर्मन भारतीय
वैज्ञानिक वाल्टर रूबेन द्वारा सन् १९३६ में अंकारा
विश्वविद्यालय में स्थापित हुआ था। आज भी भारत के बारे
में शिक्षा प्राप्त करने का तुर्की में यही एक केंद्र
है अंकारा विश्वविद्यालय। इस विभाग में शिक्षा की भाषा
तुर्की भाषा है। छात्र – छात्राएँ हिंदी के साथ साथ
पहले कक्षाओं में संस्कृत भी सीखते हैं, भारत के
साहित्य, इतिहास, पुराण और धर्मों के बारे में जानकारी
प्राप्त करते हैं। पर इससे लगभग पच्चीस – तीस वर्ष
पहले भारत विद्या के विभाग में केवल संस्कृत भाषा के
साथ उसके साहित्य, इतिहास आदि विषयों में शिक्षा
उपलब्ध थी, उस समय हिंदी भाषा नहीं पढ़ाई जाती थी।
यानी भारत और भारतीय विद्या से हमारा रिश्ता बहुत ही
पुराना है मगर तुर्की में हिंदी भाषा बस कुछ दशकों से
ही पढ़ाई जा रही है।
मेरे देश में हिंदी लिखने, पढ़ने और समझने वाले
व्यक्तियों का संख्या कम है मगर लोगों को हिंदी
फ़िल्में देखना और हिंदी गाने सुनना, भारतीय खान–पान,
वेशभूषा बहुत अच्छे लगते हैं। सालों पहले जब मेरी माता
जी छोटी थी तब उनके पिताजी सारे घरवालों को लेकर
भारतीय चलचित्र देखने जाते थे। उस समय भारतीय फ़िल्में
तुर्की में बहुत प्रसिद्ध थीं। मेरी माता जी को हिंदी
गाने सुनना इतना अच्छा लगती थी कि जब मैं बहुत छोटी थी
तब उन्होंने हमें एक गाना सिखा दिया था। वह फिल्म थी
‘संगम’... और गाना था- मेरे मन कि गंगा...और तेरे मन
कि जमुना का...बोल राधा बोल संगम...होगा कि नहीं...और
बोल राधा बोल संगम...होगा कि नहीं...नहीं...नहीं...कभी
नहीं ! मैंने अपने जीवन का पहला गाना अपनी माता जी से
हिंदी में ही सीखा था। यह गाना उस वक्त मुझे इतना पसंद
आयी था कि मैं हर जगह गाती थी।
समय के साथ मैं बड़ी हो गई। फिर मुझे किसी स्नातक
अध्ययन के लिये दी जाने वाली परीक्षाओं में बैठने के
लिए बहुत ही मेहनत करनी पड़ी। तुर्की में सिर्फ़ एक
युनिवर्सिटी के इंडोलोजी विभाग में हिंदी मौजूद थी और
मैं अपने परिवार के साथ अंकारा में ही रहती थी। इसलिये
हिंदी पढ़ने के लिये मुझे दूर जाने की जरूरत नहीं थी।
हिंदी से मेरे लगाव की शुरुआत बहुत पहले से हो ही चुकी
थी। हिंदी फिल्मों की मध्यम से मुझे भारत और भारतीय
लोगों से भी प्यार होने लगा था। फिर मैंने सोचा कि
अपने स्नातक शिक्षा लेने के लिए अंकारा विश्वविद्यालय
का भाषा और इतिहास – भूगोल संकाय में इंडोलोजी विभाग
पढ़कर इस सुंदर देश के बारे में और भी वैज्ञानिक ज्ञान
प्राप्त करूँ ... यह है मेरी हिंदी से लगाव की छोटी–सी
कहानी।
यह खुशी कि बात है कि तुर्की और भारत के बीच के संबंध
पहले से बेहतर होते जा रहे हैं। मेरे देश में अपने साथ
पढ़नेवालों को विश्वविद्यालय समाप्त करने के बाद यदि
सरकार में काम ढूँढ़ना है तो छात्र – छात्राओं को सरकार
में कोई काम खासिल करने लिए राष्ट्रीय स्तर पर अपने
विषयों से संबंधित कई तरह की परीक्षाएँ देनी पड़ती हैं।
इनके साथ साथ अंग्रेजी की परीक्षा भी देना होती है।
सरकार में काम न करने चाहनेवालों को यह समस्या नहीं
मिलेगी। किसी भी प्राइवेट कंपनी या टीवी चैनल में काम
मिल सकता हैं या फिर किसी सरकारी या प्राइवेट ऑफिस में
अनुवाद का काम मिल जाता हैं।
अंग्रेजी की वैश्विकता उसे हर समय लोकप्रिय बनाती है।
पर मेरे विचार से हिंदी एक संपर्क भाषा है। संवैधानिक
रूप से भारत की प्रथम राजभाषा, भारत की सबसे अधिक बोली
– समझी जानेवाली भाषा, विश्व में चीनी के बाद सबसे
अधिक बोली जाने वाली भाषा, जिनकी बोलियाँ उत्तर एवं
मध्य भारत के विविध राज्यों में बोली जाती हैं। इतनी
व्यापक भाषा होने के कारण मुझे ऐसा लगता है कि हिंदी
राष्ट्रभाषा, राजभाषा और संपर्क भाषा के सोपानों को
पार कर विश्वभाषा बनने की ओर अग्रसर है। हमें पता है
कि न केवल भारत में अन्य देशों में भी बहुत अधिक लोग
हिंदी बोलते, पढ़ते और लिखते हैं। मेरी इच्छा है कि यह
हिंदी भाषा भविष्य में प्रमुख अंतराष्ट्रीय भाषाओँ में
से एक बन जाएँ। हिंदी प्रेमियों के मध्यम से यह भाषा
दुनिया में हर कहीं फ़ैल जायेगी। फिर यह हिंदी
प्रेमियों के लिए यह बड़ी संतोषजनक बात होगी।
१०
सितंबर
२०११ |