इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-
डॉ. सुरेश, सुधीर कुशवाह, कृष्ण कन्हैया, प्रो। विशवंभर शुक्ला
और ज्ञानेन्द्रपति की रचनाएँ। |
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साहित्य एवं
संस्कृति में- |
१
समकालीन कहानियों में भारत से
विनीत गर्ग की कहानी
काली परी
कपड़े एकदम बराबर हों, बाँये पैर
की चप्पल बाँये पैर में हो, दाँये पैर की चप्पल दाँये पैर में
हो, दोनों चप्पलें एक ही जोड़ी की हों, बाल सुखाने के लिये
इस्तेमाल हुआ तौलिया भी गलती से सर पर ही बँधा ना रह गया हो और
कुल-मिला कर आपका सब कुछ वैसा ही हो जैसा अक्सर, आमतौर पर होता
हो और फिर भी आप आस-पास मौजूद लोगों के लिये दिलचस्पी की वजह
बने हुयें हों तो समझ जाइये कि या तो आप बेहद खूबसूरत हैं या
निहायती बदसूरत। काजल को पता था कि वो कितनी
बदसूरत है, इसीलिये मेरठ के बीचोंबीच स्थित सिटी हार्ट
रैस्टोरेंट के कोने की टेबल पर बैठी काजल के लिये लोगों की ये
दिलचस्पी कोई नई चीज नहीं थी। कुछ लोग आश्चर्य से देख रहे थे,
कुछ दया से, कुछ नफरत से, कुछ असमंजस से, कुछ घृणा से, कुछ तरस
से, कुछ इसलिये देख रहे थे कि बाकी लोग देख रहे थे पर देख सब
रहे थे; और कोने में भी केंद्र बनी हुई काजल इन घूरती नज़रों
से नज़र चुराकर कभी तो मैन्यू पढ़ने का नाटक करने लग जाती
और...
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*
शशिकांत गीते का व्यंग्य
यह चोरी नहीं प्रेम है भाई
*
ज्योततिर्मयी पंत से जानकारी
उत्तराखंड का आंचलिक पर्व-हरेला
*
अलका दर्शन श्रीवास्तव का आलेख
पद्मश्री डॉ मोटूरि सत्यनारायण
*
पुनर्पाठ में नीरज त्रिपाठी का नगरनामा
बिरयानी की खुशबू में डूबा
हैदराबाद |
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पिछले सप्ताह-
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१
डॉ. सरस्वती माथुर की
लघुकथा-
माँ
की आँखें
*
अनिल प्रभा कुमार के कहानी संग्रह
बहता पानी से परिचय
*
अवनीश चौहान की श्रद्धांजलि
समृतिशेष दिनेश सिंह
*
पुनर्पाठ में अचला शर्मा का आलेख
रेडियो नाटक का पुनर्जन्म
*
समकालीन कहानियों में यू.एस.ए से
अनिलप्रभा कुमार की कहानी
बहता पानी
मालूम था उसे कि इस बार कुछ बदला
हुआ ज़रूर होगा। मायका होगा, माँ नहीं होगी। पीहर होगा, पिता
नहीं होंगे। भाई के घर जा रही है। भाभी होगी, भतीजी ससुराल में
होगी। कैसा लगेगा? इस प्रश्न के ऊपर उसने दरवाज़े भिड़ा दिये थे।
एक दर्शक की तरह तैयार थी भावी का चलचित्र देखने के लिए।
हवाई-अड्डे से बाहर निकलते ही एक रुलाई सी दिल पर से गुज़र गई।
क्या इस बार उसे लेने कोई भी नहीं आया? भीड़ में ढूँढती रही
अपनों के चेहरे। भीतर- बाहर सब देख कर जब फ़ोन की तरफ़ बढ़ रही थी
तो भाई दिख गया। उसका छोटा भाई, जिसके साथ लाड़ का कम और लड़ने-
डाँटने का रिश्ता ज़्यादा था।
"मैं तो तुम्हें अन्दर ढूँढ रहा था।"
"मैंने समझा शायद तुम बाहर होगे।"
भाई ने सूटकेसों से भरी ट्रॉली का हत्था अपने हाथ में ले लिया
और आगे बढ़ गया। हमेशा ऐसे ही वह उससे मिलता है।
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