पद्मभूषण डॉ. मोटूरि
सत्यनारायण
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डॉ. अलका दर्शन श्रीवास्तव
हिन्दी
को राष्ट्रभाषा के रूप में विकसित करने का जिन लोगों ने सपना
देखा और सघन कर्मठता से उसे दिशा देने का काम किया, उनमें
पद्मश्री मोटूरि सत्यनारायण का नाम महत्त्वपूर्ण है। उनका
व्यक्तित्व सशक्त नेता, संगठनकर्ता, हिन्दी प्रचारक, प्रशासक,
हिन्दी प्रेमी, विलक्षण प्रतिभा के धनी, दूरदृष्टि के स्वामी,
समन्वयवादी राष्ट्रीय चेतना तथा स्पृहणीय क्रियाशीलता का
अद्भुत समन्यवय था।
जीवनवृत्त
मोटूरि सत्यनारायण का जन्म २ फरवरी १९०२ में दक्षिण भारत के
आन्ध्र प्रदेश के कृष्णा जिले के दोण्पाडु ग्राम में हुआ था। ६
मार्च १९९५ को इस महामानव ने देह त्यागी। श्रीमती सूर्यकांता
देवी से आपका विवाह हुआ। जिनसे तीन पुत्र व चार पुत्रियाँ
हुईं। दीर्धायु का राज बताते हुए आप अपने मित्रों से कहा करते
थे कि ‘ज्यादा सुनो और कम खाओ‘ यही उनका जीवन दर्शन भी रहा।
सत्यनारायणजी ने तेलगु, हिन्दी व अँग्रेजी की शिक्षा प्राप्त
की व इन तीनों भाषाओं में पारंगत भी हुए। तीनों भाषाओं पर उनकी
बराबर महारत थी। १९७६ में हिन्दी साहित्य सम्मेलन, इलाहाबाद से
डी. लिट की उपाधि प्राप्त की। १९७७ में आंध्रप्रदेष साहित्य
अकादमी के फेलो रहे। टेबेसी स्टेट, नाशविले, १९८३ में यूएसए से
मानद नागरिकता भी आपको मिली। आपने भाषाओं के क्षेत्र में
अद्वितीय योगदान दिया। सत्यनारायणजी दक्षिण भारत में हिन्दी
प्रचार आन्दोलन के संगठक, हिन्दी के प्रचार प्रसार विकास के
युग पुरुष, महात्मा गाँधी से प्रभावित गाँधी के जीवन मूल्यों
के प्रतीक हिन्दी को राजभाषा घोषित कराने तथा हिन्दी के
राजभाषा के स्वरूप का निर्धारण कराने वाले सदस्यों में दक्षिण
भारत के सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्यक्तियों में से एक थे। वे
राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार
सभा, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के निर्माता भी रहे। उनके सुझाव
हमेशा तर्कसम्मत, कोमल और दूरदर्शी होते थे, किंतु स्वाभाव से
वे दृष्टिवान और बेबाक रहते थे।
मोटूरि सत्यनारायण ने "भारत देश,
हिन्दी और अंग्रेजी" के संदर्भ मे कहा था- सभ्य समाज में जूते
और टोपी दोनों की प्रतिष्ठा देखी जाती है। जूतों का दाम
साधारणतया टोपी से ज्यादा ही होता है। दैनिक जीवन में जूतों की
अनिवार्यता भी सर्वत्र देखी जाती है। पर इससे टोपी की मान
मर्यादा में कोई फर्क नहीं पड़ता है। कोई भूल कर भी सिर पर जूता
नहीं पहनता है, जो ऐसा
करता है पागल माना जाता है। हिन्दी हमारी गाँधी टोपी के समान
है, तो अँग्रेजी जूता है।"
सशक्त नेता
जिस समय महात्मा गांधी के नेतृत्व में सत्याग्रह और भारत छोड़ो
आन्दोलन हो रहा था उस समय उसमें हिन्दी का प्रचार प्रसार करना
स्वाधीनता आन्दोलन का महत्त्वपूर्ण हिस्सा था। दक्षिण में
स्वाधीनता आन्दोलन और हिन्दी का प्रचार प्रसार एक दूसरे के
परिपूरक थे। आपने जेल में रहकर भी यह कार्य किया। जेल से छूटने
के बाद आपने हिन्दी का प्रचार प्रसार की अनेक योजनाएँ बनाईं।
इन योजनाओं में केन्द्रीय हिन्दी शिक्षण मंडल योजना, दक्षिण
के साहित्य की प्रकाशन योजना एवं कला भारती की योजना आदि
सर्वविदित हैं। केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के जन्म का श्रेय
मोटूरि सत्यनारायण जी को है। इस संस्था के निर्माण के पूर्व
आपने महात्मा गांधी की प्रेरणा एवं आशीर्वाद से स्थापित
दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा के माध्यम से दक्षिण भारत में
हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार के क्षेत्र में अनुपम योगदान
दिया।
उन्होंने
भारतीय संविधान सभा के महत्वपूर्ण सदस्य के रूप में भी ख्याति
अर्जित की। राज्यसभा के मनोनीत सदस्य के रूप में प्रथम बार
१९५४ में राज्य सभा पहुँचे। भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के
द्वारा हिन्दी का स्तर बढाने के लिए गठित समिति के सभापति के
रूप में उन्होंने प्रथम बार १९५५ से १९५७ तक सरकारी स्तर पर
हिन्दी को स्थापित करने का महत्वपूर्ण कार्य प्रारम्भ किया।
इसी दौरान आपने शब्दकोश रचना के सदस्य के रूप में अपने कौशल का
परिचय दिया। आपने कुछ अन्य राष्ट्र सेवक हिन्दी सेवियों के
सहयोग से आगरा में ‘‘अखिल भारतीय हिन्दी परिषद्'' की
स्थापना की। संविधान सभा के अध्यक्ष एवं भारत के प्रथम
राष्ट्रपति महामहिम डॉ. राजेन्द्र प्रसाद परिषद के अध्यक्ष
थे। श्री रंगनाथ रामचन्द्र दिवाकर तथा लोकसभा के तत्कालीन
स्पीकर श्री मावलंकर परिषद् के उपाध्यक्ष थे। प्रसिद्ध
उद्योगपति श्री कमलनयन बजाज परिषद् के कोषाध्यक्ष थे। इसके
दो सचिव थे - (१) श्री मोटूरि सत्यनारायण (२) श्री गो.प.
नेने। डॉ. मोटूरि सत्यनारायण जी ने हिन्दीतर राज्यों के
सेवारत हिन्दी शिक्षकों को हिन्दी भाषा के सहज वातावरण में
रखकर उन्हें हिन्दी भाषा, हिन्दी साहित्य एवं हिन्दी
शिक्षण का विशेष प्रशिक्षण प्रदान करने की आवश्यकता का अनुभव
किया। इसी उद्देश्य से
परिषद ने सन १९५२ में आगरा में हिन्दी विद्यालय की स्थापना
की।
संगठनकर्ता व हिन्दी प्रचारक
हिन्दी को प्रतिष्ठा दिलाने के उनके प्रयासों का आकलन करने के
लिए वे जिन संगठनो से संबंधित रहे उसके उल्लेख मात्र से ही
उनकी सक्रियता का आभास होता है। वे केन्द्रीय हिन्दी संस्थान
के संचालन के लिए सन् १९६१ में भारत सरकार के शिक्षा एवं समाज
कल्याण मंत्रालय द्वारा स्थापित केन्द्रीय हिन्दी शिक्षण मंडल
के प्रथम अध्यक्ष बने। वे राज्य सभा के दूसरी बार मनोनीत सदस्य
रहे और १९७५ से १९७९ तक केन्द्रीय हिन्दी शिक्षण मंडल के दूसरी
बार अध्यक्ष रहे। दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा के प्रचार
संगठन कर्ता, आन्ध्र प्रान्तीय शाखा के प्रभारी, मद्रास की
केन्द्र सभा के परीक्षा मंत्री, प्रचार मंत्री, प्रधानमंत्री,
राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा के प्रथम मंत्री आदि पदों को
उन्होने अपनी गरिमा से सुशोभित किया।
उन्होंने विज्ञान संहिता नामक एक ग्रंथ की रचना भी की। वे
प्रयोजन मूलक हिन्दी के विचार के भी जनक थे।
मोटूरि जी को चिन्ता थी कि
हिन्दी कहीं केवल साहित्य की भाषा बनकर न रह जाए। उसे जीवन
के विविध प्रकार्यों की अभिव्यक्ति में समर्थ होना चाहिए।
उन्होंने कहा - ‘‘भारत एक बहुभाषी देश है। हमारे देश की
प्रत्येक भाषा दूसरी भाषा जितनी ही महत्वपूर्ण है, अतएव
उन्हें राष्ट्रीय भाषाओं की मान्यता दी गई। भारतीय
राष्ट्रीयता को चाहिए कि वह अपने आपको इस बहुभाषीयता के लिए
तैयार करे। भाषा-आधार का नवीनीकरण करती रहे। हिन्दी को देश के
लिए किए जाने वाले विशिष्ट प्रकार्यों की अभिव्यक्ति का
सशक्त माध्यम बनना है।'' डॉ. मोटूरि सत्यनारायण जी ने
‘प्रयोजन मूलक हिन्दी' की संकल्पना को हिन्दी जगत के सामने
रखा। प्रयोजनमूलक हिन्दी के लिए आपने अप्रमत्त भाव से जो
कार्य किया उससे न केवल केन्द्रीय हिन्दी संस्थान को अपने
शैक्षिक कार्यक्रमों में बदलाव के लिए प्रेरणा मिली अपितु बाद
में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को भी मार्गदर्शन प्राप्त
हुआ।
उपाधियाँ व सम्मान
डॉ. मोटूरि सत्यनारायण भारत सरकार, अनेक विश्वविधालयों, दक्षिण
भारत की हिन्दी प्रचार प्रसार की संस्थाओं एवं संस्थानों
द्वारा सम्मानित किये गये। १९५८ में उन्हें भारत सरकार द्वारा
‘पद्मश्री‘ से सम्मानित किया गया। शीघ्र ही १९६२ में उन्हें
भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया। उन्हें
आन्ध्र विश्वविधालय द्वारा डी. लिट की मानद उपाधि से विभूषित
किया गया। हिन्दी प्रचार प्रसार एवं हिन्दी षिक्षण प्रशिक्षण
के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य के लिए उन्हें केन्द्रीय हिंदी
संस्थान के गंगाशरण सिंह पुरस्कार प्राप्त विद्वानों में वे
सर्वप्रथम हैं। उनके सम्मान में केन्द्रीय हिन्दी संस्थान
द्वारा प्रतिवर्ष भारतीय मूल के किसी विद्वान को विदेषों में
हिन्दी प्रचार प्रसार में उल्लेखनीय कार्य के लिए पद्म भूषण डॉ
मोटूरि सत्यनारायण पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है। |