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लघुकथाएँ

लघुकथाओं के क्रम में महानगर की कहानियों के अंतर्गत प्रस्तुत है
डॉ. सरस्वती माथुर की लघुकथा- माँ की आँखें


किस कदर राघव की यादें पीछे दौड़ रही थीं, उस रेलगाड़ी से भी तेज जिसकी खिड़की पर बैठा वह पेड़ पर्वत, खेत, खलिहान, झोंपड़ियाँ और आकाश को पीछे छूटते देख रहा था... भागती ट्रेन के साथ उसके हाथ में दबा पत्र भी हवा की तरह सरसरा जाता था।

अब कैसे अपने से आँख मिलाये वो ? माँ की सखी जिसे वो डॉ मौसी कहता था उस पत्र के पीले पन्नों से बोल रही थीं "रघु बेटा, माँ नहीं रहीं, तुम फ़ौरन आ जाओ। आज एक सच का भी सामना तुम्हे करना होगा ... माँ का वादा था कि तुम्हे उनके जीते जी यह सच न बताया जाए.. बात तब की है जब तुम्हारे पिता का देहांत हो चुका था। उन्ही दिनों जब तुम मात्र तीन वर्ष के थे, एक बार तुम्हे तेज बुखार आया था और किसी संक्रमण के कारण तुम्हारी आँखों की रोशनी भी चली गयी थी। तब तुम्हारी माँ ने अपनी एक आँख तुम्हें दान कर दी थी, वे चाहती थीं कि तुम हमेशा रोशन संसार देखो।

तुम्हारी बायीं आँख की रोशनी थोड़ी धुँधली थी ...दाहिनी आँख कि रोशनी पूरी तरह चली गयी थी l किसी और से तुम्हें सच्चाई पता न चले इसलिए माँ अपना शहर छोड़ कर मुंबई आ गई थींl यहाँ आकर एक एन .जी . ओ .के साथ जुड़ गईं। तुम्हें आँखे मिल गयीं, तुम देखने लगे पढ़-लिख गए, एक सफल कारोबारी हो गए। विदेश में भी अब तुम्हारा कारोबार फैल गया। बेटा, तुम्हे आज भी याद होगा...जब मुंबई में तुम पढ़ते थे और जब स्कूल में तुम्हारी टीचर पैरेंट्स मीटिंग होती थी तो तुम माँ से कहा करते थे कि वे स्कूल न आएँ, उनके दोस्त उन्हें चिढ़ायेंगे कि तुम्हारी माँ कानी है और तुम्हारी माँ मुझे तुम्हारा अभिभावक बना कर भेजती थी ताकि उसकी वज़ह से तुम्हें अपने सहपाठियों के सामने शर्मिंदा नहीं होना पड़ेगा और अंत में डॉ. मासी ने लिखा था रघु बेटा अब तुम्हे कभी शर्मिंदा नहीं होना पड़ेगा ...मोहिता अब हमेशा के लिए जा चुकी हैl."

राघव की आँख के आंसू मानो पत्थर हो गए थे और दिमाग शून्य! बस अगर याद था तो वो दृश्य जब एक बार राघव को खाना खाने के लिये बुलाने माँ पार्क में आई थी तो वह कितना नाराज हुआ था, घर आकर उसने थाली फैंक दी थी -"तुमसे कितनी बार कहा है माँ कि तुम मेरे दोस्तों के सामने मत आया करो तुम्हारी ख़राब आँख के कारण सब मेरी हँसी उड़ाते हैं ...तुम औरों की माँ जैसी क्यों नहीं हो?" राघव को अपने कहे अपने ये शब्द तीर से चुभने लगेl

"आगे से धयान रखूँगी मेरे लाल, ले खाना खा ले और कान पर हाथ लगा कर सौरी बोला था माँ ने ... !" सोच कर एक राघव घायल पाखी सा तड़प उठा, अपने आप से घृणा सी हो आई उसेl

भागते दृश्यों के साथ वह जोर से चिल्लाना चाहता था- "माँ , मुझे माफ़ कर दो ,मेरे जीवन में रोशनी भर कर तुम अँधेरे में गुम नहीं हो सकतीं, लौट आओ माँ ...मैं माफ़ी माँगने के काबिल तो नहीं पर एक बार तो मुझे मौका दो कि मैं तुम्हारे इस त्याग का मोल चूका सकूँ... मुझे माफ़ कर दो माँ ....l" उसकी बायीं आँख की कोर पर आँसू के सैलाब अटक गए। एक कोमल सा गीला स्पर्श उसे अपने गाल पर महसूस हुआ ... जाने क्यों उसे लगा वह आँसू की बूँदों को सहलाता स्पर्श नहीं माँ का हाथ है, जो उसे सहला रहा है.. उसे माँ अपने बहुत करीब महसूस हुई l

ट्रेन अब एक लम्बी अँधेरी सुरंग से शोर मचाते हुए गुजर रही थी और वह फूट फूट कर रोने लगा !

९ जुलाई २०१२

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