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अभिव्यक्ति हिंदी पुरस्कार- २०१२ //  तुक कोश  //  शब्दकोश //  पता-


९. ४. २०१२

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
कल्पना रामानी, हरेराम समीप, मयंक कुमार वैद्य, रामेश्वर कांबोज हिमांशु तथा यश मालवीय की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- दाल हम रोज खाते हैं, पर कुछ नया हो तो क्या कहने? प्रस्तुत है १२ व्यंजनों की स्वादिष्ट शृंखला में- चनादाल लौकी वाली

बचपन की आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में संलग्न इला गौतम से जानें एक साल का शिशु- विदा लेने की सही विधि

बागबानी में- काफी का कमाल पिसी हुी काफी या ऐल्युमिनियम पाउडर को हाइड्रेन्जिया जड़ों पर छिड़कने से उसके नीले फूलों की चमक ...

वेब की सबसे लोकप्रिय भारत की जानीमानी ज्योतिषाचार्य संगीता पुरी के संगणक से- १६ अप्रैल से ३० अप्रैल २०१२ तक का भविष्यफल।

- रचना और मनोरंजन में

नवगीत की पाठशाला में- ार्यशाला-२१ में हरसिंगार के फूल पर आधारित नवगीतों का प्रकाशन निरंतर जारी है। रचनाएँ अभी भी भेजी जा सकती हैं। 

साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये यहाँ देखें

लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत- प्रस्तुत है- २४ फरवरी २००४  को प्रकाशित, भारत से नीलम शंकर की कहानी— संकल्प

वर्ग पहेली-०७६
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-             
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य एवं संस्कृति में-


समकालीन कहानियों में भारत से सुधा अरोड़ा
की कहानी- काँच के इधर-उधर

मैं घर के अंदर दाखिल हुई ही थी कि देखा चिल्की खिल खिल करती कमरे में चक्कर काट रही है और उसके सिर के ऊपर एक बर्रेनुमा कुछ मंडरा रहा है। पास आई तो देखा, वह बर्रा नहीं, एक बड़ी सी मधुमक्खी थी। सामने बाल्कनी के काँच के दरवाजे़ बंद थे और वह मक्खी काँच के आर पार दिखती रोशनी से धोखा खाकर, बाहर खुले में निकल भागने की कोशिश में बार बार काँच के दरवाज़े से टकरा जाती। ‘‘क्या हो रहा है, चिल्की!’’ मेरे मुँह से एकदम निकला, ‘‘काट लेगी! हट जा!’’ चिल्की ने तो नहीं, मक्खी ने सुन लिया और थक-टूट कर लकड़ी के उस टुकड़े पर जा बैठी जिसे एअर कंडीशनर का खोल बंद करने के लिये लगाया गया था और उस पर करीने से वारली का डिज़ाइन आँका गया था कि वह एअरकंडीशनर का खाली खोल न लगकर चित्रकारी का नमूना दिखे। ‘‘दादी, सो क्यूट ना?’’ चिल्की उसे निहारती रही, ‘‘ कित्ती देर से मेरे साथ खेल रही है ! ’’ मैंने उसके बोलते होंठों पर हथेली रख... विस्तार से पढ़ें...
*

मनोहर पुरी का व्यंग्य
सरकारी इकबाल कमाल है कमाल
*

अज्ञेय का ललित निबंध
ताली तो छूट गई

*

सुधीर विद्यार्थी से इतिहास चर्चा
चाँद के संपादक रामरख सहगल
*

पुनर्पाठ में सुबोध का नगरनामा
लंदन की चकाचौंध

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पिछले सप्ताह-


आशा मोर की लघुकथा
मातृभक्ति का दूसरा पहलू
*

प्रभु जोशी का संस्मरण-
अनंत काल तक बचे रहें गायक

*

पेतैर शागि का साहित्यिक निबंध
मोहन राकेश की कहानियों के महिला पात्र
*

पुनर्पाठ में अजय ब्रह्मात्मज का आलेख
फिल्मी संसार की वे प्रसिद्ध महिलाएँ
*

समकालीन कहानियों में सूरीनाम से भावना सक्सेना
की कहानी- एक उधार बाकी है

पाँच बजते ही सुजीत सौम्या को दफ्तर से लेने आ जाते हैं, इस छोटे से शहर में सार्वजनिक यातायात सुविधाएँ अच्छी नहीं हैं। कुछ छोटी बसें नियत समय पर चलती हैं लेकिन पके ताँबे से रंग के और कईं तो एकदम रात्रि के अंधकार जैसे बड़े डील डौल वाले क्रिओल लोगों के साथ सफर करने के विचार से ही घबराहट होती हैं, तो सौम्या के लिए दो ही रास्ते बचते हैं- या तो पति का इंतज़ार करो या ग्यारह नंबर की बस पकड़ कर निकल चलो। यूँ घर बहुत दूर भी नहीं हैं लेकिन इस देश में पैदल चलने का रिवाज ही नहीं हैं। एक-आध बार निकली भी तो कोई न कोई परिचित रास्ते में टकरा गया और घर तक छोड़ गया, या फिर प्रश्नवाचक नज़रों से बचती घर आ भी गयी तो लगता था सुजीत नाराज हो गए, सो बहुत दिन से पैदल चलने का विचार ही त्याग दिया था। आज कुछ तो मौसम खुशगवार था और कुछ अंदर की बेचैनी... विस्तार से पढ़ें..

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

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