इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-
आनंद कुमार गौरव, रेखा
राजवंशी, श्रद्धा यादव, त्रिलोक सिंह ठकुरेला,
और ओमप्रकाश नदीम की रचनाएँ। |
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साहित्य एवं
संस्कृति में- |
1
समकालीन कहानियों में
भारत से
राजीव पत्थरिया की कहानी-
खबर की
खबर
रोज की तरह
राकेश आज भी सुबह उठने में लेट हो गया था। वह जल्दी-जल्दी
तैयार हो रहा था इतने में उसका मोबाईल बजने लगा।
"हैलो, सर मैं कुल्लू से बोल रहा हूँ, रात को बादल फटने से
हाईडल प्रोजेक्ट की लेबर उसमें बह गई है और भारी नुकसान हुआ
है।" यह फोन राकेश के स्ट्रिंगर नारायण सिंह का था। सुबह-सुबह ऐसी सूचना पर
खीझते हुए आदतन राकेश बोला, "अबे यह बता की कितने मरे हैं क्या
मेरे आने की जरूरत है या तुम खुद इसकी रिपोर्टिंग कर लोगे।"
"बादल फटने वाली जगह पर ४-५ दर्जन के करीब मजदूर आपने परिवारों
के साथ रहते थे, बचा कोई नहीं है, रेस्कयू वर्क शुरू हो गया है
८-१० लाशें तो मिल गई हैं। आप
फोटोग्राफर को लेकर साथ आ जाएँ, मैं स्पॉट पर निकल गया हूँ।"
"ठीक है नारायण सिंह, तुम निकलो मुझे आने में दो घंटे तो लग ही
जाएँगे मैं फोटोग्राफर को लेकर आ रहा हूँ", राकेश ने कहा और
तुंरत फोटोग्राफर को फोन कर हाईवे के चौक पर मिलने को कहा।
चूँकि दुर्घटना बड़ी थी और टैक्सी लेकर वहाँ तक जाना था इसलिए
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माधव नागदा की लघुकथा
अभिलाषा
*
रामकृष्ण का आलेख
भय का भगवान महा भैरव
*
पुनर्पाठ में पर्यटक के साथ
विचरना वियना में
*
समाचारों में
देश-विदेश से
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पिछले सप्ताह- |
1
मनोहर पुरी का व्यंग्य
गरीबों की संसद
*
श्रीश बेंजवाल का आलेख
कंप्यूटिंग के पितामह डेनिस रिची
*
राम गुप्त का आलेख
बाबर की कहानी नानक की जुबानी
*
पुनर्पाठ में नीरजा द्विवेदी का
संस्मरण- वह कौन थी
*
उपन्यास अंश में
भारत से
प्रदीप सौरभ के उपन्यास
'देश भीतर देश' का एक अंश-
'मुखौटे और सवाल'
वह है, था,
रहेगा, उसकी जिंदगी के तीन चेहरे ही मैं देख पाया। वैसे लगता
है कि उसके हर चेहरे पर कई-कई मुखौटे मौजूद हैं। उसकी जीवन
यात्रा तो पचास साल पहले शुरू हुई थी। मैंने उसे उसकी युवा
अवस्था में देखा था। लगभग तीन दशकों की उसकी यात्रा का मैं
साक्षी रहा हूँ। इस दौरान उसने मुखौटे पर मुखौटे चढाए। सवाल है
कि आखिर एक इंसान के चेहरे पर कितने मुखौटे होते हैं? और इंसान
इन्हें लगाने के लिए क्यों मजबूर हो जाता है? नई दिल्ली रेलवे
स्टेशन। प्लैटफार्म नम्बर पर सात पर खास तरह के यात्री थे।
अपनी शक्ल सूरत और वेशभूषा के चलते वे सबका ध्यान खींच रहे थे।
इसी प्लैटफार्म पर गुवाहाटी की ओर जाने वाली ब्रम्हपुत्र
एक्सप्रेस खड़ी थी। यात्री अपनी बोली-भाषा में बतिया रहे थे।
आसपास खडे यात्रियों को उनकी बातचीत समझ नहीं आ रही थी। कुछ
चुहलबाज उन्हें चिंकी बता रहे थे, कुछ नेपाली, कुछ बर्मी...
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