कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के भीष्म पितामह डैनिस रिची
श्रीश बेंजवाल शर्मा
९ सितंबर
१९४१ में जन्मे प्रोग्रामिंग के भीष्म पितामह कम्प्यूटर
वैज्ञानिक डैनिस रिची का १२ अक्तूबर २०११ को निधन हो गया।
वे आधुनिक कम्प्यूटर विज्ञान की आधारशिला रखने वालों में
से एक थे। उनका कम्प्यूटर विज्ञान में वही स्थान है जो
भौतिकी में आइंस्टीन का है। यद्यपि वे आम जनता में हाल ही
में गुजरे ऍपल के मुखिया स्टीव जॉब्स की तरह प्रसिद्ध नहीं
थे लेकिन कम्प्यूटर विज्ञान से जुड़े लोग उनके योगदान से
भली-भाँति परिचित हैं। उन्हें आधुनिक डिजिटल युग का
सूत्रधार माना जाता है।
डैनिस का पूरा नाम डैनिस मैकलीस्टेयर रिची था। वे आम तौर
पर अपने यूजर नेम डीएमआर (dmr) से जाने जाते थे। न्यूयॉर्क
(अमेरिका) में जन्मे डेनिस के पिता ऍलीस्टेयर ई॰ रिची बॅल
लैब्स में वैज्ञानिक थे। अमेरिकन टिलीफोन एंड टेलीग्राफ की
बॅल लैबोरैट्रियाँ इलैक्ट्रॉनिक्स तथा कम्प्यूटर की दुनिया
में कई क्रान्तिकारी आविष्कारों के लिये जानी जाती है।
रिची ने हॉर्वर्ड विश्वविद्यालय से भौतिकी एवं गणित में
स्नातक किया। स्नातक की पढ़ाई के दौरान उन्होंने
मैसाचुसैट्स इंस्टीच्यूट ऑफ टैक्नोलॉजी के कम्प्यूटर सैंटर
में काम किया। यहीं से उनका रुझान गणित की बजाय कम्प्यूटर
विज्ञान की तरफ हो गया। इसके बाद कुछ समय उन्होंने सैंडिया
नैशनल लैबोरेट्रीज़ में भी काम किया जहाँ हथियारों सम्बन्धी
शोध एवं परीक्षण होता था। १९६७ में उन्होंने बॅल लैब्स में
काम करना शुरु किया। १९६८ में उन्होंने हॉर्वर्ड
विश्वविद्यालय से भौतिकी में पी॰ऍच॰डी॰ की उपाधि प्राप्त
की।
डैनिस रिची ने कॅन थॉम्पसन के साथ यूनिक्स ऑपरेटिंग सिस्टम
के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यूनिक्स कमांड लाइन
सिस्टम होते हुये भी मल्टीटास्टिंग तथा इंटरनेट आदि उन्नत
सुविधाओं से लैस था। रिची का एक प्रमुख योगदान यूनिक्स को
विभिन्न मशीनों तथा प्लेटफॉर्मों के अनुकूल बनाना था।
यूनिक्स आगे चलकर बहुत से ऑपरेटिंग सिस्टमों का आधार बना
जिनमें लिनुस टॉरवैल्ड द्वारा विकसित लिनक्स शामिल है। ऍपल
का मॅक ओऍस (तथा आइफोन, आइपैड में प्रयुक्त होने वाला
आइओऍस भी) बीऍसडी पर आधारित है, जो यूनिक्स से ही बना था।
लोकप्रिय मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम ऍण्ड्रॉइड की भी जड़ें
यूनिक्स (लिनक्स के रास्ते) में ही हैं। इस प्रकार विण्डोज़
को छोड़कर आज के लगभग सभी प्रमुख ऑपरेटिंग सिस्टमों का
पूर्वज यूनिक्स ही है।
डैनिस रिची ने सी प्रोग्रामिंग भाषा का भी निर्माण किया।
दिलचस्प बात यह है कि रिची ने सी का विकास यूनिक्स बनाने
के लिये ही किया था। डैनिस ने बॅल लैब्स के सहकर्मी
केर्निहैन के साथ मिलकर 'द सी प्रोग्रामिंग लैंग्वेज'
(जिसे K&R के नाम से भी जाना जाता है जिसमें आर रिची के
लिये है) नामक पुस्तक लिखी जो सी भाषा पर प्रसिद्ध
पुस्तकों में से एक है। सी दुनिया की सर्वाधिक लोकप्रिय
एवं सदाबहार प्रोग्रामिंग भाषा है। इसी से आगे चलकर सी++
बनी जिस पर आधुनिक समय की दो प्रमुख प्रोग्रामिंग भाषायें
सन/ऑरेकल की जावा तथा माइक्रोसॉफ्ट की सी शार्प आधारित
हैं। ऍपल के सॉफ्टवेयरों हेतु भी ऑब्जैक्टिव सी का प्रयोग
होता है। इनके अलावा भी जावास्क्रिप्ट आदि बहुत सी अन्य
भाषाओं का सिंटैक्स भी सी पर ही आधारित है। मुक्त
सॉफ्टवेयरों के विकास हेतु प्रयुक्त होने वाली जीटीके
टूलकिट भी सी में बनी है। इस प्रकार विजुअल बेसिक आदि को
छोड़कर आज की अधिकतर प्रोग्रामिंग भाषाओं की पूर्वज सी है।
वर्तमान में सी का उपयोग मुख्यतः ऍप्लिकेशन, ऑपरेटिंग
सिस्टम तथा ऍम्बैडिड सिस्टम (कम्प्यूटिंग उपकरणों के
अतिरिक्त अन्य इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों में प्रयुक्त होने
वाला सॉफ्टवेयर सिस्टम) के विकास में होता है।
इसके अतिरिक्त सभी वर्तमान प्रमुख ऑपरेटिंग सिस्टम सी पर
आधारित हैं। विण्डोज़ का कर्नल सी में बना है जबकि बाकी
अधिकतर भाग सी++ तथा कुछ भाग सी शार्प में बना है। लिनक्स
का कर्नल तथा ग्नोम डैस्कटॉप सी में जबकि केडीई डैस्कटॉप
सी++ में बना है। मॅक ओऍस का कर्नल सी में जबकि बाकी भाग
ऑब्जैक्टिव सी में बना है। इस प्रकार लगभग सभी वर्तमान
ऑपरेटिंग सिस्टमों के मूल में रिची का योगदान है। वर्तमान
में इंटरनेट पर प्रयुक्त विभिन्न वेब सेवाओं के पीछे भी सी
भाषा है। इंटरनेट पर अधिकतर वेब सर्वर तथा डाटा सैंटर
लिनक्स पर चल रहे हैं। इसके अतिरिक्त अधिकतर उपभोक्ता
कम्प्यूटिंग उपकरणों में प्रयुक्त ऍम्बैडिड सॉफ्टवेयर भी
सी में बने होते हैं। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि सी
तकनीक की दुनिया में लिंग्वा फ्राँका (सम्पर्क भाषा) जैसा
स्थान रखती है। सी और यूनिक्स ने ही कम्प्यूटर को पुराने
जमाने के कमरे के आकार वाले मैनफ्रेम से आधुनिक छोटे
पर्सनल कम्प्यूटरों के दौर में पहुँचाया। दूसरे शब्दों में
कहें तो सी और यूनिक्स ने ही कम्प्यूटर को आम आदमी तक
पहुँचाने का मार्ग प्रशस्त किया।
१९८३ में रिची तथा केन थॉम्पसन को यूनिक्स ऑपरेटिंग सिस्टम
के विकास में योगदान हेतु संयुक्त रूप से ट्यूरिंग अवार्ड
मिला। रिची को सी तथा यूनिक्स के विकास हेतु १९८८ में
नैशनल अकैडमी ऑफ इंजीनियरिंग में चुना गया। इसके अतिरिक्त
रिची तथा थॉम्पसन को संयुक्त रूप से १९९० में आइईईई रिचर्ड
डबल्यू॰ हैमिंग मैडल, १९९७ में कम्प्यूटर हिस्ट्री
म्यूजियम की फैलोशिप, १९९९ में राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के
हाथों नैशनल मैडल ऑफ टैक्नोलॉजी तथा २०११ में जापान प्राइज
मिला।
रिची २००७ में सेवानिवृत्ति तक बॅल लैब्स में विभिन्न शोध
परियोजनाओं पर काम करते रहे। वे ७० वर्ष की आयु में १२
अक्तूबर २०११ को न्यूजर्सी स्थित अपने घर में मृत पाये गये
जहाँ कि वे अकेले ही रहते थे। उनकी बीमारी का सटीक कारण
तथा समय पता नहीं चल पाया। वे प्रोस्टैट कैंसर तथा हृदयरोग
के कारण कई वर्षों से अस्वस्थ एवं उपचाराधीन चल रहे थे।
अलविदा डैनिस रिची। आज हम जब भी कोई कम्प्यूटर,
कम्प्यूटिंग डिवाइस या वेब सर्विस प्रयोग करते हैं तो
उसमें कहीं न कहीं डैनिस की तकनीक मौजूद है। इस तरह डैनिस
रिची हमारे बीच हमेशा मौजूद रहेंगे।
२१
मार्च २०१० |