सप्ताह का विचार-
बच्चों को शिक्षा के साथ यह भी
सिखाया जाना चाहिए कि वह मात्र एक व्यक्ति नहीं है, संपूर्ण
राष्ट्र की थाती हैं। - स्वामी
रामदेव |
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अनुभूति
में-
वीरेन्द्र आस्तिक, पुरु मालव, सचिन श्रीवास्तव, हरे राम समीप और
प्रेमचंद्र सक्सेना 'प्राणाधार' की रचनाएँ। |
कलम गहौं नहिं हाथ-
पिछले सप्ताह महिला दिवस के अवसर पर
भारतीय महिला वायुयान चालकों ने एअर इंडिया की २२ ऐसी उड़ाने
भरीं जिन्हें...आगे
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सामयिकी में- महिला
आरक्षण विधेयक राज्यसभा में पारित हो जाने के बाद जोसुआ
फ्रेंकफर्ट का विश्लेषण-
दिल्ली अभी भी दूर
है। |
रसोईघर से सौंदर्य सुझाव - टमाटर के रस को मट्ठे में मिलाकर
लगाने से धूप में जली हुई त्वचा को आराम मिलता है और वह जल्दी
स्वस्थ हो जाती है। |
पुनर्पाठ में- १ अगस्त २००१
के अंक में विशिष्ट कहानियों के स्तंभ गौरव गाथा के अंतर्गत
प्रकाशित फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी -
मारे गए
गुलफ़ाम |
क्या आप जानते
हैं? कि टाइटैनिक फिल्म
बनाने में जितना खर्च आया वह १९१३ में
अटलांटिक महासागर में डूबे जहाज़ टाइटैनिक के मूल्य से भी अधिक था। |
शुक्रवार चौपाल- इस सप्ताह चौपाल अतिथियों से भरा रहा। अवसर था
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के नाटक बकरी के अभिनय पाठ का।...
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नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला-७ में वसंत और होली के
रंगों से सराबोर गीतों-नवगीतों का मौसम इस सप्ताह भी जारी रहेगा। |
हास
परिहास |
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सप्ताह का
कार्टून
कीर्तीश की कूची से |
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इस सप्ताह
समकालीन कहानियों में
भारत से
सुमन बाजपेयी की कहानी-
अदृश्य आकार
बाहर कोहरा
छाया हो तो उसका मन करता है कि कहीं घूमने निकल जाए। लाँग
ड्राइव पर जाना न मुमकिन हो तो कनाट प्लेस के गलियारे में
निरर्थक ही चक्कर काटती रहे। वैसे भी उसे सदियाँ बहुत अच्छी
लगती हैं। उमस भरी गर्मी और पसीना- बहुत चिढ़ है उसे। कभी आँधी
तो कभी धूल। एक उजाड़ मौसम लगता है जिसमें सिर्फ बेचैनी ही
महसूस होती है। ए.सी. की शरण लो तभी राहत मिलती है। राहत भी
कहाँ तब भी शरीर में दर्द की टीसें उठनी लगती हैं। सर्दी में
तो अच्छे से शरीर को लपेटो और निकल जाओ पर गर्मियों में आखिर
आप कितने कपड़ों का निष्कासन कर सकते हैं। कृत्रिमता तो हर
मायने में बुरी लगती है। ए.सी. की कृत्रिम हवा भला प्रकृति की
खुशनुमा हवा को पछाड़ सकती है। मौसम की सौम्यता देखनी हो तो
सर्दी में ही दिख सकती है। सब कुछ कितना शांत और सुंदर लगता
है।
ठंड पड़ते ही मन में न जाने कितनी उमंगें पलने लगती हैं।
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गुरमीत बेदी का व्यंग्य
बीटी बैंगन बनाम देसी बैंगन
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घर परिवार में-
अर्बुदा ओहरी का आलेख
हवाई यात्रा में सामान की
सुरक्षा
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नवरात्र के लिए
मधु गजधर की रसोई से फलाहार-
केले के दहीबड़े,
अरबी-चाट,
साबूदाना टिक्की
और रबड़ी
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पर्यटक के साथ
सैर
मनमोहक माल्टा |
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पिछले सप्ताह
अविनाश
वाचस्पति का व्यंग्य
अब मैं रिक्शा खरीद ही लूँ
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डॉ. प्रदीप श्रीवास्तव से जानें-
पंचवटी- इतिहास से विज्ञान तक
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गीता शर्मा के
सौजन्य से साक्षात्कार में
हंगरी
में हिंदी की गंगोत्री : मारिया नेज़्यैशी
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गणगौर के अवसर पर प्रमिला
कटरपंच
के साथ-
भँवर म्हाने
खेलण दो गणगौर
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समकालीन कहानियों में
यू.एस.ए. से
पुष्पा सक्सेना की कहानी-
विकल्प नहीं कोई
बम्बई से गोआ
जाने वाले जहाज़ का अन्तिम साइरन बज चुका था। लंगर उठा। जहाज़
के चलते ही हर्ष-ध्वनि के साथ विदा के स्वर गूँज उठे नीचे डेक
पर दरी-चादर बिछाए लोग अपेक्षाकृत प्रकृतिस्थ-से दीख रहे थे।
केबिन में मनीष सामान सहेजने, उसे व्यवस्थित करने में व्यस्त
थे। नन्हा राहुल उनका सहयोगी बना सहायता कर रहा था। रेलिंग पर
टिकी सौम्या दूर तक फैले निस्सीम सागर को देखती कहीं खो चुकी
थी। जहाज़ से टकराती लहरें मानो उसके सीने पर सिर पटक-पटक
हाहाकार कर रही थीं। समानान्तर पश्चिमी घाट की पहाड़ियों से
जुड़े अरब सागर के साथ दस वर्षों पूर्व की सागर-यात्रा सजीव हो
उठी थी। ''सुनो, तुम्हारा वो छोटा ब्रीफ़केस कहाँ है?'' मनीष की
आवाज पर चौंककर सिर उठाती सौम्या की खोई-सी दृष्टि देख मनीष
खीज उठे थे। ''क्या बात है? ठीक तो हो? न जाने कहाँ खो
जाती हो!
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