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प्रकृति और पर्यावरण

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पंचवटी- इतिहास से विज्ञान तक
– डॉ. प्रदीप श्रीवास्तव


सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट (सी.डी.आर.आई.) के वैज्ञानिकों ने अपने शोध में रामायण की उस पंचवटी को शामिल किया, जहाँ भगवान श्रीराम ने वनवास के चौदह वर्षों में निरोग एवं स्वस्थ जीवन व्यतीत किया था। उन्होंने पंचवटी में शामिल पाँच वृक्षों-पीपल, बरगद, आँवला, बेल तथा अशोक- पर अलग-अलग शोध किया। शोध के बाद जो परिणाम आए वे बेहद चौंकाने वाले थे। वैज्ञानिकों ने पाया कि पंचवटी के आस-पास रहने से बीमारियों की आशंका कम हो जाती है। शोध दल इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि पंचवटी में लगने वाले पौधों के अपने अलग-अलग लाभ हैं, इन वृक्षों अथवा इनके फलों से न केवल सामान्य से अलग वातावरण तैयार होता है, अपितु उससे मानव शरीर की प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है।

इस शोध में पाया गया कि पीपल का एक सामान्य वृक्ष १८०० कि.ग्रा. प्रति घंटे की दर से आक्सीजन उत्सर्जित करता है। बरगद का वृक्ष न केवल गर्मी को रोकता है अपितु प्राकृतिक वातानुकूलन का कार्य भी करता है। आँवले में पाया जाने वाला विटामिन "सी" जहाँ प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का सबसे सस्ता उपाय है वहीं बेल का नियमित सेवन लोगों को पेट की बीमारियों से बचाए रखता है। अशोक के वृक्ष का उपयोग महिलाओं की कई बीमारियों से बचाने में किया जाता है। पंचवटी के पाँच वृक्षों में से हर एक को लगाने की अलग विधि है। कौन पेड़ किस दिशा में होगा तथा कितनी दूरी पर होगा, इसका भी वैज्ञानिक आधार है। पीपल का पेड़ पूरब दिशा में लगाने पर १८०० किलो. प्रति घंटा की दर से आक्सीजन का उत्सर्जन करता है। बरगद के पेड़ पश्चिम में लगाए जाने पर प्राकृतिक रूप से वातानुकूलन का कार्य अधिक सुचारुरूप से करता है। आँवला- दक्षिण में लगाया जाता है बेल उत्तर में तथा शोक- दक्षिण-पूर्व- में लगाए जाने पर स्वास्थ्यवर्धक सिद्ध होते हैं। पेड़ों के बीच १० मीटर की दूरी उचित होती है।

वैज्ञानिकों का मानना है कि वर्षभर चलने वाली हवाओं की दिशाएँ अलग-अलग होती हैं। पंचवटी में अलग-अलग दिशाओं में लगे इन पौधों से गुजरकर आने वाली मिश्रित हवा आरोग्यवर्द्धक होती है। बीच में स्थापित विश्राम चौकी में यदि बीमारी से तुरंत उठे व्यक्ति को बिठाया जाता है तो यह मिश्रित हवा स्वास्थ्यवर्द्धक रहती है। इन पाँचों वृक्षों के पत्ते झड़ने और फल आने का समय भी वर्ष में अलग-अलग है इसलिए ये वृक्ष वर्षभर छाया और फल देते रहते हैं।

केन्द्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान (सीडीआरआई)  के वैज्ञानिकों के "पंचवटी" शोध को उत्तर प्रदेश तथा राजस्थान सरकार ने पंचपटी परियोजना के अंतर्गत विकसित करने का कार्य प्रारंभ कर दिया है। प्रदेश के पर्यावरण मंत्री द्वारा इसे सरकारी स्कूलों में इसे लगाने की योजना तैयार की गई है। इसके साथ ही पुलिस थानों में भी इसके लगाने की की योजना बनाई गई है। इससे जन सामान्य में एक शुभ संदेश जाएगा और वह भी इस ओर आकर्षित होकर "पंचवटी" लगाने की प्रेरणा प्राप्त करेगा। राजस्थान के जालोर जिले के सौ गांवों में पाँच सौ पंचवटियाँ लगाने की योजना बनाई गई है। हरित राजस्थान नामक इस योजना के अंतर्गत प्रत्येक गाँव के पाँच कोनों पर पाँच-पाँच पेड़ लगाए जाएँगे। इनमें पंचवटी के बीच में एक विश्राम चौकी भी होगी। ये सभी पंचवटियाँ धार्मिक स्थल, विद्यालय, पानी के स्रोतों और सामुदायिक भूमि पर स्थापित होंगी।

जलवायु परिवर्तन के बढ़ते दुष्प्रभाव पर चतुर्दिश हो रही गरमा-गरम बहस से अलग, भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा संस्तुत्य यह पंचवटी पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए तो हितकर है ही इतनी सस्ती और सुगम है कि हर कोई इसे अपना सकता है।

८ मार्च २०१०

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