बाहर कोहरा
छाया हो तो उसका मन करता है कि कहीं घूमने निकल जाए। लाँग
ड्राइव पर जाना न मुमकिन हो तो कनाट प्लेस के गलियारे में
निरर्थक ही चक्कर काटती रहे। वैसे भी उसे सदियाँ बहुत अच्छी
लगती हैं।
उमस भरी
गर्मी और पसीने से बहुत चिढ़ है उसे। कभी आँधी तो कभी धूल। एक
उजाड़ मौसम लगता है जिसमें सिर्फ बेचैनी ही महसूस होती है।
ए.सी. की शरण लो तभी राहत मिलती है। राहत भी कहाँ तब भी शरीर
में दर्द की टीसें उठने लगती हैं। सर्दी में तो अच्छे से शरीर
को लपेटो और निकल जाओ पर गर्मियों में आखिर आप कितने कपड़ों का
निष्कासन कर सकते हैं। कृत्रिमता तो हर मायने में बुरी लगती
है। ए.सी. की कृत्रिम हवा भला प्रकृति की खुशनुमा हवा को पछाड़
सकती है? मौसम की सौम्यता देखनी हो
तो सर्दी में ही दिख सकती है। सब कुछ कितना शांत और सुंदर लगता
है।
ठंड पड़ते ही
मन में न जाने कितनी उमंगें पलने लगती हैं। उसका दिल करता है
किसी के हाथ में हाथ डाले कभी कॉफी तो कभी सूप पीते और कभी
गर्म-गर्म आलू की चाट खाते कनाट प्लेस के चक्कर काटे। उसके
गलियारों के खंभों को गिने। उस गलियारे का विस्तार जीने की
प्रेरणा देता है। |