सप्ताह का विचार-
कहानी जहाँ खत्म होती है, जीवन
वहीं से शुरू होता है।' -- संजीव |
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अनुभूति
में-
टी महादेव राव, रामेश्वर दयाल कांबोज हिंमांशु, हेमंत
श्रीवास्तव, रश्मिप्रभा और ओम प्रकाश तिवारी की रचनाएँ |
कलम गहौं नहिं हाथ-
कहते हैं अति
सर्वत्र वर्जयेत लेकिन कीर्तिमान तो तभी बनते हैं जब कोई किसी
अति का अतिक्रमण करे।...आगे पढ़ें |
सामयिकी में-
विश्व व्यापार पर छाई मंदी के कारण मीडिया पर मंडराते संकट का
खुलासा करता संजय द्विवेदी का आलेख-
मीडिया की मंडी में |
रसोईघर से
सौंदर्य सुझाव-
रात में सोने से पहले नाभि में तीन बूँद जैतून का तेल डालें तो
सर्दियों में ओंठ नहीं फटते। |
पुनर्पाठ में- १ जुलाई २००१
के अंक में विशिष्ट कहानियों के स्तंभ गौरवगाथा के अंतर्गत प्रकाशित
जयशंकर प्रसाद की कहानी-
आकाशदीप |
क्या
आप जानते हैं? १९८२ में भारतीय सेना द्वारा लद्दाख घाटी में
सुरु और द्रास नदी के बीच निर्मित बेली ब्रिज विश्व में सर्वाधिक
ऊँचाई पर बना पुल है। |
शुक्रवार चौपाल- शुक्रवार १५ जनवरी को चौपाल में लंदन से ज़किया
जी पधारीं। थियेटरवाला ने उनके सम्मान में संक्रमण का मंचन किया। ... आगे
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नवगीत की पाठशाला में-
जारी है कुहासा या कोहरा विषय पर रोज़ एक गीत का
प्रकाशन, पाठकों की प्रतिक्रिया का स्वागत है। |
हास
परिहास |
1
सप्ताह का
कार्टून
कीर्तीश की कूची से |
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इस सप्ताह
समकालीन कहानियों में
भारत से
राजेन्द्र त्यागी की कहानी
अनजान रिश्ते
असगर आज अपने
गाँव चला गया। जाते-जाते खुद तो रोया ही हमारी आँखें भी नम कर
गया। जाते-जाते ही क्यों, जाने के एक दिन पहले से ही वह इस तरह
सुबक रहा था, मानों अपने अपने प्रियजनों से हमेशा-हमेशा के लिए
बिछुड़ रहा हो। नहीं, साल-छह महीने बाद फिर उसे रोजी-रोटी की
तलाश में अपना गाँव छोड़कर फिर उसे इस शहर की किसी झुग्गी को
आबाद करना है! फिर भी हमसे बिछुड़ने के गम ने उसे रोने के लिए
मजबूर कर दिया था। जब कभी असगर की मासूम सूरत मन में उतर आती
है, मैं उसके साथ अपने रिश्तों के बारे में विश्लेषण करने लगता
हूँ। सोचने लगता हूँ, अनजान रिश्तों के बारे में। और, कुछ
अनजान रिश्ते भी होते हैं, इस मान्यता को स्वीकारने के लिए
मजबूर हो जाता हूँ। असगर गंभीर प्रकृति का इनसान था। उसे कभी
हँसते हुए नहीं देखा, मगर कभी उदास भी नहीं। हाँ, एकबार मेरे
कुछ सवालों पर वह मुस्कराया अवश्य था और फिर मौन हो गया था।
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कहानी
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रामकिशन भँवर
का व्यंग्य
हाय मेरी प्याज़
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आज सिरहाने-
अरविंद कुमार सिंह की पुस्तक
भारतीय डाक:
सदियों का सफरनामा
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रंगमंच पर-
हृषिकेश सुलभ द्वारा
विदूषक की तलाश
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संस्कृति में रमेश चंद्र द्विज का आलेख-
पोंगल- संक्रांति का महा उत्सव |
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पिछले सप्ताह
प्रमोद ताम्बट
का व्यंग्य
यह साम्राज्यवादी थपथपाहट
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लक्ष्मीकांत
नारायण के साथ चलें
भारत कला भवन
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आर के
श्रीनिवासन की रपट
जब शौच से उपजे सोना
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कुँवरपाल सिंह का संस्मरण
मेरी यादों के पयाले में भरो फिर कोई मय
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समकालीन कहानियों में
भारत से
पावन की कहानी
एक भीगती हुई
शाम
महालक्ष्मी
रेलवे स्टेशन
चर्चगेट जाने वाली लोकल महालक्ष्मी स्टेशन पर रुकी। लेडीज
कम्पार्टमेन्ट से ढेर सारी महिलाओं के रेले के साथ वह भी बारिश
से भीगते हुए प्लेटफार्म पर उतरी। आज सुबह से बारिश हो रही थी
लेकिन बारिश की वजह से मुम्बई की जिन्दगी थम नहीं जाती। उतरने
के साथ ही वह रेसकोर्स की ओर जाने वाले गेट की ओर चल पड़ी। आज
उसने साड़ी पहनी थी। जब भी वह विदित के साथ जाती है तो अधिकतर
साड़ी पहनती है क्योंकि विदित को वह साड़ी में बहुत अच्छी लगती
है हालाँकि नियमित रूप से साड़ी न पहनने के कारण उसे उलझन
महसूस होती है पर ग्राहक ग्राहक है, उसके मन मुताबिक तो करना
ही पड़ता है फिर वह बिल्कुल अलग किस्म का ग्राहक है। तभी उसके
पर्स में रखा उसका मोबाइल फोन
थरथराया। उसके चेहरे पर मुस्कराहट खेल गई।
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