रचनाकार
अरविंद कुमार सिंह
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प्रकाशक
नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया
नेहरू भवन,
५ इंस्टीटयूशनल एरिया
नई दिल्ली. ११००१६
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पृष्ठ - ४१२
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मूल्य:
१०.९५ डॉलर
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प्राप्ति-स्थल
भारतीय साहित्य संग्रह
वेब पर
दुनिया के हर कोने में
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'भारतीय डाक:
सदियों का सफरनामा' (डाक व्यवस्था पर शोध)
पत्रकारिता के क्षेत्र में हिन्दी अकादमी दिल्ली द्वारा
सम्मानित प्रसिध्द पत्रकार, अन्वेषक एवं लेखक अरविन्द कुमार
सिंह द्वारा रचित एवं नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया द्वारा
प्रकाशित 'भारतीय डाक: सदियों का सफरनामा' विश्व डाक साहित्य
को एक कीमती तोहफा है। यह भारतीय डाक व्यवस्था पर एक अत्यन्त
महत्वपूर्ण शोध ग्रन्थ है। यह अंग्रेजी, उर्दू सहित अन्य
भारतीय भाषाओं में भी प्रकाशित की जा रही है। इस पुस्तक में
जहां हमें संसार की सब से विशाल, विकसित एवं अनूठी भारतीय
डाक व्यवस्था के उद्भव, उतार-चढ़ाव एवं विकास के दिग्दर्शन
होते हैं वहीं इसे दरपेश परेशानियों, चुनौतियों एवं सरोकारों
से भी रू-ब-रू होने का सुअवसर मिलता है। आज भी आम आदमी का
डाक विभाग से गहरा नाता है और उस पर अगाध विश्वास है।
इसी अनूठे विश्वास और जनसेवा के प्रति समर्पित भावना को
रेखांकित करते अरविन्द कदम-कदम पर हरकारों के अदम्य साहस,
वीरता और बलिदान की गाथा बयान करते हैं। उनके उत्पीड़न,
दु:ख-दर्द, शोषण एवं मजबूरियों का मार्मिक चित्रण करते हुए,
उन्हीं की आवाज की प्रतिगूंज बन जाते हैं। अरविन्द का सरोकार
न केवल भारतीय हरकारों (मेहनतकशों) की नियति से है बल्कि
संसार के समस्त हरकारों की नियति से है। इसी अहसास से
ओत-प्रोत उनकी कलम बड़े ही सरल, सुन्दर, सहज एवं सबल ढंग से
जहां-तहां व्याप्त कुत्सित व्यवस्थाओं, विकृतियों एवं
विसंगतियों की ओर ध्यान आकर्षित करती है और उन्हें दूर करने
के लिए हमें लगातार संघर्षशील होने का आह्वान भी देती है।
इंटरनेट के दौर में आज विश्व डाक व्यवस्था एक बहुत ही संकटमय
स्थिति से गुजर रही है और भारतीय डाक व्यवस्था भी उससे अछूती
नहीं रह पाई। डॉक्टर मुल्कराज आनन्द की लिखी पुस्तक भारतीय
डाकघर की गाथा के बाद 'भारतीय डाक: सदियों का सफरनामा' एक
ऐसी पुस्तक है जो समग्र भारतीय डाक व्यवस्था पर बिना किसी
पूर्वाग्रह व दुराग्रह के तटस्थ भाव से सच्चाई का विवेकपूर्ण
वर्णन करती है। इसीलिए इसकी सार्थकता एवं उपयोगिता वर्तमान
संदर्भ में और भी बढ़ जाती है।
डाक जीवन के कटु और स्थूल यथार्थों से दृढ़ता से जूझना और
ईमानदारी से उनका मुकाबला करना सभी डाक कर्मियों का परम
कर्तव्य है और यह सफर वेदना, त्रासदी व |
अवसाद से
भरा है। अरविन्द की पुस्तक
उन्हें इसी त्रासदी से जूझने और अवसाद से उबरने का संदेश
देती है ताकि डाक जीवन हरा-भरा रह सके। यह रचना प्रेरणा और
सृजन का अनूठा संगम है जो पाठक को प्रबल चुम्बकीय शक्ति से
अपनी ओर खींचती है और अपने आप में समाहित कर लेती है। लेखन
ने विभिन्न स्रोतों से प्राप्त सामग्री व सहयोग का संतुलित
प्रयोग कर के इस पुस्तक को यथा-संभव कमियों से मुक्त रखने
का प्रयास किया गया है।
यह पुस्तक डाक नीति निर्धारकों, अधिकारियों एवं डाक कर्मियों
के लिए एक प्रकाश स्तंभ का कार्य करेगी। सूचना क्रान्ति के
युग में इस किताब का सभी दफ्तरों, स्कूलों, कालेजों,
पुस्तकालयों एवं विश्वविद्यालयों में होना बहुत जरूरी है।
कहते हैं कि जो लोग अपना इतिहास नहीं जानते वे कभी अपनी
आजादी और स्वाभिमान को कायम नहीं रख सकते।
इस पुस्तक में डाक प्रणाली के विस्तृत इतिहास के साथ जिला
डाक और राजाओं महाराजाओं की डाक व्यवस्था, आधुनिक डाकघरों,
देहाती डाकखानों, पोस्टमैन, पोस्टकार्ड, लेटरबॉक्स आदि पर
अलग से खंड है। डाक प्रण्ााली के विकास में परिवहन के साधनों
के विकास का भी अपना महत्व रहा है। इस नाते भारतीय हरकारों,
कबूतरों, हाथी-घोड़ा तथा पालकी, डाकबंगलों, रेलवे डाक सेवा,
हवाई डाक सेवा पर भी अलग से खंड हैं।
इसी के साथ भारतीय डाक टिकटों की मनोहारी दुनिया, पाकिस्तान
पोस्ट, विदेशी डाक प्रबंधन, डाक जीवन बीमा, करोड़ों चिट्ठियों
का प्रबंधन, चिट्ठी पत्री की अनूठी दुनिया, रेडियो लाइसेंस,
मीडिया के विकास में डाक का योगदान, डेड लेटर आफिस के
कार्यकरण पर भी पुस्तक में काफी रोशनी डाली गई है। इस पुस्तक
में एक रोचक अध्याय उन भारतीय डाक कर्मचारियों पर है
जिन्होंने समाज में लेखन, कला या अन्य कार्यों से अपनी खासी
जगह बनाई। कम ही लोग जानते हैं कि नोबल पुरस्कार विजेता सीवी
रमण, मुंशी प्रेमचंद, अक्कलीन, राजिंदर सिंह बेदी, देवानंद,
नीरद सी चौधरी, महाश्वेता देवी, दीनबंधु मित्र, मशहूर डोगरी
लेखक शिवनाथ से लेकर कृष्णबिहारी नूर जैसी सैकड़ों हस्तियां
डाक विभाग में कर्मचारी या अधिकारी रही हैं।
संचार क्रान्ति की चुनौतियों से मुकाबले के लिए व्यवसाय
विकास निदेशालय के कार्यकरण, स्पीड पोस्ट तथा अन्य
अत्याधुनिक उत्पादों का विवरण, निजी कूरियर सेवाओं आदि पर भी
पुस्तक विशेष गौर करती है। पुस्तक में भारतीय सेना डाक सेवा
पर भी काफी रोचक और महत्वपूर्ण जानकारियां हैं। यह बात कम ही
लोग जानते हैं कि टेलीफोन, मोबाइल या ईमेल सैनिकों को अपने
प्रियजनों के हाथ से लिखी पाती जैसा सुख-संतोष दे ही नहीं
सकते।
घर-परिवार से आया पत्र जवान को जो संबल देता है वह काम कोई
और नहीं कर सकता। इसी नाते सेना के डाकघरों का बहुत महत्व
है। करीब सारे महत्वपूर्ण पक्षों और तथ्यों को समेट कर
भारतीय डाक प्रणाली पर यह पुस्तक वास्तव में एक संदर्भ
ग्रन्थ बन गई है। पुस्तक के लेखक अरविंद कुमार सिंह संचार
तथा परिवहन मामलों के जानकार हैं। अमर उजाला, जनसत्ता जैसे
अखबारों में काम कर चुके श्री सिंह इस भारतीय रेल के
परामर्शदाता हैं।
कर्नल
तिलकराज
पूर्व चीफ पोस्टमास्टर जनरल, पंजाब
१८ जनवरी २००९ |