कलम गही नहिं हाथ
लंबू जी छोटू जी
कहते हैं अति सर्वत्र वर्जयेत, लेकिन
कीर्तिमान तो तभी बनते हैं जब कोई किसी अति का अतिक्रमण करे। इस वर्ष
लंबे और छोटे होने का कीर्तिमान बनाकर गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रेकार्ड में
नाम लिखवाया है तुर्की में जन्मे लंबू सुल्तान कोसेन ने और छोटू का ताज
मिला है चीन के ही-पिंगपिंग को।
सुल्तान कोसेन बचपन से इतने लंबे नहीं
थे। १० वर्ष की आयु तक उनकी लंबाई सामान्य बच्चों जैसी रही, लेकिन आँखों
के पीछे उभरे एक आबुर्द (ट्यूमर) से पीयूष ग्रंथि पर पड़ने वाले दबाव के
कारण उनकी लंबाई तेज़ी से बढ़ने लगी। आबुर्द को निकालने के लिए उन्हें कई
शल्य क्रियाओं से गुज़रना पड़ा। २००८ में जब यह पूरी तरह ठीक हुआ
उनकी लंबाई ८ फुट १ इंच तक पहुँच चुकी थी। आज २७ वर्ष की आयु में स्वस्थ
होने के बाद उनकी लंबाई स्थिर है लेकिन अस्वाभाविक लंबा शरीर घुटनों
पर जो अतिरिक्त बोझ डालता है उसको संभालने के लिए छड़ी लिए बिना चलना
उनके लिए संभव नहीं है। बाज़ार में उनके नाप के कपड़े और जूते नहीं मिलते
हैं साथ ही कोई ऐसी कार भी नहीं है जिसमें उनकी टाँगें समा सकें। फिर भी
वे समान्य जीवन बिता रहे हैं और हाल ही में उन्होंने विवाह भी किया है।
दूसरी ओर २१ वर्षीय ही-पिंगपिंग की लंबाई
केवल ७३.६६ सेंटीमीटर यानी २ फुट ५ इंच है। चीन में वुलानचाबू शहर के
रहने वाले ही पिंगपिंग की दोनो बहनें सामान्य है। ही-पिंगपिंग के माता पिता
के कहना है कि जन्म के समय उनकी लंबाई सामान्य से कुछ कम थी लेकिन बाद
में भी जब इसकी गति बहुत कम रही तो डाक्टरों ने पाया कि वे ऑस्टियो
इंपर्फ़ेक्टा के शिकार हैं। इस स्वास्थ्य स्थिति में हड्डियाँ स्वाभाविक
रूप से विकसित नहीं होतीं या बार बार टूट जाती हैं। १९८८ में जन्मे ही-पिंगपिंग अपने बाल रूप के कारण २००८ से अंतर्राष्ट्रीय नायक बने हुए हैं
और देश-विदेशी की यात्रा करते हुए अलग अलग लोगों के साथ उनके बहुत से
चित्र सजाल पर देखे जा सकते हैं। गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रेकार्ड के अलग-अलग शहरों में विमोचन के समय भी वे उपस्थित
रहे हैं। विगत १५ जनवरी को जब वे
इस पुस्तक के लोकार्पण के अवसर पर इस्तांबूल पहुँचे तब उनकी भेंट सुल्तान
कोसन से हुई। अपने देश में ही-पिंगपिंग का स्वागत करते हुए कोसेन
ने कहा, "मुझे इस बेहद छोटे व्यक्ति पर नजर टिकाने में कठिनाई हो रही
थी।" वहीं, पिंगपिंग ने कहा कि बाँस जैसे लंबे इस व्यक्ति से सीना तानकर
हाथ मिलाने का अनुभव वाकई यादगार रहा।
पूर्णिमा वर्मन
१८
जनवरी २०१०
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