भारत में ही नहीं,
यूरोप के अनेक देशों में भी अत्यंत प्राचीन काल से चील
शुभ और मंगलकारी मानी जाती है - विशेषकर सफ़ेद जाति की
चील। विश्व भर में इसकी आठ-दस प्रजातियाँ पाई जाती
हैं।, जिनमें से चार-पाँच केवल भारत में ही उपलब्ध
हैं। सफ़ेद चीलों के अतिरिक्त कई चीलें ऐसी भी होती
हैं जिनका पूरा शरीर तो ताम्रवर्णीय होता है लेकिन सिर
का भाग पूरी तरह सफ़ेद। अनेक चीलों के मात्र पेट के
नीचे का भाग सफ़ेद होता है, और अधिकांश चीलें ऊपर से
नीचे तक गहरे तांबे के रंग की होती हैं। लेकिन इन सब
में जिसे क्षेमकरी कहते हैं, वह सफ़ेद चील ही है।
भाई-दूज - अर्थात यम या
भ्रातृ-द्वितीया - के दिन संध्यासमय भारत के अनेक
अंचलों में वहां की ग्रामीण महिलाएं बस्ती से बाहर
जाकर किसी पूर्व-निर्धारित स्थान पर एकत्र होती हैं,
वहां पर कुछ पूजा आदि करती हैं और अपने अपने भाइयों के
लिए यमराज से प्रार्थना करती हैं। इस प्रार्थना के समय
या उसके समापन पर कहीं पर कोई चील उड़ती हुई दिखाई पड़
जाए तो वह यह मानती हैं कि उनकी प्रार्थना स्वीकार कर
ली गई है, अथवा वह चील यमराज तक उनके निवेदन को पहुंचा
देगी। ऐसा नहीं कि केवल यम-द्वितीया के दिन ही चील का
दर्शन शुभ है। आप अपने किसी कार्य से कहीं जा रहे हैं
और आपको सफ़ेद चील दिख जाए तो समझ लीजिए कि आपका काम
सफल होगा। और वह चील उसी समय अगर कुछ बोल भी दे तब तो
अपने मंतव्य में आपकी सफलता शत-प्रतिशत निश्चित है।
गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में राम-विवाह के
लिए अयोध्या से चलने वाली बरात को मिले शुभ शकुनों में
इस शकुन की भी चर्चा की है - क्षेमकरी कह क्षेम बिसेसी।
वैसे चील सदा शुभ शकुन
नहीं, वह अशुभ शकुन भी है। किसी व्यक्ति या समूह के
ऊपर बहुत कम ऊँचाई से कोई चील उड़ती दिखाई दे -
विशेषरूप से उस समय जब वह किसी ऐसी यात्रा पर निकले
हों जिसमें लड़ाई-झगड़े की आशंका हो - तो उसे उनमें से
किसी की मृत्यु अथवा गंभीर रूप से घायल होने का सूचक
माना जाता है। और वह चील अगर किसी वाहन पर बैठ जाए तो
उस पर आसीन व्यक्ति की मृत्यु अवश्यम्भावी समझी जानी
चाहिए। शकुन पक्षी होने के अतिरिक्त चील शाक्तों का
पूजनीय पक्षी भी है। देवी-पूजा की विशिष्ट विधियों में
अवसर-विशेष पर उसे मांस का टुकड़ा या उसके भोजन की
अन्यान्य सामग्री उसे अर्पित की जाती है। यह भेंट उसके
लिए सामान्यत: छप्पर या छत पर बिखेर दी जाती है जिससे
वह सहज ही उसे उठा कर ले जा सके।
चील-झपट्टा प्रसिद्ध
लोकोक्ति है। कोई भोजन की किसी वस्तु को खुले आकाश के
नीचे से ले जा रहा हो तो उसे बराबर सावधान रहना पड़ता
है। पता नहीं, कब और कहां से तूफ़ान की गति से उड़ती
हुई चील उसके हाथों से वह सामग्री छीन ले जाए और वह
आकाश की तरफ़ देखता ही रह जायें। ऐसे झपट्टों में चील
के पंजों के नख कभी कभी उस आदमी के हाथों को भी पूरी
तरह घायल कर जाते हैं। वैसे यदि वह सामग्री ठीक-ठाक
बंधी हुई है तो चील शायद ही उस पर झपटे, क्यों कि उसके
लिए ढकी हुई किसी वस्तु को पहचान पाना संभव नहीं हो
पाता। चील
मांसाहारी पक्षी है। वैसे वह रोटी-पूड़ी आदि को भी झपट
कर उसका भक्षण कर जाती है, लेकिन किसी सांप या चूहे को
जब वह खेतों से उठाने का उपक्रम करती है तो उसका वह
झपट्टा देखते ही बनता है। मरे सांप और चूहों को ही
नहीं, जीवित सर्प और दौड़ते चूहे भी अगर उसे किसी खेत
में दिख जायें तो वह उनको तत्क्षण उठा ले जाती है।
उसकी चोंच बहुत मज़बूत और तेज़ होती है। उसके पंखों के
नख भी बहुत तीक्ष्ण होते हैं। इनसे वह लाए हुए सांप और
चूहों के शरीर को फाड़ देती है और तब आराम से उनका
भोजन करती है। बहुत ऊपर उड़ते हुए भी चील भूमि पर चलते
हुए सर्प को देख सकती है। उसकी आंखें बहुत तेज़ होती
हैं। वैसे अनेक बार वह मांस के टुकड़े के धोखे में लाल
पत्थर अथवा मरे हुए सर्प के धोखे में मोतियों की
मालाओं को भी उठा लेती है। इस तरह की अनेक चीज़ें उसके
घोसलों में अक्सर ही पाई गई हैं।
ऊंचे वृक्षों के बीच चील
अपने घोसले बनाती है। यह घोसले सूखी टहनियों से बने
होते हैं और कौवों के घोंसलों की अपेक्षा आकार में
बड़े होते हैं। अन्यान्य पक्षियों की बनिस्बत चील अपने
घोंसलों के निर्माण में मोटी टहनियों का ही इस्तेमाल
करती है। काले रंग का छोटा भुजंगी पक्षी तो कौवे और
चील दोनों का ही शत्रु है और दोनों ही उससे बहुत
भयाक्रांत रहते हैं। यह पक्षी इनके ऊपर-नीचे तेज़ी से
उड़ान भरते हुए अपनी चोंच से उन पर अनवरत चोट करता
रहता है। नीलकंठ भी इन दोनों पक्षियों को मारते हुए
बेहाल कर डालता है। चील को तो कौवा भी मारता और
खदेड़ता है और वह कौवों से दूर रहने में ही अपनी कुशल
समझती है। वैसे
चील कभी-कभार झपट्टा भले ही मार लेती हो, लेकिन उससे
किसी को अन्य कोई भय नहीं। वह न कच्चे अन्न खाती है, न
फल। वह तो कृषि और बाग-बग़ीचों और स्वयं आपके भी शत्रु
चूहों, छछूँदरों और सांप जैसे जानवरों को नष्ट करने
वाला आप का मित्र पक्षी है। - (न्यूज़फ़ीचर्स)
9
नवंबर 2007 |