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    9. 11. 2007

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हास्य व्यंग्य

इस सप्ताह भाई-दूज के अवसर पर
समकालीन कहानियों के अंतर्गत
भारत से श्रीनाथ की कहानी उपहार
दो बड़े पर्वों की वैतरणी बोनस की नाव के सहारे पार करनी होती है, फिर भी तली में छेद रह जाने की आशंका हर पल दिमाग घेरे रहती है। सुधा की ही क्या, छोटे भाई-बहनों की आकांक्षाएँ इसी एक टिमटिमाते नक्षत्र पर टिकी रहती हैं। पिछली जुलाई में पप्पू के फर्स्ट इयर में अच्छे नंबर देखकर मैंने ही उसे मनपसंद चीज़ लेने के लिए उत्साहित किया था। तब उसने डरते-डरते पुरानी साइकिल ला देने को कहा था। सामाजिक अर्थशास्त्र में उसकी पैठ देखकर मैंने एक साथ गर्व और राहत का अनुभव किया था। निशा और वीना द्वारा भाई-दूज के उपहार के रूप में ऊन ख़रीदने के एकमत फ़ैसले की सूचना मुझे पहले ही मिल चुकी थी।

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हास्य-व्यंग्य में
हरिशंकर परसाईं की रचना भोलाराम का जीव

ऐसा कभी नहीं हुआ था। धर्मराज लाखों वर्षों से असंख्य आदमियों को कर्म और सिफ़ारिश के आधार पर स्वर्ग या नरक में निवास-स्थान ‘अलॉट' करते आ रहे थे, पर ऐसा कभी नहीं हुआ था। सामने बैठे चित्रगुप्त बार-बार चश्मा पोंछ, बार-बार थूक से पन्ने पलट, रजिस्टर पर रजिस्टर देख रहे थे। गलती पकड़ में ही नहीं आ रही थी। आखिर उन्होंने खीझ कर रजिस्टर इतने जोर से बन्द किया कि मक्खी चपेट में आ गई।उसे निकालते हुए वे बोले - "महाराज, रिकार्ड सब ठीक है। भोलाराम के जीव ने पाँच दिन पहले देह त्यागी और यमदूत के साथ इस लोक के लिए रवाना भी हुआ, पर यहाँ अभी तक नहीं पहुँचा."।

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पर्व परिचय के अंतर्गत
दीपिका जोशी संध्या की कलम से यम द्वितीया की कहानी
यम द्वितीया का पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया अर्थात कार्तिक महीने के उजाले पाख के दूसरे दिन मनाया जाता है। इस दिन प्रातःकाल चंद्र-दर्शन की परंपरा है और जिसके लिए भी संभव होता है नो यमुना नदी के जल में स्नान करते हैं। स्नानादि से निवृत्त होकर दोपहर में बहन के घर जाकर वस्त्र और द्रव्य आदि द्वारा बहन का सम्मान किया जाता है और वहीं भोजन किया जाता है। यम द्वितीय के दिन सायंकाल घर में बत्ती जलाने से पूर्व, घर के बाहर चार बत्तियों से युक्त दीपक जलाकर दीप-दान करने का नियम भी है। कायस्थों में इस दिन चित्रगुप्त और कलम-पूजा का भी विधान है। श्री चित्रगुप्त कायस्थों के आराध्य देव हैं।

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संस्कृति में
चक्र का आलेख -भ्रातृ-द्वितीया की वरदात्री चील

जिस तरह पितृपक्ष में काग और विजयादशमी के अवसर पर नीलकंठ का दर्शन मांगलिक माना जाता है, उसी तरह भ्रातृ-द्वितीया के दिन दिखी चील वरदान का पर्याय मानी गई है। भारत में ही नहीं, यूरोप के अनेक देशों में भी अत्यंत प्राचीन काल से चील शुभ और मंगलकारी मानी जाती है - विशेषकर सफ़ेद जाति की चील। विश्व भर में इसकी आठ-दस प्रजातियाँ पाई जाती हैं।, जिनमें से चार-पाँच केवल भारत में ही उपलब्ध हैं। अनेक चीलों के मात्र पेट के नीचे का भाग सफ़ेद होता है, और अधिकांश चीलें ऊपर से नीचे तक गहरे तांबे के रंग की होती हैं। लेकिन इन सब में जिसे क्षेमकरी कहते हैं, वह सफ़ेद चील ही है।

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घर परिवार में
अर्बुदा ओहरी की कलम से उफ़ यह थकान

त्यौहार माने मौज मस्ती, अच्छा स्वादिष्ट खाना, दोस्तों रिश्तेदारों से मिलना और खूब हुड़दंग। वैसे देखा जाए तो त्यौहार का आनन्द भी तभी आता है जब सभी साथ में मिलजुल कर त्यौहार को मनाएँ। पर त्यौहार के बाद होने वाली थकान से निजात पाना अपने आप में एक चुनौती सा हो जाता है। त्यौहार के बाद होने वाली थकान को दूर करने के लिए सबसे सरल उपाय यह है कि आप इन दिनों पानी का सेवन ज़्यादा करें, यह शरीर में डीहाइड्रेशन के कारण हो रही थकावट को दूर कर देगा और शरीर में हल्कापन बनाए रखेगा। थकान को दूर करने के लिये सुगंधों का इस्तेमाल भी बहुत फ़ायदा करता है, इसे भी आज़मा कर देखें।

 

अनुभूति में

नई दीपावली रचनाएँ साथ ही
दीपावली के
शुभ अवसर पर
महादेवी वर्मा के
20 दीप-गीत

दीपावली विशेषांक में

समकालीन कहानियों के अंतर्गत
यू.एस.ए. से अनिलप्रभा कुमार की कहानी
दिवाली की शाम

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हास्य-व्यंग्य के अंतर्गत
नरेंद्र कोहली की
अग्निपरीक्

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पर्व परिचय में
चिरंतन की पड़ताल
दीपोत्सव के प्रारंभ का इतिहास

दीपावली भारत के उस आदि स्वातंत्र्य-उत्सव का प्रतीक पर्व हे जब पहली बार विदेशियों से आहत होने के बाद देश ने अपने पारतंत्र्य से मुक्ति पाई थी और हिरण्याक्ष से लेकर बलि तक की दैत्य परंपरा का अंत हुआ था। भारत को सर्वप्रथम आक्रांत करने वाली विदेशी जाति दैत्य जाति थी और वह वायव्य दिशा से आई थी। इसके नेता का नाम हिरण्याक्ष था। कदाचित भारत की संपत्ति अर्थात हिरण्य पर दृष्टि (अक्ष) रखने के कारण ही उसका नाम हिरण्याक्ष पड़ा होगा। यह घटना उस अंधकारमय काल की है जब आर्यावर्त की सीमाओं को पार कर आर्य जाति ने दक्षिणापथ की ओर बढ़ना शुरू कर दिया था।

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ललित निबंध में
डॉ प्रेम जनमेजय की रचना
उजाला एक विश्वास

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साहित्यिक निबंध में
महेश दत्त शर्मा का आलेख
शाश्वत राम हमारे

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दीपावली विशेषांक समग्र

अन्य पुराने अंक

सप्ताह का विचार
वही पुत्र हैं जो पितृ-भक्त है, वही पिता हैं जो ठीक से पालन करता हैं, वही मित्र है जिस पर विश्वास किया जा सके और वही देश है जहाँ जीविका हो।
-चाणक्य

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
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