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उपन्यास में
स्वदेश राणा के नये अप्रकाशित उपन्यास
कोठेवाली
का
दूसरा भाग
मोगरे के फूलों का गुंथा हुआ गजरा
वह चाहे कहीं भी लपेटे, उसकी महक कई दिनों तक बदरीलाल की बीवी
के बदन से उठती रहती। एकादशी के कम से कम हफ्ता बाद तक वह इतराई सी
फिरती। पंजों के भार खड़ी होकर कभी अपनी उचकी एड़ियों पर लगी
मेहंदी को देखती। इधर उधर नज़र डालकर कभी गर्दन के नीचे सिर झुकाती
और अपनी कमीज़ के उभारों को सहारा देती। अधपके बालों की किसी लट
को बल देकर माथे पर गिरा देती और किसी को संवार कर कान के पीछे
सरका देती। वक्त बेवक्त कुछ गुनगुनाती। फल तरकारी की टोकरी
बनवा कर नुक्कड़ वाले मकान में बदरीलाल की बेवा बहन के पास
भिजवाती।
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संस्मरण में
सुप्रसिद्ध लेखिका शिवानी की पुण्य
तिथि 21 मार्च के अवसर पर श्रद्धांजलि
एक कथा अर्धशती को नमन
महेश दर्पण द्वारा
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प्रकृति
और पर्यावरण में
प्रभात कुमार का
आलेख
मानसून
:
प्रकृति का जीवन संगीत
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आज
सिरहाने
सूर्यबाला के कहानी संग्रह का परिचय
इक्कीस कहानियां
सुमित्रा अग्रवाल द्वारा
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हास्य
व्यंग्य में
डा
प्रेम जनमेजय की व्यंग्य रचना
पुरस्कारम
देहि
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इस
सप्ताह
कहानियों
में
भारत से डा कुसुम अंसल की कहानी
आते
समय
मलिक की बड़ीसी आरामदेह गाड़ी
में वे सब बैठकर चल देते हैं विकास ने अब तक पूजा का परिचय
मलिक से नहीं कराया है। पूजा कार के शीशे से बाहर का दृश्य देख रही
है सर्द तेज हवा का झोंक शीशा खोलते ही उससे टकराता है . .
.सिहरन उसे झकझोरती है। बाहर का सब कुछ बड़ा साधारणसा है .
. .पूरा शहर जैसे नींद से जाग रहा है . . .पुरानी इमारतों को
तोड़ कर नयेनये भव्य भवन आकार ले रहे हैं। बाहर चारों तरफ
यही एक नज़ारा था और कार के भीतर ही विकास, मलिक म्यूरल
और होटल की बनावट तथा सज्जा पर बात कर रहे हैं। पूजा आंखें बंद
करके लेटसी जाती है . . .उसे लगता है वह अकेली छूट गई है
कितनी बेकार हो उठी है अचानक।
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परिक्रमा में
लंदन पाती के अंतर्गत शैल
अग्रवाल
की कलम से
मां और
मांसी दो बहनें
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विज्ञान
वार्ता में
'भूल
गया कुछ कुछ याद नहीं सब कुछ'
क्यों होता है ऐसा?
डा गुरूदयाल प्रदीप की
कलम से
स्मृति
विस्मृति का तानाबाना
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प्रौद्योगिकी
में
डा विजय मल्होत्रा का
आलेख
कंप्यूटर
नेटवर्क के क्षेत्र में क्रांतिइंटरनेट
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आत्मकथा
में
कृष्ण बिहारी की आत्मकथा
का अगला भाग
विश्वजाल
पर पदार्पण
1
!सप्ताह का विचार!
लगन
और योग्यता एक साथ मिलें
तो निश्चय ही एक अद्वितीय
रचना का जन्म होता है।
मुक्ता |
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अनुभूति
में
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समस्यापूर्ति(2)
की 73 प्रविष्टियां
साथ ही
नये पुराने कवियों की 17 नयी कविताएं
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पिछले अंकों से°
कहानियों
में
सारांशशुभांगी
भड़भड़े
अलग
अलग तीलियांप्रभु जोशी
होली
मंगलमय होओम
प्रकाश अवस्थी
संकल्पनीलम शंकर
उससे
मिलनाउषा राजे
सक्सेना
अमृतघटडा
मीनाक्षी स्वामी
°
ललित
निबंध में महेश कटरपंच का
आलेख
बृज
में होली का त्योहार
°
वैदिक
कहानियों में
डा रति सक्सेना
की कलम से
इंद्र
भाग 2
°
समाचार
में
यू के व नार्वे के हिन्दी लेखकों
की नयी हिन्दी पुस्तकों का विवरण
तीन
लोकार्पण समारोह
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कलादीर्घा
में आधुनिक और पारंपरिक
कलाकृतियों से
सुसज्जित दीर्घा
कलाकृतियों में
होली
°
सामयिकी में
पर्व परिचय के अंतरगत
होली के
पारंपरिक महत्व पर दामोदर
पाण्डेय
लेकिन मुझको फागुन चाहिये
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मंच
मचान में
प्रख्यात हास्य कवि काका हाथरसी के
जीवन की झांकी कभी सरदी कभी गरमी
अशोक चक्रधर की कलम से
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फुलवारी
में बच्चों के लिए प्रेम जनमेजय
की कहानी
होली वाला रोबोट
और
होली का एक सुंदर
चित्र
रंगने
के लिये
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साहित्य
समाचार में
मुंबई से सूरज प्रकाश
की रपट
रावी पार का
रचना संसार
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